डायपर का काम होता है कि वह बच्चों के पेशाब (Urine) और मल को अच्छे से सोख सकें और साथ ही लीक न करें और न ही भारी महसूस हो। अगर डायपर लीक करता है, तो बच्चे की स्किन गीलेपन की संपर्क में आती है और इस कारण उसे रैशेज या अन्य तकलीफें हो सकती हैं।
गीलापन बताने के लिए इंडिकेटर
आज के दौर में कई ब्रांड्स ऐसे हैं, जो डायपर्स में इंडिकेटर देते हैं, जो बताता है कि डायपर कब पूरी तरह भर चुका है। इनमें इंडिकेटर लाइन्स होती है, जो कलर बदलती हैं और बताती है कि अब डायपर इससे ज्यादा लिक्विड नहीं सोख सकता है। ऐसे में मां के लिए बहुत आसान हो जाता वे बस इन लाइन्स को देखकर पता लगा लेती हैं कि अब डायपर बदलने की जरूरत है।
डायपर की सॉफ्टनेस भी देखें
बच्चों की त्वचा बहुत ही नाजुक और सेंसिटिव होती है। ऐसे में डायपर के मैटेरियल का ध्यान रखना जरूरी हो जाता है। पेरेंट्स ध्यान दें कि डायपर ऐसे मैटेरियल का बना हो जिससे बच्चों को कोई परेशानी न हो। साथ ही यह फैब्रिक हवा के फ्लो को न रोके।
डायपर की फिटिंग
डायपर खरीदते समय पेरेंट्स यह भी देखें कि डायपर कितना स्ट्रेच हो सकता है। डायपर के स्ट्रेचेबल होने से यह बच्चे को ठीक से फिट आता है और साथ ही बच्चे को इससे इरीटेशन नहीं होती है।
अगर आप डायपर से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं, तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा।