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आइसोकाइनेटिक व्यायाम क्या है? जानें इसके दौरान किन बातों का रखें ध्यान

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Niharika Jaiswal द्वारा लिखित · अपडेटेड 18/05/2021

    आइसोकाइनेटिक व्यायाम क्या है? जानें इसके दौरान किन बातों का रखें ध्यान

    आज के समय में वेट मैनेजमेंट के लिए कई तरह की एक्सरसाइज उपलब्ध हैं और लोग अपनी जरूरत के अनुसार उसका चुनाव करते हैं। आज हम यहा बात करेंगे आइसोकाइनेटिक एक्सरसाइज की। यह एक प्रकार का व्यायाम है और इसमें इस्तेमाल की जाने वाली मशीने भी  बिल्कुल अलग प्रकार ही होती हैं। यह एक सुरक्षित व्यायाम है और इसका उपयोग कई तरह की बीमारियों में ट्रीटमेंट के तौर पर भी किया जाता है। जानें इसके बारें में कि यह एक्सराइज क्या है :

    आइसोकाइनेटिक व्यायाम (isokinetic exercise), एक प्रकार की स्ट्रेंथ ट्रेनिंग एक्सरसाइज है। इसमें, कुछ विशेष प्रकार की एक्सरसाइज  मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। यह आपके वेट कंट्रोल से लेकर कई प्रकार की ट्रीटमेंट के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। इन मशीनों में आपके वर्कआउट के साथ आपके स्पीड लेवल पर भी ध्यान दिया जाता है।  यानि कि ये मशीनें आपकी स्पीड के साथ आपके मोशन और रेंज को भी कंट्रोल करते हुए आपकी एक्सरसाइज में मदद करती हैं। इन मशीनों से वेट लिफ्ट के साथ वेट मैनेजमेंट आसानी से किया जा सकता है। इन मशीन की स्पीड को आप जितने अच्छे से पकड़ेंगे, उतने ज्यादा आप इसमें एक्सपर्ट भी होते जाएंगे।

    इसके लिए आपके एक्सपर्ट इसे आपकी क्षमता और जरूरतानुसार आपकी स्पीड, रेंज और माेशन तय करेंगे। इसमें आपके जरूर अनुसार विभिन्न प्रकार की मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है। आपके शरीर के अलग-अलग हिस्सों की मसल्स टोन के लिए अगल-अलग मशीन का इस्तेमाल होता है। इस आइसोकाइनेटिक व्यायाम के और भी कई फायदे हैं। यह आपके वेट मैनेजमेंट के लिए काफी प्रभावकारी है।

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    आइसोकाइनेटिक व्यायाम में स्पीड की जगह बॉडी मूवमेंट पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। इसमें धीरे-धीरे आपको मसल्स को टोनड किया जाता है। बल्कि आइसोकाइनेटिक एक्सरसाइज में आपको मसल्स गेन के लिए निरंतर रेंज और मूवमेंट में बैलेंस बनाए रखना पड़ता है। इनमें चोट का जोखिम कम कम होता है। इसके कई हेल्थ बेनेफिट्स हैं।

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    आइसोकाइनेटिक व्यायाम (isokinetic exercise) के लाभ

    आइसोकाइनेटिक व्यायाम एक स्ट्रेंथ ट्रेनिंग व्यायाम है। जोकि मांसपेशियों को टोन्ड  करने के साथ शरीर के लचीलेपन को भी बढ़ाता है। यह मांसपेशियों की क्षमता को भी बढ़ाता है। यह आपको फिट रखने के साथ आपको वेट  को भी कंट्रोल में रखता है। स्ट्रेंथ ट्रेनिंग से आपकाी रोजमर्रा की गतिविधियां आसान हो जाती हैं। इससे आपकी बॉडी को पॉजिटिव बेनेफिट् मिलते हैं।

    साल 2008 में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि आइसोकाइनेटिक ट्रेनिंग के दौरान कुछ प्रोफेशनल  फुटबॉल खिलाड़ियों में घुटने की मांसपेशियों की की स्ट्रेंथ को बढ़ाने के लिए इसका उपयोग किया था। जिसमें इसके सकारात्मक परिणाम पाए गएं। इसी तरह यह एक्सरसाइज भी  पुराने वयस्कों में , जिनें घुटने की पुरानी प्रॉब्लम है, तो उनके लिए भी इसे बेस्ट पाया गया। यानि कि ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज में आइसोकाइनेटिक व्यायाम प्रभावी हो सकता है।

    इसी तरह साल 2016 के अध्ययन में पाया गया  कि आइसोकाइनेटिक मांसपेशियों को मजबूत करने से मोटापे से ग्रस्त लोगों में एरोबिक व्यायाम से काफी  प्रभाव देखने को मिला। आइसोकाइनेटिक एक्सराइज मांसपेशियों की ताकत में सुधार के साथ डिप्रेशन, तनाव, डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की समस्या में भी प्रभावकारी है। 

