के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr Sharayu Maknikar
प्रेग्नेंसी वीक 1 यानी प्रेग्नेंसी का पहला सप्ताह थोड़ा भ्रामक हो सकती है, क्योंकि आमतौर पर गर्भवती होने के 5-6 हफ्ते बाद ही महिलाएं अपनी गर्भावस्था के बारे में सुनिश्चित हो पाती हैं। किसी महिला की पिछली माहवारी (Last Menstrual Period) के पहले दिन को ध्यान में रखकर उसकी डिलीवरी की तारीख (Estimated Date of Delivery -EDD) अनुमानित की जाती है। किसी गर्भवती महिला के एग के फर्टिलाइज होने की सही तारीख बता पाना मुश्किल है, लेकिन मासिक धर्म की शुरुआत को ट्रैक करना आसान है। इसलिए आपके पिछले मासिक धर्म के पहले सप्ताह को प्रेग्नेंसी वीक 1 माना जाता है।
आपकी प्रेग्नेंसी आमतौर पर प्रेग्नेंसी वीक 1 से प्रेग्नेंसी वीक 40 तक चल सकती है, लेकिन यह अलग-अलग मामलों में 38 से 42 हफ्तों तक की हो सकती है। डॉक्टर आमतौर पर भ्रूण (Foetus) के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर 42 हफ्तों से ज्यादा समय तक गर्भावस्था में रहने के लिए मना करते हैं। इसलिए, वो आपको 42 हफ्तों से ज्यादा नहीं जाने देंगे। अब चूंकि हमने आपको यह बता दिया है कि अनुमानित डिलिवरी की तारीख कैसे निश्चित की जाती है तो अब देखते हैं कि प्रेग्नेंसी वीक 1 (Pregnancy week 1st) में हमारे शरीर में कैसे बदलाव होते हैं।
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हम आपको बता चुके हैं कि आपकी पिछली माहवारी की शुरुआत को प्रेग्नेंसी वीक 1 माना जाता है। मासिक धर्म की शुरुआत के दो हफ्तों के बाद ओवरी मैच्योर एग रिलीज करती है, जिसे ओव्यूलेशन या ओव्यूलेटरी फेज कहा जाता है। हालांकि, ओव्यूलेशन का समय पिछले मासिक धर्म की अवधि पर निर्भर करता है। लेकिन, आमतौर पर मासिक धर्म की अवधि 28 से 32 दिनों की होती है और माहवारी के 14वें से 16वें दिन के बीच ओव्यूलेशन होता है। रिलीज होने के बाद एग फैलोपियन ट्यूब से होता हुआ आपके गर्भाशय की ओर जाता है। पुरुष साथी के स्पर्म फैलोपियन ट्यूब में ही एग से मिलते हैं और गर्भधारण की प्रक्रिया शुरू करते हैं।
प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में सभी महिलाओं को कुछ लक्षण नजर आएं, ये जरूरी नहीं होता है। प्रेग्नेंट होने के बाद कुछ महिलाओं को किसी भी तरह की जानकारी नहीं मिल पाती है। ऐसे में पीरियड मिस होने पर ही महिलाएं टेस्ट करवाती हैं। प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में कुछ महिलाओं को निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं।
आमतौर पर जब भी कोई ज्यादा खाना खा लेता है तो उसे जी मिचलाने का एहसास होता है। प्रेग्नेंसी के दौरान जी मिचलाना प्रमुख लक्षण माना जाता है। थोड़ा-सा भी खाने के बाद महिला को जी मिचलाने का एहसास हो सकता है। ऐसे में उल्टी यानी वॉमिटिंग भी हो सकती है। ऐसे में महिला को थकावट भी महसूस हो सकती है।
जैसा कि हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान सभी महिलाओं का एक्सपीरियंस अलग-अलग होता है। कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में पेट के निचले हिस्से में खिचांव या फिर ऐंठन भी महसूस हो सकती है। ऐसा एब्रियो के यूट्रस वॉल से जुड़ने के कारण होता है।
सिर में भारीपन या दर्द का एहसास कई कारणों से हो सकता है। प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में आपको सिर में भारीपन या फिर सिर दर्द का एहसास हो सकता है। इसे प्रेग्नेंसी के लक्षणों में एक माना जाता है। ऐसा शरीर में आए हार्मोनल बदलाव के कारण होता है।
