के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
ग्लाइकोहीमोग्लोबिन टेस्ट या हीमोग्लोबिन टेस्ट A1c, एक तरह का ब्लड टेस्ट है जो रेड ब्लड सेल्स में हीमोग्लोबिन से संबंधित शुगर (ग्लूकोज) की जांच करता है। इसे HbA1C, A1c, ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन भी कहते हैं। जब हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) और ग्लूकोज मिलते हैं तो हीमोग्लोबिन पर शुगर की एक परत बनती है। ब्लड में अधिक शुगर होने पर यह परत मोटी हो जाती है। जिन लोगों को डायबिटीज (Diabetes) या ऐसी कोई बीमारी है जिससे ब्लड ग्लूकोज लेवल बढ़ जाता है, उनमें ग्लाइकोहीमोग्लबिन (Glycohemoglobin Test) सामान्य से अधिक होगा।
ग्लाइकोहीमोग्लोबिन टेस्ट का उपयोग प्रीडायबिटीज (Prediabetes) या डायबिटीज (Diabetes) के निदान के लिए किया जा सकता है। A1c टेस्ट डायबिटीज पीड़ित लोगों में लंबे समय तक ब्लड ग्लूकोज को नियंत्रित करने की जांच करता है। अधिकांश डॉक्टरों का मानना है कि यह जांचने के लिए कि मरीज डायबिटीज को कितनी अच्छी तरह नियंत्रित कर रहा है, A1c टेस्ट बेहतरीन तरीका है।
घर पर किए जाने वाले ब्लड ग्लूकोज टेस्ट में बस उसकी वक्त के शुगर लेवल की जांच होती है। जबकि ब्लड ग्लूकोज लेवल (Blood Glucose Level) पूरे दिन में कई बार बदलता रहता है, इसमें बदलाव दवा, डायट, एक्सरसाइज और इंसुलिन की वजह से होता है।
डायबिटीज के मरीजों के लिए लंबे समय तक ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखने संबंधी जानकारी उपयोगी है। A1c टेस्ट के परिणाम डायट (Diet), एक्सरसाइज (Workout) और दवा (Medicine) के कारण नहीं बदलते हैं।
ग्लूकोज हीमोग्लोबिन को रेड ब्लड सेल्स (RBC) से धीमी गति से बांधता है। चूकि रेड ब्लड सेल्स 3-4 महीने रहती है। यह टेस्ट बताता है कि पिछले 2-3 महीने में आपका डायबिटीज कितनी अच्छी तरह से नियंत्रित हुआ है या फिर आपके डायबिटीज के उपचार में बदलाव की जरूरत है।
ग्लाइकोहीमोग्लोबिन टेस्ट आपके डॉक्टर को यह देखने में मदद करता है कि डायबिटीज (Diabetes) की वजह से आपको अन्य समस्याओं जैसे- किडनी फेलियर (Kidney failure), नजर संबंधी और पैर सुन्न होने की खतरा कितना बढ़ सकता है। A1c लेवल को टारगेट रेंज में रखने इन समस्याओं से निपटा जा सकता है।
आपको किस तरह का डायबिटीज है, उसे कितनी अच्छी तरह नियंत्रित किया जा सकता है और डॉक्टर की सलाह के आधार पर A1c टेस्ट साल में 2-4 बार किया जा सकता है। जब पहली बार आपके डायबिटीज के बारे में पता चलता है या वह ठीक से नियंत्रित नहीं हो पा रहा है तो आपको अधिक बार A1c टेस्ट की सलाह दी जा सकती है।
डायग्नोस्टिक और स्क्रिनिंग प्रक्रिया के लिए A1c का आदेश हेल्थ चेकअप के रूप में दिया जाता है या जब आपको डायबिटीज होने का संदेह हो तो कुछ लक्षणों के आधार पर इस टेस्ट के लिए कहा जा सकता है। बढ़े हुए ब्लड ग्लूकोज लेवल (Blood Glucose Level) के साथ अन्य लक्षण हैंः
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ग्लाइकोहीमोग्लोबिन टेस्टअस्थायी, तुरंत बढ़े या कम हुए ब्लड ग्लूकोज लेवल (Blood glucose level) या पिछले 3-4 हफ्ते में डायबिटीज को कितनी अच्छी तरह कंट्रोल किया गया को दिखता है।
यदि कोई व्यक्ति का हीमोग्लोबिन अलग है जैसे सिकल सेल हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) तो उसमें हीमोग्लोबिन A1 की कमी होगी। ऐसे में डायबिटीज के निदान और निगरानी में A1c टेस्ट की उपयोगिता कम हो जाएगी।
यदि किसी व्यक्ति को एनीमिया (Anemia) की समस्या, हीमोलायसिस या हैवी ब्लीडिंग की समस्या है तो A1c टेस्ट के परिणाम नीचे रहेंगे जो गलत परिणाम है। यदि किसी को आयरन की कमी है तो A1c टेस्ट के परिणाम बढ़ा हुआ दिखेगा जो सही नहीं है।
यदि किसी का हाल ही में ब्लड ट्रांस्फ्यूजन हुआ है तो A1c टेस्ट के परिणाम पिछले 2-3 महीने में ग्लूकोज नियंत्रण की सही मात्रा नहीं दिखाएंगे।
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इस टेस्ट के लिए आपको खाना बंद करने की कोई जरूरत नहीं है। यह टेस्ट दिन में कभी भी किया जा सकता है, खाना खाने के बाद भी।.
