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लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning Disability) क्या है? जानिए इसके लक्षण, कारण और उपचार

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. हेमाक्षी जत्तानी · डेंटिस्ट्री · Consultant Orthodontist


Smrit Singh द्वारा लिखित · अपडेटेड 30/06/2021

    लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning Disability) क्या है? जानिए इसके लक्षण, कारण और उपचार

    लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning disability), जिसका आसान मतलब है सीखने या समझने में दिक्कत आना। हमारे देश के हजारों बच्चे इस लर्निंग डिसेबिलिटी की समस्या का सामना कर रहे हैं। जब भी कोई बच्चा लिखने, पढ़ने, बोलने और समझने में दिक्कत का सामना कर रहा है, तो ये लर्निंग डिसेबिलिटी के संकेत हो सकता है।

    लर्निंग डिसेबिलिटी एक मेंटल डिसऑर्डर है, जो अक्सर बच्चों में देखने को मिलता है। सीखना एक सतत प्रक्रिया है लेकिन, अगर कुछ सीखेन में जरूरत से ज्यादा समय लग रहा है, तो इसे हल्के मे न लें। ये लर्निग डिसेबिलिटी के संकेत हो सकते हैं। भारत में ऐसे बहुत-से मां बाप हैं, जो अपने बच्चे की इस समस्या का निदान समय रहते नहीं कर पाते और न ही वो इस बीमारी को ही समझ पाते हैं।

    लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning disability) क्या है?

    इस स्थिति की शुरुआत में बच्चें को बोलने में, लिखने में, पढ़ने में, सुनने में, शब्दों के उच्चारण में बहुत ज्यादा दिक्कत होती है। सीखने में उसका मन नहीं लगता और वह चीजों से जी चुराने या उनसे भागने की कोशिश करता है।

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    लर्निंग डिसेबिलिटी के कारण क्या हैं? (Learning disability Causes)

    इस विकार में न्यूरोलॉजिकल भिन्नता मुख्य कारण होती है। दिमाग किसी भी सूचना के सकेंत को सही ढंग से पासऑन और रिसीव नहीं कर पाता, जिसके कारण बच्चे को सीखने में समस्या होती है। सिर में चोट या किसी दिमागी बिमारी के कारण भी बच्चें को लर्निंग डिसऑर्डर की समस्या हो सकती है। अनबॉर्न बेबी का दिमागी रूप पूर्ण रूप से विकसित न होने के कारण भी ये समस्या हो सकती है।

    लर्निंग डिसेबिलिटी के लक्षण क्या हैं? (Learning disability Symptoms)

    लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning disability) में कई तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। अगर आपको अपने बच्चे में नीचे बताए गए लक्षण दिखाई देते हैं, तो ये लर्निंग डिसेबिलिटी के लक्षण हो सकते हैं। ऐसे में आपको सतर्क हो जाना चाहिए और जरूरी ट्रीटमेंट कराना चाहिए। नीचे जानिए कि अगर बच्चे को लर्निंग डिसेबिलिटी की समस्या होती है, तो किस तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं :

  • इस समस्या के दौरान बच्चे को पढ़ते समय दिक्कत होने लगती है। यही नहीं, अगर बच्चा पढ़ने की कोशिश भी करता है तो वो बहुत ही धीमी गति से पढ़ पाता है। सामान्य बच्चों की तरह वो सामान्य तरीके से नहीं पढ़ पाता।
  • इस समस्या के दौरान बच्चे को लिखते समय बहुत दिक्कत होने लगती है। वो ठीक से नहीं लिख पाने में असमर्थ होता है। वो लिखने की कोशिश भी करे, तो ठीक से लिख नहीं सकते हैं।
  • इस समस्या से पीड़ित बच्चे एकेडमिक्स में पीछे होते हैं। स्कूल जाते हैं, लेकिन उन्हें स्कूल में सिखाई जाने वाली चीजें जल्दी समझ नहीं आती है।
  • इस समस्या से पीड़ित बच्चे बहुत ही धीरे-धीरे बोलते हैं। उनमें कॉन्फिडेंस की भी काफी कमी होती है।
  • लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning disability) से पीड़ित बच्चे वर्णमाला को पहचानने में बहुत ज्यादा मुश्किल का सामना करते हैं। उन्हें अक्षर और एल्फाबेट्स ठीक से पहचान में नहीं आते हैं।
  • इस समस्या से पीड़ित बच्चों को मैथ और पजल जैसी चीजों को समझने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
  • किसी बात को कैसे या किस ढंग से कहना इसका आइडिया न लगा पाना। इस कारण कई बार वो अपनी बात को ठीक से नहीं कह पाते हैं।
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    लर्निंग डिसेबिलिटी से बच्चे को क्या समस्याएं हो सकती हैं? (Learning disability Complications)

