सीरो सर्वे एक प्रकार का एंटीबॉडी टेस्ट है, जो एक बड़े समूह में ब्लड सीरम का टेस्ट होता है। सीरो-सर्वे का इस्तेमाल नोवल कोरोनावायरस या SARS-Cov-2 की जांच के लिए किया जाता है। ये जांच जिला स्तर पर संक्रमण का पता लगाने के लिए की जाती है। इसकी निगरानी जनता और राज्य स्वास्थ्य विभाग की भागीदारी से होता है। जिसे आईसीएमआर (ICMR) और नेशनल सेंटर फाॅर डिजीज कंट्रोल (NSDC)की देखरेख में किया जाता है।
कोरोना में सीरो सर्वे क्यों किया जा रहा है?
सीरो सर्वे उन खास जिलों में किया जाता है, जहां कोरोना संक्रमण का हाई और लो रिस्क हो। ऐसे समूह के सीरो-सर्वे पर आधारित आबादी को रुटीन टेस्टिंग में शामिल किया जाता है। इस कदम से न सिर्फ सरकार और उसकी एजेंसियों को कोविड-19 की स्थिति की निगरानी रखने आसानी मिलती है, बल्कि देश के किसी भी हिस्से में कम्युनिटी ट्रांसमिशन को नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी। स्वास्थ्य मंत्रालय अब तक इस पर अड़ा रहा है कि देश में कम्युनिटी ट्रांसमिशन का अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। कुछ क्लस्टरों (क्षेत्र) में महामारी तेजी से फैली है, लेकिन कम्युनिटी ट्रांसमिशन नहीं हुआ है।
सरकार अप्रैल के मध्य से कोरोना में सीरो सर्वे संचालित कर रही है, अब धीरे-धीरे इसका डेटा जारी किया जा रहा है। जारी डेटा में आए आंकड़ें अच्छा संकेत दे रहे हैं। जारी डेटा का मतलब यह है कि ज्यादा लोगों में कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबाॅडीज विकसित हुए हैं। एंटीबॉडी टेस्ट के करने के पीछे एक और मकसद है, क्योंकि सिर्फ कुछ लोग ही कोविड-19 टेस्ट करा रहे हैं, जिससे कोरोना संक्रमण के प्रसार की सही तस्वीर सामने नहीं आ पा रही थी और ज्यादातर संक्रमित मरीजों को अलग नहीं रखा जा रहा था। इस तरह से यह सीरो सर्वे कोरोना संक्रमण और एंटीबाॅडीज की स्थिति की सही तस्वीर सामने लाने में मददगार है। यह एंटीबॉडी टेस्ट हर्ड इम्युनिटी की अवधारणा का पता लगाने में भी सहायक है।