के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr Sharayu Maknikar
प्रेग्नेंसी के दौरान टीबी (ट्यूबरक्युलॉसिस) होना बेहद खतरनाक होता है। इस स्थिति में प्रग्नेंसी के दौरान टीबी बिगड़ सकती है और टीबी प्रेग्नेंसी में खतरा पैदा कर सकता है। पहला यह कि इससे ट्यूबरक्युलाॅसिस और बढ़ सकता है और जन्म लेने वाले बच्चे और गर्भ पर भी इसका असर हो सकता है। ऐसे स्थिति में इसका इलाज बेहद जरूरी हो जाता है।
और पढ़ेंः भ्रूण स्थानांतरण क्या है? प्रॉसेस के कंप्लीट होने के बाद कैसे बढ़ाएं प्रेग्नेंसी का सक्सेस चांस?
बता दें कि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने साल 2005 में तपेदिक (टीबी) को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया गया था। यानी, अगर टीबी से जुड़ा कोई भी मामला सामने आता है, तो उसे तत्काल रूप से उपचार दिया जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, मातृ मृत्यु दर को बढ़ाने में प्रेग्नेंसी के दौरान टीबी होना एक मुख्य कारक रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर और पिछड़े क्षेत्रों में 15 से 45 साल की महिलाओं में मृत्यु के तीन प्रमुख कारणों में से प्रेग्नेंसी के दौरान टीबी होना एक रहा है।
[mc4wp_form id=’183492″]
हालांकि, प्रेग्नेंसी के दौरान टीबी होने का प्रमख कारण क्या है, इसके बारे में अभी भी सटीक कारणों का पता नहीं चल सका है। प्रेग्नेंसी के दौरान टीबी के कारणों को सामान्य रूप से वजन कम होना या जरूरत से ज्यादा और अचानक रूप से वजन बढ़ना जैसे कई कारण शामिल हो सकते हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान टीबी होने के कारण प्रसूति संबंधी जटिलताएं, गर्भपात का खतरा, समय से पहले शिशु का जन्म होना, जन्म के समय शिशु का बहुत कम वजन होना या जन्म के दौरान या बाद में नवजात की मृत्यु का भी जोखिम बना रहता है। आंकड़ों के मुताबिक, जन्मजात टीबी दुर्लभ है, क्योंकि अक्सर ऐसे मामले में नवजात की मृत्यु हो जाती है।
और पढ़ेंः प्रेग्नेंसी के दौरान स्किन टैग क्यों होता है, जानिए इसके कारण और उपचार
प्रेग्नेंसी के दौरान टीबी (ट्यूबरक्युलॉसिस) होने का पता लगा पाना आसान काम नहीं है, क्योंकि इस स्थिति में ट्यूबरक्युलॉसिस से होने वाले वजन की कमी को सही ढंग से नहीं देखा जा सकता। ऐसा इसलिए है क्योंकि गर्भावस्था में वजन पहले ही बढ़ा हुआ होता है।
आमतौर पर ये बीमारी माइकोबैक्टेरियम (Mycobacterium) नाम के बैक्टीरिया (Bacteria) से होती है और फेफड़ों को प्रभावित करती है।
ट्यूबरक्युलॉसिस के दौरान दिए जाना वाला इलाज प्रेग्नेंसी के दौरान अलग हो सकता है। कई दवाएं जो इलाज के समय दी जा सकती हैं उनका इस्तेमाल गर्भावस्था में नहीं किया जाएगा क्योंकि इससे फीटस यानि माता के पेट में बढ़ते हुए शिशु को हानि पहुंच सकती है।
और पढ़ेंः लैप्रोस्कोपी के बाद प्रेग्नेंसी की संभावना कितनी बढ़ जाती है?
