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स्थिति और ज्यादा न बिगड़े इसलिए निकाल देते हैं बच्चेदानी
गायनेकोलाॅजिस्ट डाॅ. प्रेमलता बताती हैं कि, “डिलिवरी में ब्लीडिंग के कारण स्थिति और ज्यादा ना बिगड़े ऐसा सोचकर या फिर एनएक्रीटा व परएक्रीटा की कंडिशन में महिला के हालात यदि ज्यादा बिगड़ जाए और जान का खतरा महसूस हो तो इस स्थिति में मरीज की बच्चेदानी को निकाल दिया जाता है। ऐसा तभी किया जाता है जब तमाम कोशिशों के बावजूद डिलिवरी के बाद ब्लीडिंग नहीं रुकती है। यदि बच्चेदानी को निकाल दिया जाए तो फिर वह महिला कभी मां नहीं बन सकती है।
प्लासेंटा एक्रीटा के बारे में पता चल जाए तो
यदि आप प्लासेंटा एक्रीटा से ग्रसित हो और जांच में यह पता चल जाए तो उस परिस्थितियों में आपको मेडिकल स्पेशलिस्ट डाक्टरों से सलाह लेने की आवश्यकता है। जो इस प्रकार की परिस्थितियों से वाकिफ हों। टोरंटो माउंट सिनाई हास्पिटल के मेडिकल स्पेशलिस्ट जान किंगडम बताते हैं कि यदि आप ग्रामीण इलाकों में रहते हैं तो उस स्थिति में आपको बड़े शहरों की ओर रूख करना होगा क्योंकि इसका इलाज बड़े अस्पताल में ही संभव है। ताकि डिलिवरी व डिलिवरी में ब्लीडिंग का डाॅक्टर आसानी से हल निकाल सके। क्योंकि डिलिवरी में ब्लीडिंग जैसी परिस्थितियों में रेडियोलाॅजिस्ट, डायग्नोस्टिक इमेजिंग स्पेशलिस्ट, यूरोलाॅजिस्ट, आब्स्टेट्रिशियन की सलाह की आवश्यकता पड़ सकती है। जरूरत पड़ने पर खून भी चढ़ाना पड़ सकता है।
दिल्ली के सपरा क्लीनिक की सीनियर गायनोकोलॉजिस्ट डॉक्टर एस के सपरा का कहना है कि बच्चे के जन्म के बाद के, मां को अपने डायट का विशेष ध्यान रखना चाहिए। कई बार प्लासेंटा एक्रीटा के बारे में अल्ट्रासाउंड में ही पता लग जाता है। वहीं कई बार डाक्टर कुछ जरूरी टेस्ट कर इस बात का पता लगाने की कोशिश करते हैं कि कहीं प्लासेंटा सामान्य की तुलना में ज्यादा या कम ग्रो तो नहीं कर रहा। प्लासेंटा की जांच करने के लिए मुख्य रूप से इमेज टेस्ट, अल्ट्रासाउंड व मैग्नेटिक रिसोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) और ब्लड की जांच कर अल्फाफेटोप्रोटीन (alphafetoprotein) की जांच की जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि डिलिवरी में ब्लीडिंग की समस्या को काफी हद तक रोका जा सके और कम किया जा सके।
अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।