शुरुआती अवस्था में डायबिटिक रेटिनोपैथी के कारण होने वाले रेटिनल बदलाव को कुछ हद तक ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर और लिपिड को कंट्रोल करके रोका जा सकता है। कुछ मामलों में आंखों के पीछ के छोटे ब्ल्ड वेसल में लीकेज के लिए लेजर उपचार की सलाह दी जाती है, जबकि रेटिना के मध्य भाग (मैक्यूलर एडिमा) के सूजन वाले अन्य मामलों इंट्राविट्रियल इंजेक्शन की जरूरत हो सकती है। सभी तरह के उपचार का मकसद रोग को बढ़ने से रोकना है, लेकिन आंखों को यदि पहले ही कोई क्षति पहुंच चुकी है तो उसे उपचार से ठीक नहीं किया जा सकता है। इसलिए बीमारी का जल्दी पता लगाना जरूरी है और यह नियमति जांच से ही संभव है।
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यदि मुझे कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं तो क्या इसका मतलब है कि मुझे डायबिटिक रेटिनोपैथी नहीं है?
शुरुआती स्तर पर अधिकांश मामले बिना लक्षण के ही होते हैं इसलिए बीमारी का तब तक पता नहीं चल पाता जब तक कि नियमित रेटिनल जांच न की जाए। लक्षण वाले करीब 50 फीसदी मामले जो आई स्पेशलिस्ट के पास पहुंचते हैं, वह बीमारी के एडवांस स्टेज पर होते हैं और इस समय रोग का निदान करना शुरुआती अवस्था से बहुत मुश्किल होता है। डायबिटीज के मरीजों में डायबिटिक रेटिनोपैथी की संभावना समय के साथ-साथ बढ़ती जाती है। करीब 10 से 25% डायबिटीज मरीजों के रेटिना में बदलवा की संभावना होती है और इसमें से करीब दसवां हिस्सा बीमारी के एडवांस स्टेज में होता है जिन्हें उपचार की आवश्यकता होती है। इसलिए जरूरी है कि हमेशा आप जो भी करें, अपने डाॅक्टर की सलाह पर ही करें।
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क्या डायबिटिक रेटिनोपैथी को रोका जा सकता है?
शुरुआती स्तर पर ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर को सख्ती से कंट्रोल करके आंखों की जटिलताओं को बढ़ने से रोका जा सकता है। आंखों में शुरुआती बदलाव (आंखों के पीछ के छोटे ब्ल्ड वेसल में लीकेज) का इलाज लेजर थेरेपी से किया जा सकता है और रेटिना के मध्य भाग (मैक्यूलर एडिमा) में यदि सूजन है तो उसके लिए इंट्राविट्रियल इंजेक्शन की जरूरत हो सकती है।