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साइलेंट स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक के बीच क्या अंतर है?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Ankita mishra द्वारा लिखित · अपडेटेड 26/05/2020

    साइलेंट स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक के बीच क्या अंतर है?

    ब्रेन स्ट्रोक यानी मस्तिष्काघात के कई चरण और कई प्रकार हैं। जिनमें साइलेंट स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक यानी प्री स्ट्रोक की पहचान करना सबसे मुश्किल होता है। कई बार समय रहते इनके लक्षणों का पता लगाने में देरी हो जाती है, जिसके कारण व्यक्ति शारीरिक रूप से दिव्यांग हो सकता है या उसकी मृत्यु भी हो सकती है। अगर समय रहते साइलेंट स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक के लक्षणों की पहचान की जाए, तो शारीरिक अक्षमता को रोका जा सकता है।

    जानिए साइलेंट स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक में अंतर क्या हैं?

    साइलेंट स्ट्रोक या साइलेंट सेरेब्रल इंफर्क्शन (SCI) क्या है?

    साइलेंट स्ट्रोक को साइलेंट सेरेब्रल इन्फर्क्शन (SCI) भी कहा जाता है। यह अचानक से ब्रेन में खून की आपूर्ति रूकने की वजह से आता है। इसके कारण मस्तिक के ऊतकों का नुकसान होता है। जिसके कारण व्यक्ति बेहोश हो सकता है या बोलने, देखने और शारीरिक प्रक्रियाएं करने में असमर्थ हो सकता है। कई बार यह मृत्यु की भी वजह बन सकती है। आमतौर पर कुछ लोगों को इसका अनुभव ही नहीं हो पाता की उनके साथ ऐसा स्ट्रोक की वजह से हो रहा है। इसी वजह से इसे साइलेंट स्ट्रोक कहा जाता है।

    साइलेंट स्ट्रोक का असर दिमाग के एक छोटे हिस्से पर पड़ सकता है। जिसकी वजह से वहां की कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं। साइलेंट स्ट्रोक के कारण प्रभावित व्यक्ति चलने-फिरने में असमर्थ हो सकता है, उसकी पाचन प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है और दिमाग भी ठीक से काम करना बंद कर सकता है।

    इसके अलावा अगर किसी को एक से अधिक बार साइलेंट स्ट्रोक आता है, तो उसे भूलने की बीमारी हो सकती है और उनके स्ट्रोक के खतरे भी बढ़ सकते हैं।

    साइलेंट स्ट्रोक या साइलेंट सेरेब्रल इंफर्क्शन (SCI) के कारण क्या है?

    ब्रेन की नसों में जब खून के थक्का जमने लगते हैं या हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होती है, तो इसके कारण दिल की खून की नसे सिकुड़ने लगती है जो साइलेंट स्ट्रोक का कारण हो सकता है। कभी-कभी इसका कारण डायबिटीज या सिर में लगी कोई चोट भी हो सकती है।

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    साइलेंट स्ट्रोक (Silent Stroke) के लक्षण क्या हैं?

  • आमतौर पर साइलेंट स्ट्रोक के लक्षण बिना डॉक्टर के परीक्षण के पहचानें नहीं जा सकते हैं। आमतौर पर, साइलेंट स्ट्रोक की पहचान करने के लिए मस्तिष्क का एमआरआई (MRI) (magnetic resonance imaging) टेस्ट करना जरूरी होता है।
  • मिनी स्ट्रोक या ट्रांसिएंट इस्केमिक अटैक क्या है?

    मिनी स्ट्रोक को प्री स्ट्रोक या ट्रांसिएंट इस्केमिक अटैक (transient ischemic attacks- TIA) भी कहा जाता है।

    प्री स्ट्रोक (Pre Stroke) के कारण क्या है?

    यह तब आता है जब खून के थक्के बनने के कारण मस्तिष्क के किसी एक हिस्से में खून के प्रवाह में थोड़ी देरी के लिए रूक जाता है। हालांकि, इसके लक्षण अगले 24 घंटे के अंदर गायब हो जाते हैं। साथ ही, इसके कारण किसी भी तरह के स्थायी विकलांगता की समस्या नहीं होती है।

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    मिनी स्ट्रोक (TIA) के लक्षण क्या हैं?