इस बीमारी का गर्भावस्था पर क्या प्रभाव होगा ये इन दो बातों पर निर्भर करेगा:
बहुत से मामलों में देर से जांच होने पर परेशानियां बढ़ सकती हैं। आमतौर पर प्रेग्नेंसी के दौरान वजन में बढ़ोतरी हो जाती है, जिसके कारण ट्यूबरक्युलॉसिस की वजह से होने वाली वजन में गिरावट का पता लगाना मुश्किल होता है। साथ ही HIV संक्रमण से ग्रस्त होने पर या फिर शिशु के जन्म के तुरंत बाद ही शरीर में ट्यूबरक्युलॉसिस के पता चलने पर स्थिति गंभीर हो सकती है। कई बार सही इलाज न मिलने पर या देर से इलाज मिलने पर खास हानि हो सकती है।
इसके अलावा ये परेशानियां आ सकती हैं:
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन (NCBI) की रिपोर्ट के आधार पर देर से जांच होने पर ट्यूबरक्युलॉसिस की वजह से ओब्स्टेट्रिक मोर्बिडिटी (Obstetric Morbidity) यानि गर्भवती महिलाओं की मृत्युदर में चार गुना बढ़ोतरी हुई है। साथ ही सही ढंग से इलाज न मिलने पर समय से पहले भी शिशु का जन्म हो सकता है जिसकी वजह से बच्चे का विकास सही ढंग से नहीं होगा।
और पढ़ेंः क्या प्रेग्नेंसी में सपने कर रहे हैं आपको प्रभावित? तो पढ़ें ये आर्टिकल
गर्भावस्था के दौरान ट्यूबरक्युलॉसिस होने पर दवाओं के डोज में बदलाव आता है क्योंकि बहुत सी दवाएं जो आमतौर पर हानि नहीं पहुचाएंगी। प्रेग्नेंसी की स्थिति में मां और शिशु दोनों के लिए हानिकारक हो सकती हैं।
NCBI द्वारा दी गई रिपोर्ट के मुताबिक मरीजों की दवाओं में ये बदलाव किए जा सकते हैं :
सभी फर्स्ट लाइन दवाएं जैसे कि आइसोनियाजैड (Isoniazid), रैफैम्पिसिन (Rifampicin), ऐथामब्यूटोल (Ethambutol) और पायराजिनामाइड (Pyrazinamide) का इस्तेमाल ट्यूबरक्यूलोसिस के इलाज के लिए किया जा सकता है। इनका फीटस के विकास पर कोई भी हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि, दवाओं की सही मात्रा न मिलने पर परेशानियां आ सकती हैं जैसे कि :
इसके अलावा प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ एंटीमाइक्रोबियल एजेंट्स को भी लेना हानिकारक हो सकता है जैसे कि स्ट्रेप्टोमाइसिन (Streptomycin), कैनामायसिन (Kanamycin), अमिकैसीन (Amikacin), कैप्रिओमायसिन (Capreomycin) और फ्लोरोक्विनोलोन्स (Fluoroquinolones)।
अगर नवजात शिशु की मां को ट्यूबरक्युलॉसिस की दवाएं दी जा रही हैं तो इसका कुछ भाग शिशु में मा के दूध से जा सकता है। हालांकि, इसकी मात्रा बहुत कम होती है और ये नवजात शिशु पर प्रभाव नहीं डालेंगी। इसी कारण से अगर शिशु को ट्यूबरक्युलॉसिस हो गया है तो भी सिर्फ मां के दवाइयां लेने से शिशु का इलाज नहीं होता। शिशु के ट्यूबरक्युलॉसिस के इलाज के लिए शिशु को दवाइयां देनी पड़ेंगी।
ट्यूबरक्युलॉसिस संक्रमित स्थिति में नवजात शिशु की मां को INH दवाओं के साथ पायरीडॉक्सीन (विटामिन बी 6) भी लेना चाहिए ये मां और बच्चे दोनों के लिए लाभदायक है। इसलिए अपनी और अपने शिशु की सुरक्षा के लिए पहले ही ट्यूबरक्युलॉसिस का टीका जरूर लगवाएं।
अगर आपको अपनी समस्या को लेकर कोई सवाल है, तो कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श लेना ना भूलें।
डिस्क्लेमर
हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।
के द्वारा मेडिकली रिव्यूड
Dr Sharayu Maknikar