    जैसा कि हमने बताया लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning disability) में बच्चे को सीखने समझने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इस दौरान बच्चे को नीचे बताई गई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है :

    ध्यान केंद्रित करने में परेशानी : इस समस्या से पीड़ित बच्चे को किसी भी चीज में ध्यान केंद्रित करने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। बच्चे को जो भी कुछ सिखाया जाता है, वो उसमें चाहकर भी ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता है।

    सामाजिक रूप से होती हैं कठिनाई : इस समस्या से पीड़ित बच्चों को सामाजिक रूप से खुद को एडजस्ट करने में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। खासतौर पर अपने एज ग्रुप के बच्चों के साथ वो खुद को एडजस्ट करने में कठिनाई पाते हैं। इसमें बच्चे दूसरों की तुलना में ताल-मेल बिठाने में पीछे रह जाते हैं।

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    लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning disability)

    लर्निंग डिसेबिलिटी का उपचार कैसे हो सकता है? (Learning disability Treatment)

    इस तरह के मानसिक विकार में आप अपने डॉक्टर से मदद ले सकते हैं। बच्चे के स्कूल टीचर से बात कर सकते हैं और बच्चे की स्थिति के बारे जानकारी दे सकते हैं और उसकी प्रोग्रेस रिपोर्ट के हिसाब से उसका स्टडी मॉडल, स्ट्रक्चर तैयार कर सकते हैं। आजकल बहुत से स्मार्ट लर्निंग ऐप हैं, जिसके द्वारा आप बच्चे को तेजी से सीखने की दूसरी टेक्नीक सिखा सकते हैं। इसके साथ ही इसका उपचार निम्न प्रकार किया जा सकता है।

    • कुछ बच्चों को थेरिपी से फायदा हो सकता है।
    • ऑक्यूपेशनल थेरिपी मॉटर स्किल में सुधार करती है। जिससे राइटिंग प्रॉब्लम को दूर करने में मदद मिलती है।
    • वहीं स्पीच थेरिपी लैग्वेंज स्किल में सुधार करती है।
    •  बच्चे के अवसाद या गंभीर चिंता को मैनेज करने के लिए डॉक्टर दवा की सिफारिश कर सकता है।
    • अटेंशन-डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर के लिए दवाएं बच्चे की स्कूल में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में सुधार कर सकती हैं।
    • वैकल्पिक उपचारों की प्रभावशीलता को निर्धारित करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है, जैसे कि आहार परिवर्तन, विटामिन का उपयोग, आंखों के व्यायाम, न्यूरोफीडबैक और तकनीकी उपकरणों का उपयोग।

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    ये एक ऐसी बीमारी है, जिसमें इलाज के साथ प्यार और समर्पण की जरूरत होती है। हमें उसकी मनोदशा पर गंभीरता से विचार करना होगा और उसकी हर गतिविधियों पे ध्यान रखना होगा। घर में बच्चे के साथ दोस्ताना माहौल रखें, क्योंकि तभी बच्चा अपन मन में चल रही समस्याओं को बोल पाएगा। इस समस्या को ठीक करने  लिए व्यक्तिगत ही नहीं, सामाजिक प्रयास की भी जरूरत होती है। लर्निंग डेसेबिलिटी का सही समय पर उपचार और परिवार समाज का पूर्ण सहयोग से इस समस्या को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है।

    तो आज इस आर्टिकल में आपने जाना कि लर्निंग डिसेबिलिटी किस तरह एक बच्चे के जीवन को प्रभावित कर सकती है। इसी के साथ ही आपने ये भी जाना कि इससे पीड़ित बच्चे को किन किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। उम्मीद है आपको इस आर्टिकल में लर्निंग डिसेबिलिटी से जुड़ी सभी जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अगर आपको इससे संबंधित और कोई जानकारी चाहिए, तो हमसे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम सभी सवालों के जवाब आपको डॉक्टर की मदद से देने की कोशिश करेंगे। आशा करते हैं आपको ये आर्टिकल पसंद आया होगा। अगर आपको ये आर्टिकल पसंद आया है, तो इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ शेयर करना न भूलें, ताकि बाकी लोगों को भी इसकी सही जानकारी हो सके और वो इसके लक्षणों को पहचान सकें।

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