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शिशुओं में ऑटिज्म के खतरों को प्रेंग्नेंसी में ही समझें!

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Piyush Singh Rajput द्वारा लिखित · अपडेटेड 01/04/2022

    शिशुओं में ऑटिज्म के खतरों को प्रेंग्नेंसी में ही समझें!

    शिशुओं में ऑटिज्म (Autism in babies) की बीमारी गर्भ से हो सकती है। शिशुओं में ऑटिज्म (Autism in babies) जैसी बीमारी क्यों होती है इसका सटीक कारण आज भी नहीं जाना जा सका है। हालांकि, कहीं ना कहीं हमारे जींस को इसके लिए दोषी माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि अगर जन्म देने वाली मां प्रेग्नेंसी के दौरान किन्हीं खास तरह के कैमिकल्स के संपर्क में आ जाती है, तो भी शिशुओं में ऑटिज्म की परेशानियां के साथ पैदा होता है। वहीं कई वैज्ञानिकों का मत है कि जींस के साथ-साथ हमारे वातावरण का संयुक्त असर बच्चे के ऑटिस्टिक होने का प्रमुख कारण हैं।

    हालांकि, ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रेग्नेंसी के दौरान डॉक्टर शिशुओं को ऑटिज्म होने का पता नहीं लगा सकते हैं। यूं तो ऑटिज्म को पूरी तरह से नहीं रोका जा सकता। हालांकि, इसके खतरों को कम किया जा सकता है। यहां जानिए गर्भवती महिला की देखभाल कैसे करें।

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    शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण (Symptoms of autism in infants)

    प्रेग्नेंसी और ऑटिज्म के बीच संबंध के कारण बच्चों के शुरुआती सालों में ही इसके लक्षण देखने को मिलते हैं। ऐसे बच्चों में यह लक्षण एक साल के अंदर या कई बार दो से तीन के साल के बीच ही दिखने शुरू हो जाते हैं। अलग-अलग उम्र के बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण भी अलग-अलग हो सकते हैं:

    6 महीने के शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण (Symptoms of autism in six months old infants)

    कई मामलों में बच्चों में पहले ही साल में ऑटिज्म के लक्षण दिखने लगते हैं। इसके तहत बच्चे में स्वाभाविक गतिविधियों जैसे कि हंसने और बोलने के संकेत भी नहीं दिखते हैं। ऐसे में कई बार इतने छोटे बच्चे में इन लक्षणों को पहचानना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा बच्चे का अपने आस-पास हो रही चीजों पर कोई प्रतिक्रिया न देना भी ऑटिज्म का एक लक्षण हो सकता है। यहां तक कि पेरेंट्स की कई कोशिशों के बाद भी बच्चे उनसे आंख तक नहीं मिलाते ऐसी परिस्थिति में माता-पिता को समझ जाना चाहिए कि बच्चे को मेडिकल अटेंशन की जरूरत है।

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    नौ महीने के शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण (Symptoms of autism in nine months old infants)

    बच्चे का विकास जब ऑटिज्म के साथ हो रहा होता है, तो कई बार उसमें बहुत ही स्वाभाविक बदलाव जैसे कि बच्चों की चुलबुलाहट या फिर बचपन की शरारतें भी नहीं दिखती हैं। ये पेरेंट्स के लिए एक बुरा अनुभव हो सकता है क्योंकि पेरेंट्स बच्चों की इन हरकतों को पसंद करते हैं और उनके पूरी जिंदगी के लिए संजो के रखते हैं। प्रेग्नेंसी और ऑटिज्म के बीच संबंध का पता लगाने के लिए अभी भी शोध किए जा रहे हैं।

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    एक साल के शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण (Symptoms of autism in one year old infants)

    आमतौर पर एक साल का शिशु बोलने की कोशिश करने लगता है। लेकिन ऑटिज्म के जूझ रहा शिशु भी जब बोलने की कोशिश करता है, तो यह थोड़ा अजीब हो जाता है। साथ ही उसकी आवाज भी असामान्य सुनाई देती है। इसके अलावा ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चे का नाम बुलाने पर भी वे कई बार कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है।

    16 महीने के शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण (Symptoms of autism in 16 months old infants)