    साइलेंट स्ट्रोक (Silent stroke) और मिनी स्ट्रोक (Mini Stroke) के लक्षण कुछ अलग हो सकते हैं। नीचे हम आपको मिनी स्ट्रोक (Mini Stroke) के लक्षण बताने जा रहे हैं, जैसे :

    • चक्कर आना मिनी स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है।
    • भ्रम होना मिनी स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है।
    • धुंधला दिखाई देना मिनी स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है।
    • शरीर के सिर्फ एक ही तरफ अटैक महसूस करना मिनी स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है।
    • अस्थायी रूप से बोलने में असमर्थ होना मिनी स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है।
    • सुनने में परेशानी होना मिनी स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है।
    • शब्दों को समझने में परेशानी होना मिनी स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है।

    ये सभी मिनी स्ट्रोक के लक्षण हो सकते हैं।

    साइलेंट स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक आने पर कैसे बचाव करें?

    स्ट्रोक आने पर नीचे बताई गई बातों का ध्यान रखेंः

    लक्षण दिखाई देने पर तुरंत इमरेंजी चिकित्सा से संपर्क करें। इसके अलावा ब्रेन स्ट्रोक के लिए घर पर ही FAST टेस्ट किया जा सकता है। FAST टेस्ट की मदद से आप दो मिनट में ब्रेन स्ट्रोक के लक्षणों की पहचान कर सकते हैंः

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    फास्ट टेस्ट के 4 चरण होते हैंः

    1. पहले चरण F की पहचान करें- एफ का मतलब फेस है। यानी संभावित व्यक्ति को मुस्कराने के लिए कहें। अगर मुस्कराने के दौरान उसका चेहरे का एक हिस्सा लटका हुआ दिखाई दे, तो स्ट्रोक का खतरा हो सकता है।
    2. दूसरे चरण A की पहचान करें- ए का मतलब आर्म है। यानी संभावित व्यक्ति को दोनों हाथ ऊपर उठाने के लिए कहें। अगर इस दौरान उसका एक हाथ नीचे की तरफ आ जाए या वो ऊपर उठा नहीं पाए, तो यह स्ट्रोक के संकेत हो सकते हैं।
    3. तीसरे चरण S की पहचान करें- एस का मतलब स्पीच है। संभावित व्यक्ति को कोई शब्द दोहराने के लिए कहें। अगर उसे उस शब्द को दोहराने में परेशानी हो, तो यह स्ट्रोक का खतरा हो सकता है।
    4. चौथे चरण T पर एक्सन लें- अगर तीनों लक्षणों में से कोई एक भी दिखाई तो तुरंत आपातकालीन स्थिति में अस्पताल जाएं। यहां टी का मतलब टाइम टूकॉल इमरजेंसी सर्विस से है।

    अगर समय रहते साइलेंट स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक के लक्षणों की पहचान की जाए, तो भविष्य में होने वाली विकलांगता और मृत्यु दर को कम किया जा सकता है। उम्मीद है आपको साइलेंट स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक के बीच के अंतर को इस आर्टिकल में समझ आ गया होगा। तो अगर आपको अपने किसी परिचित को ऊपर बताए गए लक्षण दिखाई देते हैं, तो ये साइलेंट स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक में से किसी एक के लक्षण हो सकते हैं। ऐसा होने पर पीड़ित को तुरंत प्रभाव से अस्पताल ले जाना चाहिए और सही इलाज दिलाना चाहिए। आशा करते हैं आपको साइलेंट स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक से जुड़े सभी सवालों के जवाब इस आर्टिक में मिल गए होंगे। अगर फिर भी साइलेंट स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक से संबंधित आपके मन में कोई और सवाल है, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सभी सवालों के जवाब एक्सपर्ट के जरिए दिलाने की कोशिश करेंगे। इसके अलावा, आपको हमारा ये आर्टिकल कैसा लगा, हमें अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें, ताकि हम आपके लिए और भी अच्छी अच्छी जानकारियां लाते रहें और आपकी जानकारी बढ़ाते रहें। अपना ध्यान रखिए, स्वस्थ रहिए।

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