के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम ब्रेन यानी कि मस्तिष्क से संबंधित टेस्ट है। इस टेस्ट का मुख्य उद्देश्य मस्तिष्क के इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को जानना है। क्योंकि ब्रेन सेल्स एक दूसरे से इलेक्ट्रिक इम्पल्स के द्वारा संपर्क करती हैं। जब ये कोशिकाएं आपस में संपर्क नहीं कर पाती हैं तो इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम टेस्ट की जरूरत पड़ती है। इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम को ईईजी (EEG) भी कहते हैं।
इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम मस्तिष्क के तरंगों के पैटर्न को रिकॉर्ड करता है। छोटे, चपटे मेटल के डिस्क का इस्तेमाल इस टेस्ट में किया जाता है, जिन्हें इलेक्ट्रोड कहते हैं। इलेक्ट्रोड्स को व्यक्ति के सिर के ऊपर स्कैल्प पर चिपकाया जाता है। इलेक्ट्रोड से जुड़े तार दिमाग की तरंगों को कंप्यूटर के मॉनिटर पर दिखाते हैं। जो तरंगें लाइन के रूप में ऊपर नीचे कर के दिखाई देती हैं। जिसे देख कर डॉक्टर ब्रेन सेल्स की समस्या को समझते हैं।
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इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम (EEG) को तब किया जाता है जब ब्रेन डिसऑर्डर के लक्षण सामने आते हैं। जैसे- मिरगी आना(epilepsy)। मस्तिष्क से संबंधित अन्य परेशानियों में भी इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम (EEG) टेस्ट किया जाता है :
इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम (EEG) का इस्तेमाल कोमा में गए हुए व्यक्ति में ब्रेन डेड को कंफर्म करने के लिए भी किया जाता है।
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इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम कराने में किसी तरह का कोई रिस्क नहीं है। ये पूरी तरह सुरक्षित और दर्दरहित होता है। कुछ इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम में लाइट या स्टिमुलाई नहीं होते है। ऐसा तब होता है जब टेस्ट में किसी भी तरह की असमान्यता नजर न आए। क्योंकि इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम में इस्तेमाल होने वाली लाइट अबनॉर्मलिटीज को बढ़ावा देती है। अगर किसी को मिरगी या कब्जा विकार है तो स्टिमुलाई का इस्तेमाल किया जाता है।
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इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम टेस्ट कराने से पहले आपको निम्न चरणों को अपनाना होगा :
इसके अलावा डॉक्टर आपको इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम टेस्ट के एक रात पहले बहुत कम सोने के लिए कह सकते हैं। क्योंकि टेस्ट के दौरान आपके मस्तिष्क को रिलेक्स पोजीशन में रहने की जरूरत होती है। ऐसे में अगर आपको टेस्ट के पहले सोने के लिए कहा जाएगा। अगर आप नहीं सो पाते हैं तो आपको नींद की दवा दी जाएगी। इसके बाद आपका टेस्ट किया जाएगा। टेस्ट के बाद आप अपनी दिनचर्या को सामान्य रूप से शुरू कर सकते हैं। लेकिन, टेस्ट कराने हॉस्पिटल जाते समय अपने किसी परिजन को साथ में ले लें। अगर टेस्ट के दौरान आपको नींद की दवा दे दी गई तो आप खुद से घर नहीं जा पाएंगे।
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इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम टेस्ट को करने में लगभग 60 मिनट का समय लगता है। इस टेस्ट को करने से पहले टेक्नीशियन आपके सिर पर पेंसिल या पेन से निशान बनाते हैं। इन्हीं निशानों के जगह पर टेस्ट के लिए मेटल के डिस्क यानी कि इलेक्ट्रोड्स को चिपाकाया जाता है। बालों के जड़ों में इलेक्ट्रोड्स को चिपकाने के लिए एक विशेष प्रकार के ग्लू का इस्तेमाल किया जाता है। इस डिस्क के तार कंप्यूटर के मॉनीटर से जुड़े रहेंगे।
एक बार इलेक्ट्रोड आपके सिर पर चिपकाने के बाद आपको सोने के लिए कहा जाएगा। कभी-कभी टेस्ट के बीच में टेक्नीशियन आपको आंखें खोलने या बंद करने के लिए कहते हैं। ताकि मस्तिष्क की तरंगों को सही तरीके से माप सके। इसके साथ ही टेस्ट के दौरान आपको किसी आसान से सवाल को हल करने के लिए कहा जा सकता है। साथ ही किसी पैराग्राफ को पढ़ने, चित्र को देखने, गहरी व लंबी सांस लेने के लिए कहा जा सकता है। इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम में अपने आप आपके मस्तिष्क तरंगों का वीडियो रिकॉर्ड हो जाता है। इन्हीं तरंगों के आधार पर डॉक्टर पता करते हैं कि आपके मस्तिष्क में समस्या कहा पर है।
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कभी-कभी ऑफिस या घर आदि जगहों पर इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम टेस्ट के सभी उपकरण सेट किए जाते हैं। ऐसा तब होता है जब आपके मस्तिष्क के तरेंगों को कई दिनों तक रिकॉर्ड करना होता है। इस तरह के इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम को एम्बुलेट्री इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम कहा जाता है।
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जिस टेक्नीशियन ने आपका टेस्ट किया है वह पूरी रिकॉर्डिंग का वीडियो आपके डॉक्टर के पास भेज देते हैं। आप अपने डॉक्टर के पास जा कर टेस्ट के रिजल्ट को समझ सकते हैं। इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम का रिजल्ट निम्न तरह से हो सकता है।
नॉर्मल रिजल्ट
इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम में मस्तिष्क के तरंगों का पैटर्न सामान्य रहा। अलग-अलग लेवल पर यानी कि जागते, सोते, पढ़ते आदि गतिविधियों में भी आपके मस्तिष्क की तरंगे सामान्य बनी रहीं। जब आप जागते हैं तो आपकी मस्तिष्क तरंगें बहुत तेजी से बढ़ती है, लेकिन सोते समय वह धीमी गति से आगे बढ़ती हैं। इसलिए टेस्ट का रिजल्ट सामान्य है और किसी भी तरह का कोई डिसऑर्डर नहीं है।
अबनॉर्मल रिजल्ट
इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम का टेस्ट निम्न कारणों से असामान्य आता है :
वहीं, बता दें कि टेस्ट की रिपोर्ट हॉस्पिटल और लैबोरेट्री के तरीकों पर निर्भर करती है। इसलिए आप अपने डॉक्टर से टेस्ट रिपोर्ट के बारे में अच्छे से समझ लें। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।
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