के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr. Pooja Bhardwaj
क्या आपका बच्चा आपकी आवाज सुनकर या चेहरे के हाव-भाव देखकर किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है? दूसरे बच्चों की तुलना में कम बोलना,शब्दों को सही तरह से बोल न पाना या फिर आपकी बात का जवाब सही तरीके से नहीं दे पाना ऑटिज्म के लक्षण हो सकते हैं। यह रोग चिकित्सा क्षेत्र के लिए चुनौती बना हुआ है और इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। ऑटिज्म होने के स्पष्ट कारणों का पता अभी चल नहीं पाया है, लेकिन, ऑटिज्म होने की वजह नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचने, ब्रेन एक्टिविटी असामान्य होना आदि माने जाते हैं। ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों की देखभाल ध्यान से करें इस बीमारी को हल्के में ना लें।
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बचपन में ही इस बीमारी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। यह अवस्था 1-2 साल नहीं बल्कि पूरी उम्र चलती है। इसके लिए मनोचिकित्सक से संपर्क करना बहुत जरूरी है, ताकि उनकी अवस्था में सुधार किया जा सके। बच्चों में ऑटिज्म की बीमारी को ठीक करने के लिए थेरिपी का सहारा लिया जा सकता है। जब बच्चों को समय पर थेरिपी दी जाती है तो ऑटिज्म के लक्षणों में सुधार होता है। समाज के कुछ लोगों का मानना है कि ऐसे बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ नहीं रखना चाहिए, जो कि गलत है।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चा भी सामान्य जीवन जी सकता है। बच्चे को स्पीच थेरिपी दी जाती है, जिससे वो एक ही शब्द को बार-बार रिपीट नहीं करता है। साथ ही बच्चा अजीब हरकतें भी कम करता है। अगर ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे को सामान्य माहौल दिया जाए तो बच्चे को पॉजिटिव चेंजेंस देखने को मिलते हैं। पेरेंट्स के साथ ही बच्चे को पूरे परिवार का सपोर्ट चाहिए होता है। अगर आपके बच्चे को किसी अन्य प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ रहा है तो बेहतर होगा कि आप तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
नोट : यहां दी गई जानकारी किसी भी स्वास्थ्य परामर्श का विकल्प नहीं है। हमेशा अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों की देखभाल करते वक्त कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ऑटिस्टिक बच्चों को कुछ सिखाने के लिए जल्दबाजी न करें। उन्हें धीरे-धीरे बात समझाने की कोशिश करें। इसके बाद उन्हें बोलना सिखाएं। बड़े-बड़े शब्दों की जगह पर उनसे छोटे-छोटे वाक्यों में बात करें।
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ऑटिज्म से ग्रस्त लोगों और बच्चों का ठीक होना मुश्किल है, क्योंकि यह एक प्रकार की विकास संबंधी बीमारी है। इसके लिए मनोचिकित्सक की सलाह लेना बहुत जरूरी है। सही ट्रेनिंग से इनकी हालत में सुधार किया जा सकता है। रोजमर्रा के काम करने में असमर्थ यह धीरे-धीरे अपने काम करने सीखना शुरू कर देते हैं। वहीं, प्रशिक्षण में मनोरोग विशेषज्ञ माता-पिता के साथ बैठकर बच्चों की सारी कमियों की पहचान कराते हैं और उन्हें यह बताते हैं कि इन कमियों से कैसे निपटा जा सकता है। मां-बाप को भी इनकी पूरी मदद करनी पड़ती है।
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आजकल ऑटिस्टिक और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए अलग से स्कूल शुरू हो चुके हैं। यहां हर बच्चे पर उनकी समस्या के अनुसार ट्रीटमेंट और ट्रेनिंग दी जाती है। यहां उन पर किसी प्रकार की रोक टोक नहीं होती और उन्हें खुद को समझने के लिए खुला वातावरण दिया जाता है। ऐसे स्कूलों में तीन साल की उम्र के बाद दाखिला कराया जा सकता है।
बच्चों के व्यवहार को कभी नजर अंदाज न करें। ऊपर बताए गए लक्षण देखने को मिलें, तो यह ऑटिज्म का संकेत हो सकता है। अगर ऐसा हो भी तो निराश न हों, अब ऑटिस्टिक बच्चों के ट्रीटमेंट और उनकी शिक्षा के लिए खास तरह के स्कूल भी शुरू किए जा चुके हैं।
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ऑटिज्म ग्रसित बच्चे कुछ ऐसी हरकतें कर सकते हैं, जिससे आपको गुस्सा आ सकता है। आपको बच्चे को सकारात्मक माहौल देने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आप बच्चे को किसी अच्छे काम के लिए रिवार्ड यानी स्टिकर, बलून या अन्य सामान देंगी तो बच्चे को समझ आ जाएगा कि कौन सा काम करना अच्छा होता है। आपके इस कदम से बच्चे को भी अच्छा लगेगा और अगली बार वो वैसा ही काम करेगा। आप किसी दिन बच्चे के साथ ज्यादा खेलकर उन्हें सरप्राइज भी कर सकती हैं। अगर आप बच्चे को अच्छा माहौल देंगी तो वो भी पॉजिटिव रिएक्ट करेगा और चिड़चिड़ापन कम होगा। ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों की देखभाल ऐसे ही करें।
अगर आपको ये लग रहा है कि आपका बच्चा बीमार है और उसे ज्यादा से ज्यादा घर में ही रहने की जरूरत है तो ये गलत सोच है। अगर आप बच्चे को रोजाना की एक्टिविटी के साथ ही बाहरी दुनिया के बारे में जानकारी देंगी तो बच्चा आसपास की चीजों को आसानी से समझ सकेगा। जब भी घर के बाहर शॉपिंग के लिए जाएं, या फिर किसी रिश्तेदारों के यहां जाएं तो बच्चे को भी साथ ले जाएं। ऐसा करने से बच्चे को आसपास के माहौल और लोगों को समझने में मदद मिलेगी। बच्चों को बाहरी दुनिया से काट कर न रखें। ये बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है।
अगर आपका बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है तो आप स्पेशल ग्रुप से भी सपोर्ट ले सकती हैं। कुछ प्रोफेशनल लोग, फैमिली मेंबर इस परेशानी से निपटने में आपकी मदद कर सकते हैं। साथ ही फैमिली काउंसलिंग भी आपकी मदद कर सकती है। आपको ऐसी फैमिली की हेल्प लेनी चाहिए, जहां ऑटिज्म की बीमारी से पीड़ित लोग रहते हो।ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों की देखभाल जरूरी है।
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