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    आइसोकाइनेटिक एक्सराइज के रिस्क (Risk of isokinetic exercise)

    वैसे तो आइसोकाइनेटिक एक्सराइज शरीर में मांसपेशियों के लिए काफी प्रभावकारी है। इससे हेल्थ या बॉडी को किसी तरह का नुकसान नहीं है। लेकिन फिर भी अपनी तरफ से ध्यान से करना आवश्यक है। यह चोट से बचाने से भी मदद करता है। लेकिन आप इसे अपने थेरिपिस्ट की सलाह पर ही करें।

    इसमें इस्तेमाल की जाने वाली सभी मशीन का अलग-अलग रोल होता है, जैसे कि कुछ मशीन केवल बॉडी टोन्ड के लिए होती है, तो कुछ अलग-अलग प्रकार की डिजीज के लिए होती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी शरीर की जरूरत क्या है। इसलिए इसकी शुरूआत आप इस बात को तय करते हुए करें कि आपका लक्ष्य क्या है। उसी के अनुरूप मशीन का इस्तेमाल करें।
    आइसोकाइनेटिक के  लिए इस्तेमाल की जाने वाली मशीन से आप कइ तरह की एक्सरसाइज कर सकते हैं। इसके लिए आपको यह पता होना चाहिए कि आपको उसे इस्तेमाल कैसे करना है। लेकिन शुरूआत आप अपने ट्रेनर की मदद से ही करें।

    यदि आप  ट्रेडमिल का उपयोग कर रहे हैं, तो प्रत्येक सत्र 30 से 60 मिनट तक का समय आपको देना होगा। आप अपनी स्पीड और टाइम को  धीरे-धीरे बढ़ा सकते हैं। आप प्रति सप्ताह कम से कम तीन दिन वर्कआउट के बीच एक या दो दिन आराम करें। इसी तरह से स्ट्रेथ ट्रेनिंग के  8 से 15 रेप्स के 2 से 3 सेट करें। सुनिश्चित करें कि आप हमेशा धीरे-धीरे और नियंत्रण के साथ आगे बढ़ें। एकदम से हैवी वेट लिफ्टिंग न करें।

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    कौन न करें (Don’t Do )

    इस एक्सरसाइज को करने से पहले कुछ लोगों को पहले डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए, जैसे कि:

  • जिनकी कोई मेजर सर्जरी हुई हाे
  • हार्ट अटैक हो चुका हो
  • स्पाइन की प्रॉब्ल्म हो
  • माइग्रेन की समस्या होने पर
  • बुखार आने पर न करें।
  • कैंसर पेशेंट न करें इसे
  • ब्रेन टयूमर पेशेंट न करें इसे
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    कुछ सेफ्टी टिप्स (Safety Tips)

    वैसे तो इसके बहुत ज्यादा कोई रिस्क नहीं है। लेकिन सावधानी फिर भी बहुत जरूरी है। यह आपके शरीर के लिए सुरक्षित है। इसमें बैलेंस स्ट्रेंथ ट्रेनिंग के साथ आपकी व्यस्कुलर हेल्थ और बॉडी के फलेक्सिबिलटी के लिए प्रभावकारी है।

  • लेकिन शुरूआत हमेशा बाॅडी वॉर्मअप से ही करें। जॉगिंग या ब्रिस्क वॉक से स्टार्ट करें। कुछ स्ट्रेचिंग भी जरूर करें।
  • वर्क आउट से पहले खाली पेट गर्म पानी पिएं।
  • खूब पानी पिएं और अपने वर्कआउट से पहले, दौरान और बाद में उचित हायड्रेशन बनाए रखें।
  • अपने शरीर पर ध्यान दें। अपना समय लें, और नियमित रूप से सांस लें। दर्द या बेचैनी महसूस होने पर काम करना बंद कर दें और चोट को रोकने के लिए व्यायाम पूरा करते समय हमेशा उचित रूप और संरेखण का उपयोग करें। भरपूर आराम करें, और व्यायाम से दिनों को निर्धारित करें, खासकर यदि आप दर्द और थकान का अनुभव करते हैं।
  • इस तरह की कई एक्सरसाइज आपके लिए फायदेमंद हो सकती है। यह वेट मैनेजमेंट के साथ आपको कई डिजीज के ट्रीटमेंट की तरह भी काम करता है। लेकिन आपको किसी प्रकार की समस्या है, तो वो लोग बिना डॉक्टर के संपर्क के न करें।

    डिस्क्लेमर

    हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

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