प्रेग्नेंसी के शुरुआती लक्षणों में ब्रेस्ट में भारीपन का एहसास भी जुड़ा है। ऐसा जरूरी नहीं है कि महिलाओं को प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में ही ब्रेस्ट में भारीपन का एहसास हो। कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के एक से दो महीने बाद भी ब्रेस्ट में भारीपन का एहसास हो सकता है। साथ ही कुछ महिलाओं को मूड में परिवर्तन भी महसूस हो सकता है। उपरोक्त दिए गए लक्षण प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में दिखाई पड़ सकते हैं या फिर आपको इनमें से किसी भी लक्षण का एहसास पहले हफ्ते नहीं होगा। आप चाहे तो इस बारें अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से जानकारी भी ले सकते हैं।
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सामान्यतः गर्भधारण के कम से कम 4 हफ्तों के बाद ही प्रेग्नेंसी (Pregnancy) का पता चल पाता है, जिसे पता करने के लिए आप मार्केट में मौजूद प्रेग्नेंसी टेस्ट किट का इस्तेमाल कर सकती हैं। लेकिन, सबसे जरूरी बात यह है कि गर्भधारण आपके मासिक धर्म के दो सप्ताह बाद होता है। इसलिए, प्रेग्नेंसी वीक 1 के दौरान चिंता की कोई बात नहीं है।
हालांकि, यदि आप अपनी प्रेग्नेंसी की प्लानिंग (Pregnancy planning) कर रही हैं, तो कुछ बातों को आपको ध्यान में रखना चाहिए। जैसे, गर्भधारण की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए आपको इंटरकोर्स की फ्रींक्वेंसी को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। आपको शराब के सेवन से बचना चाहिए और गर्भाशय में शिशु के विकास के लिए जरूरी प्री-नेटल विटामिन्स के लिए अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए। अनप्लांड प्रेग्नेंसी के मामले में यह बातें लागू नहीं होती हैं।
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आपके द्वारा ली जा रही ओवर द काउंटर दवाओं या हर्बल सप्लिमेंट्स के बारे में अपने डॉक्टर को जरूर बताएं, क्योंकि डॉक्टर पूरी जानकारी मिलने के बाद ही आपको बता पाएगा कि कहीं आपके द्वारा ली जा रही कोई दवा या हर्बल सप्लिमेंट गर्भाशय में शिशु के स्वास्थ्य पर बुरा असर तो नहीं डालेंगी या आपके गर्भधारण में समस्या तो पैदा नहीं करेंगी। इसी तरह, अगर आप रोजाना कोई पर्चे वाली दवा का सेवन कर रही हैं, तो भी बिना डॉक्टरी सलाह के दवा का सेवन करना न रोकें। आपका डॉक्टर, आपके द्वारा ली जा रही दवाओं के बंद करने के बाद होने वाले संभावित फायदों और नुकसान के बारे में सोचकर ही आपको सही सलाह देगा। अगर आप गर्भधारण करने की सोच रही हैं, तो भी अपने डॉक्टर से जरूर बात करें। ताकि, वो बता सके कि गर्भधारण करने के लिए आपको क्या करना है और क्या नहीं।
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आप इन सवालों को अपने डॉक्टर से जरूर पूछें, जैसे :
गर्भधारण करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर करें, ताकि वो आपके शरीर की पूरी तरह जांच करके बता सके कि आपका शरीर गर्भधारण करने के लिए स्वस्थ व तैयार है या नहीं। इसके लिए डॉक्टर आपको इन टेस्ट्स को करवाने के लिए कह सकता है।
पैप स्मीयर टेस्ट- यह टेस्ट गर्भधारण में बाधा डालने वाले कारणों की जांच करता है।
जेनेटिक टेस्ट- यह टेस्ट जांच करता है कि, कहीं आपको सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया या टीए-सैक्स जैसी कोई जेनेटिक बीमारी तो नहीं है जो आपके बच्चे को भी शिकार बना सकती है।
