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कब हुई थी एचआईवी की पहचान?
1984 में पहली बार एचआईवी यानी ह्युमैन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस की पहचान की गई थी और तब से लेकर आज तक पिछले 36 सालों में इसकी रोकथाम के लिए वैक्सीन नहीं बन पाई है। यह वायरस अब तक दुनिया भर में लाखों लोगों को संक्रमित कर चुका है। 1990 से 2014 तक एचआईवी पीड़ित लोगों की संख्या 8 मिलियन से बढ़कर 36.9 मिलियन हो गई। जबकि यूएन एड्स 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 69 हजार लोगों की मौत एचआईवी के कारण हो चुकी है।
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एचआईवी को रोकने के लिए वैक्सीन की जरूरत क्यों है?
भले ही एचआईवी की वैक्सीन अभी तक नहीं बनी है, लेकिन वर्तमान में कुछ दवाओं की बदलौत एचआईवी पीड़ित पहले की मुकाबले अच्छी जिंदगी जी पाते हैं। कुछ जीवन रक्षक उपचार के साथ ही एचआईवी दवाएं (जिसे एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी या एआरटी कहा जाता है) मरीजों के स्वास्थ्य को ठीक रखती है। यदि एचआईवी संक्रमित व्यक्ति वायरस के असर को कम करने के लिए डॉक्टर द्वारा दी गई दवा का नियमित सेवन करता है, तो वह स्वस्थ रह सकता है और पार्टनर को भी संक्रमित करने का जोखिम नहीं रहता है।
एचआईवी संक्रमित ऐसे मरीज जो हाई रिस्क पर हैं उन्हें एचआईवी से बचाने के लिए प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (पीआरईपी) या एआरटी का उपयोग किया जा सकता है। फिर भी दुर्भाग्यवश अमेरिका में 2018 में 37,832 लोग एचआईवी से संक्रमित हुए और पूरी दुनिया में करीब 1.7 मिलियन लोग एचआईवी से संक्रमित हुए थे। यानी वैश्विक स्तर पर इस बीमारी की रोकथाम के लिए मजबूत उपकरण और ऐसी प्रणाली की जरूरत है। ऐसा सिर्फ एक कारगर वैक्सीन की बदौलत ही हो सकता है। संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए वैक्सीन ही सबसे कारगर, सुरक्षित और किफायती तरीका है। चेचक और पोलियो की वैक्सीन की तरह ही प्रिवेंटिक एचआईवी वैक्सीन लाखों लोगों की जान बचा सकता है।
सुरक्षित, असरदार और किफायती वैक्सीन बनाने की दिशा में प्रयास जारी है और यदि ऐसा संभव हुआ तो एचआईवी/एड्स महामारी को खत्म किया जा सकता है।
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कैसे फैलता है एचआईवी?
एचआईवी/एड्स का संक्रमण आमतौर पर इन चार माध्यमों से फैलता है।