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जानें बच्चों में पीलिया होने के लक्षण और उसका उपचार

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr. Pooja Bhardwaj


Piyush Singh Rajput द्वारा लिखित · अपडेटेड 13/04/2021

    जानें बच्चों में पीलिया होने के लक्षण और उसका उपचार

    अक्सर देखा जाता है कि नवजात बच्चों का शरीर जन्म के बाद पीला पड़ने लगता है। उनकी त्वचा और आंख का सफेद हिस्सा यानी स्क्लेरा पीला पड़ने लगता है। यही बच्चों में पीलिया (Jaundice) के संकेत हैं। यह खून में पिग्‍मेंट (बिलीरुबिन) की मात्रा बढ़ने के कारण होता है। हालांकि, पीलिया की समस्या नवजात बच्चों में सामान्य है और इससे कोई खतरा नहीं होता है। कम ही मामलों में इससे बच्चों को खतरा होता है। बच्चों में पीलिया होना यूं तो आम है और ये खुद से ठीक भी हो जाता है। ऐसे में जब तक बच्चे को पीलिया रहता है, तब तक डॉक्टर नवजात शिशु को निगरानी में रख सकते हैं।

    आपको जानकर हैरानी होगी कि 10 में से हर छह नवजात शिशु को पीलिया होता है। इसका खतरा ज्यादातर उन बच्चों में बढ़ जाता है, जो समय से पहले जन्म लेते हैं। तकरीबन 80 प्रतिशत प्रीमैच्योर बेबी को पीलिये की शिकायत होती है। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि बच्चों को पीलिया क्यों होता है और इसका इलाज कैसे किया जाता है।

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    इस वजह से पीला पड़ जाता है नवजात बच्चे का चेहरा और आंख

    बच्चों में पीलिया होने के कारण

    बच्चों में पीलिया होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनके बारे में हम नीचे बताने जा रहे हैं :

    आमतौर पर लाल रक्त कोशिकाएं (red blood cells) सामान्य प्रक्रिया के तहत टूट कर बिलीरुबिन बनाती हैं। इसके बाद लिवर इस बिलीरुबिन को प्रोसेस करता है। जब बच्चा मां के पेट में होता है तब बच्चे के शरीर का बिलीरुबिन मां का लिवर साफ करता है। लेकिन जब बच्चा जन्म लेता है तो यह काम स्वयं इसका लिवर करता है। लेकिन अगर बच्चे का लिवर ठीक ढंग से काम न करे या उसका विकास सही नहीं हुआ हो तो भी यह समस्या उत्पन्न होती है। ऐसा मां से बच्चे का पर्याप्त दूध नहीं मिल पाने के कारण भी होता है।

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    नवजात और अन्य बच्चों में पीलिया होने के कारण

    • Hemolytic anemia यानी एक तरह की खून की कमी जिससे रेड ब्लड सेल्स तेजी से टूटते हैं और पीलिया हो जाता है।
    • हैपेटाइटिस ए, बी या सी जिसकी वजह से हीमोलिटिक पीलिया होता है।
    • शरीर में बिलीरुबिन की अधिकता शिशुओं में पीलिया होने का अहम कारण होता है। आपको बता दें कि लिवर खून से बिलीरुबिन के प्रभाव को कर करने या फिर साफ करने काम करता है। फिर इसे आंतों तक पहुंचा देता है, लेकिन नवजात शिशु का लिवर ठीक से विकसित नहीं होता, जिस कारण वह बिलीरुबिन को फिल्टर करने में सक्षम नहीं होता। यही कारण है कि शिशु में इसकी मात्रा बढ़ जाती है और उसे पीलिया हो जाता है।
    • अगर लिवर से जुड़ी पित्त वाहिका (bile duct) में खराब और रुकावट हो जिससे बिलीरुबिन बाहर नहीं निकल पा रहा हो।
    • कुछ महिलाओं के स्तनों में ठीक से दूध नहीं बन पाता, जिस कारण शिशु को पर्याप्त पोषण न मिल पाने के कारण जॉन्डिस हो सकता है।
    • ब्लड संबंधी कारणों से भी बच्चे को पीलिया हो सकता है। ऐसा तब होता है, जब मां और बच्चे का ब्लड ग्रुप अलग-अलग होता है। इस स्थिति में मां के शरीर से ऐसे एंटीबॉडीज निकलते हैं, जो फीटस के रेड ब्लड सेक्स को मार देते हैं। ये शरीर में बिलीरुबिन की मात्रा को बढ़ाते हैं, जिससे बच्चा पीलिये के साथ जन्म लेता है।

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    बच्चों में पीलिया होने के लक्षण क्या हैं?

