ऐसा माना जाता है कि अभी तक बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण का कोई भी इलाज विकसित नहीं किया जा सका है। वहीं कुछ तरीके हैं जिनकी मदद से बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण को कम किया जा सकता है। इनमें स्पीच थेरेपी (Speech therapy) और मोटर स्किल (Motor skill) शामिल हैं। इनकी मदद से बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा बच्चों के साथ प्यार और धैर्य से बर्ताव करने से भी इस बीमारी से जूझ रहे बच्चों को सामान्य जिंदगी जीने में मदद की जा सकती है।
आप ये जान लें कि ऑटिस्टिक बच्चे का जीवन सामान्य बच्चों की तुलना में बहुत ही कठीन होता है। लेकिन ऐसे में पेरेंट्स का सपोर्ट उनके इस संघर्ष को कम कर सकता है। वहीं कई मामलों में देखा जाता है कि पेरेंट्स सही समय पर बच्चों पर ध्यान नहीं देते और देर हो जाने पर मेडिकल हेल्प पाने की कोशिश करते हैं। लेकिन सही तरीका यह होगा कि बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण की शुरुआती पहचान कर ही उसे मदद मिलनी चाहिए। साथ ही बच्चे की ऐसी परिस्थिति में पेरेंट्स को बहुत धैर्य रखने की जरूरत होती है।
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बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण के इलाज के लिए होती हैं ये थेरेपी
बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण को कम करने के लिए शिक्षात्मक चिकित्सा
इस चिकित्सा में ऑटिज्म रोगी के कौशल विकास और संचार कौशल को विकसित करने की दिशा में काम किया जाता है। इसमें एक्सपर्ट्स की टीम खासतौर पर रोगी के लिए केंद्रित प्रोग्राम तैयार करते हैं।
फैमिली थेरेपी से दूर होंगे बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण
फैमिली थेरेपी में ऑटिज्म रोगी के परिवार (Family), उसके दोस्त और देखभाल करने वाले लोगों को सिखाया जाता है कि कैसे रोगी के साथ व्यवहार, बातचीत और खेलकूद करें। इसकी मदद से वो तेजी से चीजें सीखता है और रोगी में ऑटिज्म के लक्षण के तौर पर दिखने वाला नकारात्मक व्यवहार खत्म होता है।
ऑक्यूपेशनल थेरेपी
इस थेरेपी में ऑटिज्म रोगी को दैनिक जीवन से जुड़े काम पूरे करने के लिए दिए जाते हैं। इसकी मदद से वे भविष्य में इन चीजों को करने में सक्षम हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर शुरुआती अवस्था में बच्चों को कपड़े पहनना (Dressing tips) या चमच्च का इस्तेमाल जैसी चीजें सिखाई जाती हैं।
आहार चिकित्सा
कई वजहों से ऑटिज्म के रोगियों में जरूरी पोषक तत्वों की कमी होती है और कई कुपोषित होते हैं। इसकी वजह से भी उनके विकास में परेशानी आती है। कुछ रोगी किसी एक ही प्रकार का खाना खाते हैं, तो कुछ खाना खाने से डर लगता है। डर की वजह डाइनिंग टेबल, तेज लाइट या वातावरण हो सकता है। कुछ इसलिए भी नहीं खाते क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी बीमारी की वजह उनका खाना है। ऐसी स्थिति में बच्चे के माता-पिता या केयरटेकर किसी डाइटीशियन की मदद लेकर उसके खाने का प्लान बना सकते हैं। डाइटीशियन बच्चे का चेकअप कर उसके लिए पौष्टिक खाने का चार्ट (Diet plan) बनाते हैं, जिससे बच्चा कुपोषण और उससे संबंधित बीमारियों से बच सकता है। इस तरह से निश्चित रूप से ऑटिज्म के लक्षण को कम करने में मदद मिलेगी।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।