    प्रेग्नेंसी और ऑटिज्म का सीधा प्रभाव बच्चे पर पड़ता है। लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान भ्रूण में बच्चे में ऑटिज्म के पता लगाने का कोई सटीक तरीका नहीं है। ऐसे में ऑटिज्म के साथ बड़े हो रहे बच्चों में कई लक्षण देखने को मिलते हैं। वहीं 16 महीने तक के ऑटिज्म से ग्रसित बच्चे को खुद को व्यक्त करने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। वे खुद की जरूरतों को भी पेरेंट्स को व्यक्त नहीं कर पाते हैं। साथ ही ऐसे में बच्चों को बोलने में परेशानी हो सकती है।

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    दो साल के शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण (Symptoms of autism in two-year-old infants)

    जब बच्चे दो साल के करीब हो चुके हों और ऑटिज्म के जूझ रहे हो, तो ऐसे में वे कई बार एक ही शब्द को बार-बार दोहराते हैं।

    शिशुओं में ऑटिज्म के खतरे को कम करने के लिए टिप्स (Tips to reduce the risk of autism in infants)

    महिलाएं प्रेग्नेंसी और ऑटिज्म के खतरे को कम करने के लिए कुछ कदम उठा सकती हैं। प्रेग्नेंट महिलाएं भ्रूण में पल रहे अपने बच्चे को ऑटिज्म के खतरे से बचाने के लिए पहले ही कदम उठाए तो ही बेहतर होगा क्योंकि किसी भी तरीके से प्रेग्नेंसी के दौरान इसका पता लगाने का कोई तरीका नहीं है। महिलाएं प्रेग्नेंसी और ऑटिज्म के खतरोंं को कम करने के लिए कुछ टिप्स:

    स्वस्थ जीवन जिएं (Live healthy life)

    स्वस्थ जीवन जीना ऑटिज्म से बचने का एक प्रभावी तरीका है। खासकर जन्म देने वाली मां को समय-समय पर अपना और बच्चे का चेकअप कराना चाहिए। ध्यान रहे कि आप और आपका परिवार संतुलित आहार लेता हो और अपने स्वास्थ्य का ठीक तरह से ख्याल रखता हो। प्रेग्नेंट महिलाओं को अल्कोहल यानी शराब से बिल्कुल दूर रहना चाहिए।

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    वायु प्रदूषण से बचें (Avoid air pollution)

    प्रेग्नेंसी के दौरान वायु प्रदूषण ऑटिज्म का खतरा बढ़ा सकता है। हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की शोध में पाया गया कि जो माएं प्रदूषित वायु के संपर्क में ज्यादा थीं उनके बच्चों में ऑटिज्म होने का खतरा दोगुना था। वायु प्रदूषण से बचने से ज्यादा ट्रैफिक के वक्त बाहर निकलने से बचना चाहिए।

    जहरीले कैमिकल्स से बचकर रहें (Stay away from toxic chemicals)

    प्रेग्नेंसी के दौरान कई तरह के टॉक्सिट कैमिकल्स से संपर्क भी बच्चे को ऑटिज्म का शिकार बना सकता है। हाल ही में हुई एक रिसर्च के मुताबिक, कैमिकल्स और खास तौर पर कई तरह के धातुओं से संपर्क ऑटिज्म का खतरा बढ़ाते हैं। किन किन केमिकल्स से ये खतरा होता है ये जानना बेहद कठिन है इसलिए डॉक्टर्स प्रदूषित वातावरण से बचने की सलाह देते हैं। इसके अलावा कैन में पहले पैक किए भोजन, डिओडरेंट्स और एल्युमिनम और प्लास्टिक में पैक पानी से बचने की सलाह दी जाती है।

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    जन्म के बाद डॉक्टर बच्चे की जांच के बाद ही बता सकते हैं कि बच्चे में कुछ समस्या है या फिर बच्चा स्वस्थ्य पैदा हुआ है। आपको बिना परेशानी के बच्चे की जांच समय पर जरूर करानी चाहिए। आप डॉक्टर से ऑटिज्म के बारे में अधिक जानकारी लें।

    उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। हैलो हेल्थ के इस आर्टिकल में शिशुओं में ऑटिज्म (Autism in babies) से जुड़ी हर मुमकिन जानकारी देने की कोशिश की गई है। यदि आपका इससे जुड़ा कोई प्रश्न है तो आप कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं। हम अपने एक्सपर्ट्स द्वारा आपके सवालों का उत्तर दिलाने का पूरा प्रयास करेंगे। अगर आपको अपनी समस्या को लेकर कोई सवाल है, तो कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श लेना ना भूलें।

    डिस्क्लेमर

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