ब्लड टेस्ट- यह टेस्ट एसटीडी (STD) और रूबेला या चिकनपॉक्स (Chicken) के खिलाफ रोग-प्रतिरोधक क्षमता (इम्यून सिस्टम) की जांच करता है। इसी के बाद पता चलता है कि गर्भधारण से पहले आपको किसी उपचार या टीके की जरूरत है या नहीं।
इन टेस्ट्स की मदद से डॉक्टर आपके शरीर को स्वस्थ बच्चे के लिए तैयार बनाने के लिए सही दिशा-निर्देश दे सकता है।
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आप जरूर जानना चाहती होंगी कि आपको हेल्दी प्रेग्नेंसी के लिए किन बातों या चीजों से बचना चाहिए। प्रेग्नेंसी में महिलाओं का इम्यून सिस्टम पहले जितना मजबूत नहीं रहता है, इसलिए उन्हें इंफेक्शन (Infection) होने की आशंका बढ़ जाती है। इसके लिए आपको अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए कि कौन-से टीके आपके लिए सुरक्षित हैं।
मीजल्स एक वायरल इंफेक्शन (Viral infection) है, जिसमें माइल्ड फीवर, खांसी, बहती नाक के साथ कुछ दिनों में शरीर पर लाल रैशेज भी होने लगते हैं। मम्प्स एक फैलने वाला वायरल इंफेक्शन है जो सलाइवरी ग्लैंड को सूजा देता है। अगर आप प्रेग्नेंसी के दौरान इन दोनों में से संक्रमित हैं, तो गर्भपात का खतरा रहता है। रूबेला वायरस को जर्मन मीजल्स भी कहा जाता है, जिसके शरीर पर रैशेज के साथ फ्लू जैसे लक्षण होते हैं। जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के पहले तिमाही में इस संक्रमण का शिकार हो जाती हैं, उनके बच्चों में बहरापन और दिमागी अक्षमता जैसी जन्मजात बीमारियों का खतरा 85 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। प्रेग्नेंसी के दौरान इस बीमारी के टीके सुरक्षित नहीं है और आमतौर पर ऐसे में कम से कम 1 महीना या ब्लड टेस्ट द्वारा इम्युनिटी की जांच होने तक प्रेग्नेंट होने से बचना चाहिए।
चिकनपॉक्स एक फैलने वाली गंभीर वायरल बीमारी है, जिसमें खुजली वाले रैशेज, बुखार और असहजता होती है। प्रेग्नेंसी के पहले 5 महीने में चिकनपॉक्स का शिकार होने वाली करीब 1 से 2 प्रतिशत महिलाओं के बच्चों में जन्मजात विकृत और लकवाग्रस्त समस्याएं देखी गई हैं। जिन महिलाओं को डिलीवरी के समय चिकनपॉक्स हो जाता है, उनके शिशु को जानलेवा इंफेक्शन हो सकता है। इसकी वैक्सीन भी प्रेग्नेंसी के दौरान सुरक्षित नहीं है।
रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (CDC) के द्वारा प्रेग्नेंसी के दौरान फ्लू शॉट लेने की सलाह दी गई है। विशेषतौर पर फ्लू के मौसम में गर्भवती होने वाली महिलाओं को जरूर इस टीके को लगवाना चाहिए। फ्लू शॉट डेड वायरस से बना होता है, जिसका शिशु पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है।
अगर आपको प्रेग्नेंट होने के दौरान किसी फ्लू ने घेर लिया है, तो आपको गंभीर समस्या होने की संभावना बढ़ जाती है। इन गंभीर समस्याओं में निमोनिया (Pneumonia) भी शामिल है , जो कि जानलेवा हो सकता है और प्री-टर्म लेबर के लिए खतरा की आशंका बढ़ा सकता है। आपको पोस्ट-मार्टम पीरियड के दौरान भी फ्लू-रिलेटेड जटिलताओं का खतरा हो सकता है।
प्रेग्नेंसी में फ्लू शॉट लेने से आपके शिशु को जन्म के बाद भी कुछ बीमारियों से सुरक्षा प्राप्त होती है, क्योंकि आपके शिशु को प्रेग्नेंसी के दौरान ही आपसे कुछ एंटीबॉडीज प्राप्त हो सकती हैं, जिसकी वजह से नवजात को फ्लू होने की आशंका कम हो जाती है। उपरोक्त दी गई सलाह चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।
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