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निकल गई है ड्यू डेट, अपना सकते हैं लेबर पेन के ये नैचुरल टिप्स

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Mayank Khandelwal


Sunil Kumar द्वारा लिखित · अपडेटेड 28/06/2021

    निकल गई है ड्यू डेट, अपना सकते हैं लेबर पेन के ये नैचुरल टिप्स

    कई बार डिलिवरी डेट निकलने के बाद भी लेबर पेन ((Labor pain) शुरू नहीं होता। ऐसे में लेबर को शरू करने के लिए महिलाएं कुछ प्राकृतिक तरीके अपनाती हैं। जिससे यूटरस उत्तेजित हो जाता है और लेबर पेन (Labor pain) से शुरू हो सकता है। यहां हम आपको लेबर शुरू करने के ऐसे ही प्राकृतिक तरीके बता रहे हैं। इनका प्रयोग करने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर सलाह लें और किसी की देखरेख में इन उपायों को अपनाएं।

    लेट लेबर (Labor pain) क्या है?

    सामान्य तौर पर एक नॉर्मल प्रेग्नेंसी ( Pregnancy) पीरियड 38 से 40 सप्ताह का होता है। अगर 38वें सप्ताह से पहले लेबर पेन (Labor Pain) शुरू हो जाता है, तो उसे अर्ली लेबर कहा जाता है। इस सप्ताह से पहले जन्मे बच्चे प्रीमैच्योर बेबी (Premature baby) कहलाते हैं। लेकिन कई बार महिला को प्रेग्नेंसी के 40 सप्ताह के बाद भी लेबर पेन शुरू नहीं होता। ऐसे में उन्हें अप्राकृतिक लेबर दिया जा सकता है, जिससे उनकी डिलिवरी (Delivery) कराई जाती है। हालांकि, कई ऐसे भी प्राकृतिक तरीके हैं, जिनकी मदद से लेबर पेन शुरू कराया जा सकता है। इसके बारे में हम आपको नीचे बताने जा रहे हैं।

    लेबर पेन (Labor Pain) को शुरू करने के नैचुरल उपाय (Natural Treatment)

    बॉडी को एक्टिव रखें ( Active Body)

    यदि बॉडी तनाव में है तो लेबर पेन शुरू नहीं होगा। इसलिए इस बात का स्ट्रेस लेकर या चिंता करके  सिर्फ आराम ही न करें। कुछ छोटे-मोटे काम करते रहे जिससे  बॉडी एक्टिव रहे। प्रशिक्षित व्यक्ति से मसाज (Massage) कराएं। आप एक्यूपंचर, एक्यूप्रेशर (Acupressure) की मदद भी ले सकती हैं । लेबर शुरू करने में यह मददगार हो सकते हैं।

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    केस्टर ऑयल (Castor Oil)

    प्राकृतिक रूप से लेबर को शुरू करने के तरीकों में केस्टर ऑयल (Castor Oil) काफी प्रचलित है। लेबर को शुरू करने के लिए इसका इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इसे इस्तेमाल करने का सबसे सामान्य तरीका इसे सीधे सर्विक्स पर लगाया जाए। इसे पेट पर नहीं लगाना चाहिए। केस्टर ऑयल को लेकर डॉक्टरों की अलग-अलग राय है। इसे खाने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इस पर मुंबई में हैलो स्वास्थ्य की कंसल्टिंग डॉक्टर श्रुति श्रीधर ने कहा, ‘यदि महिलाओं की ड्यू डेट निकल गई है तो वो केस्टर ऑयल का इस्तेमाल कर सकती हैं। यह कॉन्ट्रैक्शन को बढ़ाता है, जिससे महिलाओं को लेबर शुरू हो जाता है।’  डॉक्टर श्रुति श्रीधर (एमडी, (होम), एमएसी, डीएफएसएम) हैं।

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    निप्पल्स (Nipples) को उत्तेजित करना

    ब्रेस्ट को उत्तेजित करने से ऑक्सीटॉसिन रिलीज (Oxytocin release) होता है। इससे यूटरस में कॉन्ट्रैक्शन होता है। इससे कई बार लेबर को शुरू करने में सहायता मिलती है। वहीं, कुछ महिलाएं लेबर को शुरू करने के लिए निप्पल्स पर मालिश करती हैं। बिना डॉक्टर की सलाह के आपको यह तरीका नहीं आजमाना चाहिए। ज्यादातर महिलाएं ब्रेस्ट स्टिमुलेटिंग (Breast stimulating) को लेकर अपने अनुभवों के आधार पर यह दावा करती हैं लेकिन, इस संबंध में अभी पर्याप्त अध्ययन की आवश्यकता है।

    स्पाइसी फूड्स (Spicy Foods) भी हो सकते हैं फायदेमंद

    केस्टर ऑयल की तरह ही मसालेदार खाना असर दिखाता है। इससे अपच की समस्या (Indigestion problem) या उबकाई (Nausea) जैसा महसूस हो सकता है। इसकी वजह से आपको यूटरस में जलन और कॉन्ट्रैक्शन का अहसास हो सकता है। हालांकि, केस्टर ऑयल की तरह ही यह सही लेबर में कितना असरदार है इसके प्रमाण नही हैं।