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बांह पर लपेटी गई प्लास्टिक बैंड से आपको थोड़ा टाइट महसूस होगा, लेकिन सुई चुभने पर कुछ महसूस नहीं होगा या फिर चींटी काटने जैसा एहसास होगा।
टेस्ट का परिणाम कब आएगा आपको इसकी जानकारी दे दी जाएगी। डॉक्टर आपको परिणाम का मतलब समझाएगा। आपको डॉक्टर के निर्देशों का पालन करना होगा।
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डायबिटीज के निदान के पुष्टि वही ब्लड शुगर टेस्ट (Blood Sugar Test) दोबारा करके या फिर अगले दिन दूसरे टेस्ट के जरिए की जानी चाहिए।
सामान्य वैल्यू यहां दी गई है, जिसे रेफरेंस रेंज कहते है, यह सिर्फ एक मार्गदर्शक है। यह रेंज हर लैब में अलग-अलग होती है और हर लैब की सामान्य रेंज भी अलग होती है। आपके लैब रिपोर्ट में वही रेंज होनी चाहिए जो आपके लैब में इस्तेमाल होती है। साथ ही डॉक्टर आपकी सेहत और अन्य कारकों के आधार पर परिणामों का मूल्यांकन करेगा। इसका मतलब है कि सामान्य वैल्यू यहां दी गई सामान्य रेंज से बाहर है, फिर भी वह आपके लैब के लिए सामान्य हो सकती है। हीमोग्लोबिन A1c सामान्य 5.7% से कम प्री-डायबिटिक (डायबिटीज के लिए बढ़ा खतरा) 5.7%-6.4% डायबिटिक 6.5% और इससे अधिक।
अधिकांश व्यस्क जो प्रेग्नेंट नहीं है और जिन्हें टाइप 1 और 2 डायबिटीज है उनका A1c लेवल 7% से कम होना चाहिए।
टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित अधिकांश बच्चों में भी A1c लेवल 7% से कम होना चाहिए।
टाइप 1 डायबिटीज वाले बच्चों और किशोर के लिए A1c की सिफारिशें उम्र A1c% 6 साल से कम उम्र के बच्चों की 8.5% से कम 6-12 वर्ष के बच्चों में 8% से कम 13-19 वर्ष तक के बच्चों में 7.5% से कम
कुछ स्वास्थ्य स्थितियां A1c का लेवल बढ़ा देती है, लेकिन इसके बावजूद परिणाम सामान्य रेंज में हो सकते हैं। इन स्थितियों में कुशिंग सिंड्रोम, फियोक्रोमोसाइटोमा और पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) शामिल हैं।
कॉर्टिकोस्टेरॉइड उपचार A1c लेवल को बढ़ाता है।
सभी लैब और अस्पताल के आधार पर ग्लाइकोहीमोग्लोबिन टेस्ट (Glycohemoglobin Test) की सामान्य सीमा अलग-अलग हो सकती है। परीक्षण परिणाम से जुड़े किसी भी सवाल के लिए कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श करें। ग्लाइकोहीमोग्लोबिन टेस्ट के संबंध में कोई संदेह होने और परिणामों को बेहतर तरीके से समझने के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
उपरोक्त दी गई जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से जरूर जानकारी लें।
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