इंटरनल या एक्सटर्नल ब्लीडिंग होना जॉइंट्स में दर्द बिना कारण नाक से ब्लीडिंग यूरिन या स्टूल से ब्लड आना वैक्सिनेशन के बाद ब्लीडिंग सिरदर्द डबल विजन वॉमिटिंग अचानक से कमजोरी इस बारे में क्लीनिकल डॉक्टर अर्पिता सी राज का कहना है कि “ब्लड क्लॉट और कैंसर के बारे जानने से पहले ये जान लें कि कैंसर है क्या। सबसे पहले आपका यह जानना जरूरी है कि ब्लड क्लॉटिंग (blood clotting) है क्या। आम भाषा में हम इसे खून का थक्का कहते हैं। इसमें शरीर के किसी हिस्से में खून एक जगह जम कर इकट्ठा हो जाता है। जिसके कारण शरीर में सूजन (swelling) और कई अन्य दिक्कतें आने लगती हैं। ब्लड क्लॉट के भी कई प्रकार (Blood clot Types) होते हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपको किन कारणों से ब्लड क्लॉट की दिक्कत हुई है। जिसमें से एक कारण कैंसर जैसा डिजीज (Disease) भी है। कैंसर की कई स्थितयों में ब्लड क्लॉट होने लगता है”।
हीमोफीलिया की बीमारी में ब्रेन ब्लीडिंग रेयर होती है। ऐसा कुछ केसेज में हो सकता है। बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से जांच करानी चाहिए। कुछ ब्लड पार्टिकल क्लॉटिंग की प्रोसेस में भाग लेते हैं। जब क्लॉटिंग फैक्टर कम हो जाता है, तो हीमोफीलिया की समस्या हो जाती है। हीमोफीलिया कई प्रकार के होते हैं लेकिन ज्यादातर अनुवांशिक होते हैं। करीब 30 प्रतिशत लोगों में हीमोफीलिया की कोई भी फैमिली हिस्ट्री नहीं होती है। एक्वायर्ड हीमोफीलिया (Acquired hemophilia ) रेयर होता है। इस बीमारी में इम्यून सिस्टम क्लॉटिंग फैक्टर्स में अटैक करने लगता है।
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कम या ज्यादा प्लेटलेट्स बनती हैं प्लेटलेट डिसऑर्डर (Platelet Disorder) का कारण
कट या अन्य इंजुरी होने पर सबसे पहले प्लेटलेट्स ही रिस्पॉन्स करती हैं। इंजुरी के स्थान पर प्लेटलेट्स इकट्ठा हो जाती हैं और टेम्परेरी प्लग बनाती है, ताकि खून रुक जाए। प्लेटलेट्स डिसऑर्डर के कारण खून में तीन प्रकार की असामान्यताएं पाई जा सकती हैं।
- थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (Thrombocytopenia) :पर्याप्त मात्रा में प्लेटलेट्स का न होना
- थ्रोम्बोसाइटेमिया (Thrombocythemia) : अधिक प्लेटलेट्स का होना
- प्लेटलेट्स का सही से क्लॉट न होना
पर्याप्त मात्रा में प्लेटलेट्स न बनने के कारण छोटी चोट के दौरान भी अधिक ब्लड लॉस हो सकता है। वहीं अधिक प्लेटलेट्स होने के कारण मेजर आर्टरी ब्लॉक हो सकता है। इस कारण से स्ट्रोक या हार्ट अटैक भी हो सकता है। सही तरीके से थक्का न बना पाने वाली प्लेटलेट्स ब्लड वैसल्स की दीवारों से चिपक नहीं पाती हैं और ब्लड लॉस का कारण बनती हैं। प्लेटलेट्स डिसऑर्डर जेनेटिक होता है। प्लेटलेट्स डिसऑर्डर के निम्न कारण हो सकते हैं।
- ऑटोसोमल रिसेसिव इनहेरिटेंस (Autosomal recessive inheritance)
- ऑटोसोमल डॉमिनेंट इनहेरिटेंस (Autosomal dominant inheritance)
- एक्स-लिंक्ड इनहेरिटेंस (X-linked inheritance)
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वाइट ब्लड सेल डिसऑर्डर (White Blood Cell disorder)
वाइट ब्लड सेल्स (White blood cells) को ल्यूकोसाइट्स (leukocytes) भी कहते हैं। ल्यूकोसाइट्स इम्यून सिस्टम सेल्स हैं, जो इन्फेक्शन के खिलाफ, एलर्जी के खिलाफ लड़ने का काम करती हैं। स्वस्थ्य व्यक्ति में वाइट ब्लड सेल्स की संख्या 4,000–11,000 सेल्स पर माइक्रोलीटर ब्लड होती हैं। अगर ब्लड में अधिक मात्रा में वाइट ब्लड सेल्स मौजूद हो, तो उस कंडीशन को ल्यूकोसाइटोसिस (leukocytosis) कहते हैं। कम मात्रा में वाइट ब्लड सेल्स की उपस्थिति ल्यूकोपेनिया (leukopenia) कहलाती है। बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण, कुछ दवाओं के कारण, एलर्जी, स्मोकिंग, इंफ्लामेट्री डिजीज, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर, जेनेटिक कंडीशन, रेडिएशन, कैमिकल एक्पोजर, जेनेटिक म्यूटेशन और कैंसर के कारण वाइट ब्लड सेल्स डिसऑर्डर हो सकता है।
