कोई भी कंपनी और संस्था किसी भी महिला कर्मचारी को गर्भावस्था के कारण नौकरी से नहीं निकाल सकती है। अगर वह ऐसा करती हैं तो मैटरनिटी लीव एक्ट के तहत आप संस्था पर कानूनन कार्रवाई कर सकती हैं।
मैटरनिटी लीव के लिए कब अप्लाई करना चाहिए?
मातृत्व अवकाश अधिनियम के अनुसार आप प्रसव से 8 हफ्ते पहले या उसके बाद मैटरनिटी लीव के लिए अप्लाई कर सकती हैं। ज्यादातर महिलाएं मैटरनिटी लीव के लिए डिलीवरी के बाद अप्लाई करती हैं।
कंपनी पर मातृत्व अवकाश अधिनियम का क्या प्रभाव पड़ता है?
भारत में मैटरनिटी लीव एक्ट अन्य देशों के मुकाबले बेहद कमजोर है। अन्य देशों में सरकार और कंपनी दोनों मिलकर महिला कर्मचारी के वेतन का भुगतान करते हैं। जबकि भारत में संस्था को अकेले ही भुगतान करना होता है। महिला कर्मचारी के जाने पर संस्था को कुछ समय के लिए किसी अन्य कर्मचारी को नौकरी पर रखना पड़ता है। इसमें कंपनी पर खर्च का भोज बढ़ जाता है। इसके साथ ही कंपनी के अन्य प्रमुख कर्मचारी को अस्थायी कर्मचारी को ट्रैन करने के लिए समय निकालना पड़ता है। महिला कर्मचारी की मातृत्व की अवधि खत्म होने पर अस्थायी कर्मचारी को जाना पड़ता है। जिससे कंपनी का समय बर्बाद हो सकता है।
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मैटरनिटी लीव पर क्या कहती है रिसर्च
एक अध्ययन के मुताबिक भारत में महिला कर्मचारियों के मुकाबले पुरुष कर्मचारियों की आबादी ज्यादा है। इसका मुख्य कारण कंपनियों का पुरुष कर्मचारियों के प्रति प्राथमिकता होना है। कंपनियों के अनुसार महिला कर्मचारी का खर्च पुरुष कर्मचारी के मुकाबले अधिक होता है।
सरकार द्वारा मैटरनिटी लीव एक्ट को कानून बनाने के बावजूद भी देशभर में कई ऐसी महिलाएं हैं जो इसका लाभ नहीं उठा पाती हैं। कई नियोक्ता अपनी जेब से कर्मचारी को मातृत्व अवकाश का वेतन देने से मना कर देते हैं। भारत सरकार को मातृत्व अवकाश अधिनियम को अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए उन्हें ऐसे प्रावधान निकालने चाहिए जिससे नियोक्ता महिला कर्मचारी को नौकरी देने में न हिचकिचाएं।
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छोटी संस्थाएं और स्टार्ट-अप कंपनी का बजट कम होता है। इसके साथ ही मातृत्व अवकाश के वेतन भुगतान में सरकार कंपनियों की कोई मदद नहीं करती जिसके कारण वह महिला कर्मचारियों को कम भर्ती करते हैं। अब आप ये तो समझ ही गए होंगे कि क्यों कुछ कंपनियां महिलाओं को भर्ती करने से हिचकिचाती हैं। वहीं कुछ कंपनिया सिंगल वुमन की भर्ती को प्राथमिकता देती हैं।
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गर्भावस्था एक कुदरती प्रक्रिया है। जिसका महिलाओं की नौकरी करने की क्षमता और वृद्धि पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। एक विकासशील देश होने के नाते जहां हम लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा देते हैं वहीं हमें मैटरनिटी लीव के फायदों को भी गंभीरता से लेना चाहिए और साथ ही सरकार के सहयोग के साथ सभी संस्थाओं में मैटरनिटी लीव एक्ट को अनिवार्य करना चाहिए।
मैटरनिटी लीव एक्ट के तहत यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो सभी सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों में लागू होती है। इसकी सही जानकारी के लिए अपनी एचआर टीम या मैनेजर से संपर्क करें। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।