बच्चों के शुरुआती सालों में समय-समय पर बच्चे के वजन, लंबाई और सिर के आकार को नापा जाता है। इन सब कि जांच करने से डॉक्टर से पता लगा सकता है कि बच्चे के विकास में कोई आसामन्य वृद्धि तो नहीं हो रही है।
इमेजिंग टेक्नोलॉजी से बौनेपन की जांच
बच्चों में बौनेपन की जांच करने के लिए डॉक्टर एक्स रे कराने की सलाह दे सकता है। इसके आलावा खोपड़ी और कंकाल की कुछ ससामान्ताओं को देखकर भी बच्चों में किसी विकार का पता लगाया जा सकता है। हाइपोथैलेमस में कुछ असामान्यता की जांच के लिए डॉक्टर एमआरआई करने की सलाह दे सकता है।
अनुवांशिक परीक्षण
बच्चों में बौनेपन का पता लगाने के लिए अनुवांशिक परीक्षण भी किया जा सकता है। अंनुवाशिक परीक्षण से भी कई विकारों का पता लगाया जा सकता है। लेकिन साथ ही आपको यह भी पता होना चाहिए कि ऐसा हर बार जरूरी भी नहीं कि यदि किसी में बौनेपन की समस्या है, तो उसके बच्चों में भी यह देखने को मिलेगी ही।
परिवार की मेडिकल हिस्ट्री
बौनेपन के लक्षणों को पहचानने के लिए डॉक्टर परिवार की मेडिकल हिस्ट्री की भी जानकारी पता कर सकता है। परिवार की मेडिकल हिस्ट्री से बच्चों में बौनेपन की आशंका का अंदाजा लगाया जा सकता है।
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बौनेपन के लिए बच्चों का हॉर्मोन परीक्षण
डॉक्टर बच्चों में बौनेपन के लक्षण देखने के लिए हॉर्मोन के परीक्षण करने को बोल सकते हैं। ग्रोथ हॉर्मोन या अन्य हॉर्मोन बच्चों के विकास के लिए जरूरी होते हैं। इन परीक्षण के बाद बच्चों में हॉर्मोन से जुड़ी समस्या का पता लगाया जा सकता है।
बौनेपन की वजह से क्या-क्या परेशानी हो सकती है ?
- शरीर का विकास सही वक्त पर न होना।
- बैठने या चलने में परेशानी होना।
- बार-बार कानों में इंफेक्शन होना और सुनने में दिक्कत होना।
- पैरों का सीधा न होना।
- सोने के दौरान सांस लेने में समस्या होना।
- स्पाइनल कॉर्ड पर अत्यधिक दबाव पड़ना।
- मस्तिष्क के चारों ओर अतिरिक्त द्रव (हाइड्रोसिफलस) होना।
- सामान्य से अलग दांत होना।
- पीठ में दर्द या सांस लेने में तकलीफ होने के साथ-साथ पीठ में दर्द होना।
- निचली रीढ़ (स्पाइनल स्टेनोसिस) में परेशानी महसूस होना।
- अर्थराइटिस।
- अत्यधिक वजन बढ़ना। जिससे जोड़ो की समस्या हो सकती है।
- टर्नर सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति को दिल की बीमारी भी हो सकती है।