वाइट ब्लड सेल्स डिसऑर्डर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। प्रोलिफेरेटिव डिसऑर्डर (proliferative disorders)और ल्यूकोपिनिआस (leukopenias) दो मुख्य डिसऑर्डर हैं। प्रोलिफेरेटिव डिसऑर्डर में वाइट ब्लड सेल्स अधिक मात्रा में बनती हैं। वहीं ल्यूकोपिनिआस में ब्लड सेल्स कम मात्रा में बनती हैं। दोनों ही डिसऑर्डर के कारण इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाती है। इस कारण से इन्फेक्शन की संभावना बढ़ जाती है। सेल्स काउंट को मेंटेन कर बीमारी की इलाज किया जा सकता है। वाइट ब्लड सेल्स डिसऑर्डर होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ सकते हैं।
- बुखार
- मुंह के छालें
- त्वचा में फोड़े-फुंसी
- निमोनिया
- थकान
- वजन घटना
- इन्फेक्शन होना
उपरोक्त लक्षण नजर आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। अगर आप सही समय पर बीमारी की जांच कराते हैं, तो बीमारी से निजात पाने में मदद मिल सकती है। वाइट ब्लड सेल्स में गड़बड़ी के कारण इन्फेक्शन की समस्या आसानी से हो सकती है, जो आपको अधिक बीमार कर सकती है। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।
जानिए अन्य ब्लड डिसऑर्डर (Other Blood Disorders) के बारे में
प्लाज्मा सेल डिसऑर्डर (Plasma cell disorders) के कारण प्लाज्मा सेल्स प्रभावित होती हैं। वाइट ब्लड सेल्स शरीर में एंटीबॉडीज बनाने का काम करती हैं। ये सेल्स इन्फेक्शन से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस कारण से शरीर में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है।
प्लाज्मा सेल मायलोमा (Plasma cell myeloma) रेयर ब्लड कैंसर है, जो बोन मैरो की प्लाज्मा सेल्स में होता है। घातक प्लाज्मा कोशिकाएं बोन मैरो में जमा हो जाती हैं और स्पाइन, हिप्स और रिब्स में ट्यूमर बनाती हैं। प्लाज्मा सेल मायलोमा किस कारण से होता है, इस बारे में अभी जानकारी उपलब्ध नहीं है।
वॉन विलेब्रांड डिजीज ( Von Willebrand disease) इनहेरिटेड ब्लीडिंग डिसऑर्डर है। जब ब्लड क्लॉटिंग के लिए जिम्मेदार प्रोटीन की कमी हो जाती है, तो वॉन विलेब्रांड डिजीज हो जाती है।
ब्लड कैंसर ब्लड डिजीज के अंतर्गत आता है। ब्लड कैंसर के अंतर्गत ल्यूकेमिया के कारण वाइट ब्लड सेल्स कैंसर हो जाता है। इस कारण से पेशेंट की इन्फेक्शन से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। इस कारण से रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स का प्रोडक्शन भी कम हो जाता है। अगर ल्यूकेमिया का सही समय पर इलाज कराया जाए, तो बीमारी को लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है। क्रोनिक ल्यूकेमिया का ट्रीटमेंट मुश्किल हो जाता है। ल्यूकेमिया को सामान्य ब्लड कैंसर माना जाता है। अक्यूट ल्यूकेमिया और क्रॉनिक ल्यूकेमिया के बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से जानकारी जरूर लें। वहीं मायलोमा प्लाज्मा सेल्स कैंसर को कहते हैं। प्लाज्मा सेल्स कैंसर के कारण पेशेंट की प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। लिम्फोमा कैंसर के कारण लिम्फेटिक सिस्टम में सेल्स ग्रोथ तेज हो जाती हैं।
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