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क्या आपका लाडला भी ज्यादा रोता है! कॉलिक तो नहीं है इसका कारण?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Mayank Khandelwal


Shikha Patel द्वारा लिखित · अपडेटेड 18/03/2021

    क्या आपका लाडला भी ज्यादा रोता है! कॉलिक तो नहीं है इसका कारण?

     रोना नवजात शिशुओं के लिए बात करने का एक तरीका है, लेकिन बच्चे का ज्यादा रोना किसी परेशानी का संकेत भी हो सकता है। आमतौर पर शिशु दिन में लगभग एक से तीन घंटे रोते हैं, लेकिन शिशु रोजाना या हफ्ते में तीन दिन, तीन घंटे या फिर इससे ज्यादा समय तक रोए तो हो सकता है कि शिशु को कॉलिक (Colic) की समस्या हो सकती है। 

    एक पब्लिकेशन से बात करते हुए दृष्टि बिजलानी ने बताया कि “कॉलिक की समस्या हर तीन में से एक शिशु को हो सकती है। यह सामान्य तौर पर जन्म के दो से चार सप्ताह बाद तक शिशुओं में देखी जा सकती है जो धीरे-धीरे खुद ही खत्म हो जाती है।’ “हैलो स्वास्थ्य’ के इस आर्टिकल में जानते हैं कि बच्चे का ज्यादा रोना (Excessive Crying) कब समस्या बन जाता है? इसके लिए क्या करना चाहिए?

    कैसे पहचानें कि बच्चे का ज्यादा रोना ‘कॉलिक’ (Colic) है?

    बच्चे का ज्यादा रोना कॉलिक (Colic) है या नहीं यह मां के लिए यह पहचानना मुश्किल हो जाता है। नवजात शिशुओं में यह समस्या (लड़कों और लड़कियों में) एक ही उम्र पर होती है। इसके लिए इन लक्षणों पर ध्यान दें जिससे पता लग सके कि बच्चे का ज्यादा रोना नॉर्मल रोना (Cry) नहीं है, बल्कि कॉलिक है।

    • दिन में तीन घंटे से ज्यादा रोना (अक्सर शाम के समय)
    • मां के द्वारा शिशु को चुप कराने पर भी शांत न होना 
    • रोने के दौरान बीच-बीच में सामान्य व्यवहार करना (खुश रहना) 
    • शिशु बीमार न हो, फिर भी उसका ज्यादा रोना 
    • हाई पिच पर शिशु का रोना

    और पढ़ेंः नवजात शिशु का रोना इन 5 तरीकों से करें शांत

    बच्चे का ज्यादा रोना या कॉलिक के क्या कारण हैं? (Cause of Colic)

    बच्चे का ज्यादा रोना या कॉलिक का सटीक कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है। कुछ शिशुओं में देखा गया है कि किसी अंदरूनी समस्या जैसे कब्ज (Constipation), एसिड रिफ्लक्स (Acid reflux), लाइट, शोर आदि के प्रति संवेदनशीलता या ओवर स्टिम्यूलेशन के कारणों की वजह से कॉलिक की समस्या हो जाती है, हालांकि अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है।

    और पढ़ें : रोना क्यों जरुरी है? जानें क्या हैं रोने के फायदे

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    शिशु को शांत करने के लिए क्या करें?

    बच्चे का ज्यादा रोना या कॉलिक की समस्या 10 से 40 प्रतिशत शिशुओं को प्रभावित करती है। यह समस्या डेढ़ महीने के बच्चे से शुरू होकर छह महीने की उम्र तक भी रह सकती है। बच्चे का ज्यादा रोना (कॉलिक) फिलहाल किसी तरह की दवाओं से कम नहीं किया जा सकता है। पेरेंट्स को इसके लिए इतना परेशान होने की भी जरुरत नहीं होती है क्योंकि यह किसी तरह के दर्द की वजह से नहीं होता है। शिशु को चुप कराने के लिए शिशु को अपनी गोद में उठाएं, उसकी पीठ थपथपाएं या गाना सुनाएं, शिशु से बात करें। ये सब छोटे-छोटे उपाय उसे शांत करने के लिए पर्याप्त होंगे। ये सब करने के बाद भी बच्चे का ज्यादा रोना कम नहीं हो रहा है तो यह चिंता का विषय हो सकता है।  

    और पढ़ें : डिलिवरी के बाद शिशु का रोना क्यों है जरूरी?

    बच्चे का ज्यादा रोना या कॉलिक (Colic) होने पर डॉक्टर से कब संपर्क करना चाहिए?

  • वैसे तो एक शिशु का रोना सामान्य है, लेकिन जब शिशु तीन घंटे से ज्यादा एक हाई पिच पर रोए और उसका कारण भी समझ न आए तो डॉक्टर से सलाह लें। 
  • शिशु का अत्यधिक रोना एक दिन में कम न हो, तो ऐसी स्थिति में चिकित्सीय परामर्श जरूरी है। 
  • अत्यधिक रोने के साथ शिशु में बुखार (Fever) जैसे अन्य लक्षण भी दिखें तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। 
  • बच्चे का ज्यादा रोना पेरेंट्स को परेशान कर सकता है। हालांकि अक्सर बिना किसी बात के भी नवजात शिशु नियमित रूप से दिन में एक से चार घंटे रोते हैं तो हो सकता है कि पेरेंट्स को उनके चुप न होने पर गुस्सा आए। ऐसी स्थिति में खुद को थोड़ा शांत रखें। अगर फिर भी शिशु शांत न हो डॉक्टर से संपर्क करें। 

    कई बार बच्चे का ज्यादा रोना किन्हीं विशेष वजहों से होता है। वे कई शारीरिक परेशानियाें से जूझ रहे होते हैं। जिनके बारे में कई बार पेरेंट्स को पता नहीं चल पाता। आइए जानते हैं उनके बारे में।

    बच्चे का ज्यादा रोना कब्ज (Constipation) की वजह से भी हो सकता है

    डॉक्टर्स के मुताबिक, नवजात शिशु दिन में चार या पांच बार या हर ब्रेस्टफीडिंग (Breastfeeding) के बाद स्टूल पास करते हैं। यह सामान्य स्थिति होती है। बच्चे का स्टूल मुलायम से टाइट होना या पास करने में दिक्कत होना कब्ज का ही रूप है। ऐसा होने पर बच्चे असहज हो जाते हैं और रोना शुरू कर देते हैं। ज्यादातर शिशुओं का स्टूल हमेशा वॉटरी या मुलायम आता है। हालांकि, इसकी फ्रीक्वेंसी में विभिन्नता हो सकती है।’

    उन्होंने बताया कि यदि छोटे शिशु का चार या पांच दिन में स्टूल मुलायाम आता है तो उसे कब्ज की दिक्कत नहीं होती है। हालांकि मां का दूध पीने पर शिशु की बॉडी अलग तरह से प्रतिक्रिया देती है। वहीं, फॉर्मूला बेस्ड फूड (Formula based feeding) जैसे पाउडर काऊ मिल्क देने पर शिशु दिन में एक बार या अगले दिन स्टूल पास कर सकता है। पाउडर वाले दूध का शिशु की बॉडी में अलग प्रभाव पड़ सकता है, जिससे मां का दूध पीने पर स्टूल पास करने की फ्रीक्वेंसी और पाउडर दूध पीने पर स्टूल की फ्रीक्वेंसी भिन्न हो सकती है।

    बच्चों में कब्ज से बचाव के घरेलू उपाय जिससे बच्चे का ज्यादा रोना कम होगा (Home remedies for Constipation)

    6 महीने तक बच्चे सिर्फ मां का ही दूध पीते हैं। मां के दूध के अलावा उन्हें कुछ भी खिलाने-पिलाने से डॉक्टर सख्त मना करते हैं। ऐसे में मां जो भी खाएगी उसका असर बच्चे पर भी होता है। इसलिए मां को भी अपने आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिएः

    • छोटे शिशु सिर्फ मां का दूध पीते हैं, इसलिए जरूरी है कि मां अपनी डायट में हरी सब्जियां, फल और फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों को शामिल करें।
    • शिशु के शौच करने का एक निश्चित समय निर्धारित करें।
    • शिशु को कभी भी भूखा न रखें और न ही उसे बहुत ज्यादा दूध पिलाएं। हर दो से तीन घंटे के बीच में बच्चे को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दूध पिलाएं रहें।

    और पढ़ें: बर्थ प्लान करते समय इन बातों का रखें विशेष ध्यान

    बच्चे का ज्यादा रोना गैस की वजह से भी हो सकता है

    शिशु के पेट में गैस (Acidity) बनना एक आम समस्या है। इस स्थिति में पेट या आंत में गैस के छोटे-छोटे बबल्स बन जाते हैं। कुछ मामलों में इससे पेट पर दबाव पड़ता है, जिससे दर्द का अहसास होता है। कुछ बच्चों को गैस से परेशानी नहीं होती, लेकिन कुछ मामलों में शिशु जब तक वह गैस पास नहीं कर लेता तब तक वह बेचैन रहता है और रोता रहता है।

    हम उम्मीद करते हैं कि बच्चे का ज्यादा रोना जिसे कॉलिक (Colic) कहा जाता है पर आधारित यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान और उपचार प्रदान नहीं करता।

    डिस्क्लेमर

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