- इस उम्र तक बच्चे/टीनेज असामान्य रूप से सोचना शुरू कर देते हैं और काल्पनिक समस्याओं (hypothetical problems) के बारे में तर्क देते हैं।
- टीनेज मोरल, साइकोलॉजिकल, एथिकल, सोशल और पॉलिटिकल मुद्दों के बारे में ज्यादा सोचने लगते हैं जिसमे थियोरेटिकल और एब्स्ट्रैक्ट रिजनिंग की जरूरत पड़ती है।
इस सिद्धांत के आखिरी चरण में लॉजिक में वृद्धि होती है, साथ ही इसमें डिडक्टिव रिजनिंग और अमूर्त विचार (abstract ideas) की समझ में वृद्धि होती है। बच्चे अधिक वैज्ञानिक तरीके से सोचने लगते हैं।
पियाजे बच्चों के बौद्धिक विकास (intellectual development) को मात्रात्मक प्रक्रिया यानी सिर्फ क्वांटिटी बढ़ाने के नजरिए से नहीं देखते हैं। सिर्फ बहुत अधिक जानकारी जुटाना ही उनके नजरिए में विकास नहीं है, बल्कि सोचने का तरीका बदलना महत्वपूर्ण है।
पियाजे के विकासात्मक चरण को बच्चों के सीखने और विकास के क्रम में कैसे लागू करें? (How to apply Piaget’s stages to learning and development)
पियाजे के विकासात्मक चरण को बच्चों की शिक्षा में लागू करने के लिए यह समझना जरूरी है कि वह अभी विकास के किस चरण में है। टीचर्स और पैरेंट्स बच्चे को एक्सपेरिमेंट और वातावरण को एक्सप्लोर करने का मौका दें, तो वह अलग-अलग कॉन्सेप्ट्स को समझते हैं।
प्रीस्कूल (preschool) और किंडरगार्टेन (kindergarten) के बच्चों को प्ले बेस्ड स्कूल प्रोग्राम जरिए बहुत कुछ सिखाया जा सकता है जहां वह गलतियां करके सीखते हैं और असली दुनिया से उनका सामना होता है। पियाजे के सिद्धांत (Piaget’s philosophy) को किसी भी ऐजुकेशन प्रोग्राम में शामिल किया जा सकता है।
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विकास के अलग-अलग चरणों में इस तरह शामिल करें पियाजे का सिद्धांत
सेंसरिमोटर (Sensorimotor)
- खेलने के लिए असली चीजें दें।
- खेल को पांच इंद्रियों (five senses) से जोड़े।
- छोटे बच्चों के लिए रूटीन बनाएं। यह बच्चों में कम्यूनिकेशन स्किल डेवलप करने में मददगार है।
प्रीऑपरेशनल (Pre operational)