    प्रसव पीड़ा की तारीख: वॉक पर जाएं ( Walk)

    लेबर पेन के लिए कॉन्ट्रैक्शन (Contraction) का अहसास हो रहा है लेकिन, लेबर पेन नही हैं तो ऐसे में चलने- फिरने से इसमें सुधार हो सकता है। चलने से आपके हिप्स हिलते- डुलते हैं, जिससे शिशु को डिलिवरी की अवस्था में आने में मदद मिलती है। सीधे खड़े रहने से गुरुत्वाकर्षण शिशु को पेल्विक में की तरफ ले जाने में मदद करता है। फिजिकल एक्टिविटी (Physical activity) के सवाल का जवाब देते हुए डॉक्टर श्रुति ने कहा, ‘प्राकृति तरीके से लेबर को शुरू करने में फिजिकल एक्टिविटी की भूमिका अहम होती है। कुछ महिलाओं को हल्की एक्सरसाइज  () या चलने फिरने के लिए कहा जाता है, जिससे उन्हें लेबर शुरू हो जाए।’ लेबर पेन लाने के लिए कमरे के अंदर मूवमेंट (Movement) करने से ब्लड फ्लो बढ़ जाता है, जिससे डाइलेशन में तेजी आती है। आप कमरे में चल फिर सकती हैं। इसके लिए आपको भागने या दौड़ने की जरूरत नहीं है। बेड या कुर्सी पर सिंपल मूवमेंट करने से लेबर बढ़ता है। तकनीकी रूप से ऐसा करने से आपकी गर्भाशय ग्रीवा () पर दबाव पड़ता है।

    प्रसव पीड़ा की तारीख: एक्यूप्रेशर (Acupressure) भी होगा फायदेमंद

    कुछ जानकारों का मानना है कि एक्यूप्रेशर (Acupressure)से लेबर में तेजी आती है। हालांकि, इस प्रकार के दावों की अभी तक वैज्ञानिक रूप से पूरी तरह पुष्टि नहीं हो पाई है। ऐसे में एक्यूप्रेशर का सहारा लेने से पहले आपको एक ट्रेन्ड प्रोफेशनल से सलाह जरूर लेनी चाहिए।ये प्राकृतिक तरीके लेबर (Natural Labor Pain) पेन शुरू करने में मदद कर सकते हैं। इन उपायों को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर से इस बारे में कंसल्ट करना न भूलें।

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    अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (QNA)

    सवाल : मेरी डिलिवरी की ड्यू डेट (Due date of delivery) निकल गई है, क्या ये खतरे का लक्षण है?

    जवाब : ऐसा कई महिलाओं के साथ होता है, जिनकी ड्यू डेट ( Due Date) बढ़ जाती है और 38वें सप्ताह के बाद भी डिलिवरी नहीं होती। हालांकि, ये खतरे की कोई बात नहीं है। आप इसके लिए अपने डॉक्टर से समय समय पर बात करती रहें। डॉक्टर आपको प्राकृतिक लेबर (Natural Labor Pain) लाने के और भी कई तरीके बता सकते हैं, जिससे आप एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे पाएंगी।

    सवाल : मेरी प्रसव पीड़ा की तारीख निकल गई, क्या अब मेरी सिजेरियन डिलिवरी (Cesarean delivery) होगी?

    जवाब : डिलिवरी की तारीख निकल जाने का ये मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि अब आपकी सिजेरियन डिलिवरी (Cesarean delivery) ही होगी। आपकी कौन-सी डिलिवरी होगी, ये आपके और बच्चे के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।

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    तो क्या आप भी प्रेग्नेंट (Pregnant) हैं और आपकी भी ड्यू डेट निकल गई है? ऐसा है तो डॉक्टर की सलाह लेकर आप भी ऊपर बताए गए लेबर लाने के उपाय अपना सकती हैं। इस बात का ध्यान रखें कि आप कोई भी उपाय बिना डॉक्टर की सलाह के न अपनाएं। डॉक्टर ही आपको सही सलाह देंगे कि इनमें से कौन सा उपाय आपके लिए कारगर साबित हो सकता है। जिन लोगों को ड्यू डेट या प्रसव पीड़ा की डेट निकल जाने के बाद भी दर्द नहीं होता है, बेहतर होगा कि उन्हें एक बार डॉक्टर के पास जाकर चेकअप (Checkup) करवा लेना चाहिए। कई बार बच्चे की हार्ट बीट लो होने लगती है, इसलिए बेहतर होगा कि आप लापरवाही न बरतें और तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।

    उम्मीद है आपको हमारा ये आर्टिकल पसंद आया होगा और इसमें दी गई जानकारियां आपके काम आएंगी। अगर ये आर्टिकल आपको अच्छा लगा तो इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ शेयर करना न भूलें, ताकि उन्हें इसकी सही जानकारी हो सके और गर्भवती महिला स्वस्थ रहते हुए स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सके।

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