मोतियाबिंद (cataracts) की समस्या
प्रीमैच्याेर ही नहीं बल्कि सामान्य शिशुओं में भी मोतियाबिंद की समस्या देखी जाती है, जो आगे चलकर उन्हें परेशान करती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण गर्भावस्था के दौरान मां के खान-पान में बड़ी कमी, रूबेला नामक वायरस का इंफेक्शन, गर्भावस्था में मां का कुछ दवाओं का सेवन करना और रेडिएशन (गर्भावस्था के दौरान एक्स-रे आदि करवाना) आदि हैं।
इसका इलाज यह है कि मां अगर गर्भावस्था के दौरान अच्छा खान-पान कर तो और इन चीजों से दूर रहे तो शिशु को ‘जन्मजात मोतियाबिंद’ से बचाया जा सकता है। ‘जन्मजात मोतियाबिंद’ में आंख की पुतली के बीच में सफेद रिफ्लेक्स दिखाई देता है। जन्मजात मोतियाबिंद होने पर डॉक्टर बच्चे की आंख की रोशनी की भी जांच करते हैं। अगर मोतियाबिंद आंख के पूरे लेंस में है, तो जल्द-से-जल्द मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराना जरूरी होता है। ऐसा ना करने पर आंख में एम्बलायोपिया (Amblyopia) होने की संभावना बढ़ जाता है, जिसमें आंख के पर्दे पर पाया जाने वाला मेक्यूला डल हो जाता है और आंखें सुस्त पड़ने लग जाती है।
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प्रीमैच्योर में भैंगापन होना ( Squint In Eyes)
भैंगेपन की समस्या सामान्य और प्रीमैच्याेर दोनों ही नवजात में होना आम बात है। बता दें कि भैंगेपन में बच्चे की आंख अंदर या बाहर की तरफ होने लगती है। कई बार एक आंख में और कई बार दोनों आंखों में भैंगेपन की समस्या हो जाती है। इसमें एक या दोनों आंखों के तिरछा होने से आंखें सुस्त होने लगती है, जिससे आंख की रोशनी कम होने लगती है। अगर शुरुआत में इस पर ध्यान दिया जाए तो इससे निपटा जा सकता है।
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जन्मजात काला मोतिया (Glaucoma)
आंखों में काला मोतिया की समस्या जन्मजात भी हो सकती है। इसे इन्फेंटाइल ग्लूकॉमा (Infantile Glaucoma) भी कहते हैं। इसमें आंख का ड्रेनेज सिस्टम आसामन्य होता है। इसकी वजह से आंख की रोशनी को पहुंचने वाले नुकसान की भरपाई करना मुश्किल होता है, लेकिन इसके प्रभाव को बढ़ने से रोका जा सकता है। बता दें कि इसमें आंख से लगातार पानी आने लगता है। रोशनी में आंख को चौंध लगती और खुलने में मुश्किल होती है। इसमें बच्चे की आंख का साइज भी बढ़ने लगता है। वैसे, आमतौर पर आंख का साइज 11 मिमी होता है लेकिन, इस समस्या में आंख का साइज 11 से बढ़कर 15 मिमी तक होने लगता है।
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रेटिनोपैथी (Retinopathy) ऑफ प्रीमैच्योरिटी
यह समस्या उन बच्चों में अधिक पाई जाती है जो समय से पहले जन्म लेते हैं और जिन बच्चों का वजन सामान्य बच्चों की तुलना में कम होता है। बता दें कि गर्भावस्था में बच्चे की आंख का विकास तीसरे महीने में होने लगता है और आंख के पर्दे में नई खून की नालियां बनने लगती हैं, जिससे कई बार आंख के पर्दे पर खून आने और पर्दे के खिसकने की संभावना बनी रहती है। यह बीमारी आंख की रोशनी के लिए खतरनाक होती है। इसलिए लेजर द्वारा इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।