    पीलिया का प्रमुख लक्षण शरीर का पीला पड़ना है, जो पीले तत्व बिलीरुबिन की अत्यधिक मात्रा की वजह से होता है। शुरुआत में चेहरा पीला पड़ता है जिसके बाद यह शरीर के अन्य हिस्सों में जैसे सीना, पेट, हाथ और पैर पर फैलता है।

    बच्चों में पीलिया का उपचार कैसे किया जाता है?

    आमतौर पर बच्चों में पीलिया एक से दो हफ्तों में ठीक हो जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में डॉक्टर बच्चे के लिए निम्नलिखित उपचार कर सकता है:

    1. अतिरिक्त स्तनपान: इसमें बच्चे को ज्यादा से ज्यादा मां का दूध पिलाया जाता है। इसकी वजह से बच्चा अधिक मलत्याग करत है। इसकी मदद से शरीर से अत्यधिक बिलीरुबिन तेजी से बाहर निकलता है।
    2. डॉक्टर बच्चे को एक खास तरह की लाइट यानी ब्लू-ग्रीन लाइट के नीचे रखते हैं, जिसकी मदद से बिलीरुबिन पेशाब के साथ निकल जाता है। इसे फोटोथेरिपी कहा जाता है। इस थेरिपी के दौरान शिशु की आंखों पर एक पट्टी लगा दी जाती है, जिससे उसकी आंखें सुरक्षित रहें। शिशु को आराम देने के लिए हर तीन से चार घंटे में आधे घंटे के लिए इस प्रक्रिया को बंद किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान मां अपने बच्चे को स्तनपान करा सकती है।
    3. ब्लड ट्रांसफ्यूजन: अगर उपरोक्त में से कोई भी उपचार से बच्चे को फायदा न हो तो फिर ब्लड ट्रांसफ्यूजन की मदद ली जाती है। इसमें डॉक्टर धीरे-धीरे बच्चे के शरीर से कम-कम मात्रा में खून निकालकर डोनर के खून से बदल देते हैं।
    4. अगर बच्चे को पीलिया मां के ब्लड ग्रुप अलग होने की वजह से होता है, तो इसका उपचार करने के लिए इम्यूनोग्लोबुलीन इंजेक्शन भी लगाया जाता है। इस इंजेक्शन से शिशु के शरीर से एंटीबॉडीज कम होने लगते हैं, जिससे पीलिये से राहत मिलती है।

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    बच्चों में पीलिया होने से जुड़े मिथक क्या हैं?

    आपने आज तक यही सुना होगा कि पीलिया होने पर पीली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। लेकिन आपको बता दें कि ये सरासर एक मिथक है। पीला खाने से या पीला कपड़ा पहनने से पीलिया बढ़ता है, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

    कुछ लोग मानते हैं कि पीलिया होने पर शिशु को घर में लाइट के नीचे रखने से उसे ठीक किया जा सकता है। यह भी सरासर एक मिथक है। बल्कि ऐसा करने से बच्चे को लाइट के नीचे नग्न अवस्था में लिटाने के कारण उसे बुखार आ सकता है और उसे ठंड भी लग सकती है। ध्यान रहे कि घर में बच्चे को लाइट के नीचे रखना फोटोथेरिपी का विकल्प नहीं है, क्योंकि फोटोथेरिपी के दौरान ऐसी वेवलेंथ निकलती है, जो केवल अस्पतालों में ही मिल सकती है।

    अगर आपको अपनी समस्या को लेकर कोई सवाल है, तो कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श लेना न भूलें।

    डिस्क्लेमर

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