परिचय
टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ((Termination of Pregnancy) (गर्भपात) क्या है?
टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी या अबॉर्शन (Termination of Pregnancy or Abortion) तब होता है जब गर्भावस्था की अवधि जल्दी समाप्त हो जाती है। भारत सहित कई अन्य देशों में गर्भपात गैर-कानूनी है। हालांकि, विकटोरिया में यह कानूनी तौर पर वैध है। कोई भी महिला गर्भावस्था के 24 सप्ताह से पहले अबॉर्शन करा सकती है। लेकिन, 24 सप्ताह के बाद की अबॉर्शन कराना जोखिम भरा हो सकता है। इसके लिए डॉक्टर आपकी मौजूदा चिकित्सा परिस्थितियों और भविष्य की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परिस्थितियों के बारे में पहले विचार करते हैं।
अबॉर्शन के विकल्प के लिए डॉक्टर दवाओं और सर्जरी दोनों ही प्रक्रिया का तरीका अपना सकते हैं। हालांकि, कौन सी प्रक्रिया चुनी जाएगी यह महिला के स्वास्थ्य स्तिथि के अनुसार ही डॉक्टर तय करते हैं। इसके अलावा महिला कितने हफ्ते की गर्भवती है, यह इस बात पर भी निर्भर कर सकता है। ध्यान रखें कि हर बार प्राकृतिक तौर गर्भपात होना या चिकित्सक की मदद से गर्भपात कराना, दोनों ही स्थिति में यह जोखिम भरा हो सकता है साथ ही, किसी गंभीर स्वास्थ्य स्थिति का भी कारण बन सकता है।
गर्भापात यानी अबॉर्शन हमेशा दो तरह के हो सकते हैं। पहला, जहां प्रकृतिक कारणों की वजह से गर्भ अपने आप ही खराब हो जाता है और दूसरा जहां चिकित्सक की मदद से गर्भ को बाहर निकाला जाता है। दूसरा कारण आमतौर पर महिला या दंपति के निजि फैसले पर निर्धारित किया जा सकता है। हालांकि, अगर कोई महिला गर्भ धारण करने के बाद किसी तरह की स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं अनुभव करती हैं, या गर्भ के कारण मां के जान को जोखिम हो सकता है, तो ऐसी स्थिति में भी डॉक्टर अबॉर्शन का विकल्प दे सकते हैं।
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कई कारणों से एक महिला गर्भपात कराने का निर्णय ले सकती है:
- व्यक्तिगत हालात
- मां के लिए स्वास्थ्य जोखिम बनना
- गर्भ में पल रहे बच्चे को किसी तरह की चिकित्सा स्थिति होने पर
अबॉर्शन के प्रकार क्या हैं?
अबॉर्शन (गर्भपात) का सबसे आम प्रकार सर्जरी की प्रक्रिया को माना जाता है जिसे ‘सक्शन सिट्रेट’ कहा जाता है। इसमें एक छोटी प्लास्टिक ट्यूब के साथ गर्भाशय के अंदर के हिस्से में सौम्य सक्शन लागू करके गर्भाशय के अंदर विकसित हो रहे भ्रूण को बाहर निकाल लिया जाता है। यह अबॉर्शन (गर्भपात) का एक सुरक्षित तरीका होता है। हालांकि, इसकी प्रक्रिया अक्सर महिला के गर्भवस्था की पहली तिमाही यानी 12 से 14 सप्ताह के अंदर में ही किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया को पूरा करने में लगभग 15 मिनट लगते हैं। इसकी प्रक्रिया पूरी होने के बाद महिला को लगभग 4 घंटे तक क्लिनिक या अस्पताल में रहना होगा और लगभग एक सप्ताह से 15 दिन बाद वो अपने नियमित शारीरिक कार्यों को दोबारा से शुरू भी कर सकती है।
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जोखिम
अबॉर्शन (Abortion) के क्या साइड इफेक्टस हो सकते हैं?
अबॉर्शन के कई प्रकार होते हैं, जिनके कुछ जोखिम भी होते हैंः
- दर्द होना, जिससे राहत पाने के लिए दर्द निवारक दवाओं के इस्तेमाल किया जा सकता है
- खून बहना, जो पीरियड्स की तरह ही हो
- खून के थक्के जमना
- इंफेक्शन होना
- गर्भ का ठहरे रहना
- मानसिक समस्याएं
देरी से अबॉर्शन कराने के भी गंभीर जोखिम हो सकते हैंः
- गर्भ में छेद होना, जो आसपास की संरचनाओं को नुकसान पहुंचा सकती है
- गर्भाशय या सर्विक्स को नुकसान होना।
इसलिए अबॉर्शन के बारे में विचार करने से पहले इससे जुड़े जोखिमों और लाभ के बारे में अपने डॉक्टर से बात करें।
प्रक्रिया
अबॉर्शन के लिए कौन-से तरीके उपलब्ध हैं?
प्रारंभिक चिकित्सा प्रक्रिया (9 सप्ताह तक के लिए)
यह प्रक्रिया एक तरह से प्राकृतिक गर्भपात के तरीके से ही काम करती है। अगर 9 हफ्ते के पहले-पहले यह प्रक्रिया अपनाई जाए तो यह सबसे ज्यादा प्रभावी होती है।
इसमें आपको निगलने के लिए मिफेप्रिस्टोन टैबलेट दिया जाएगा। यह आपके गर्भावस्था के हार्मोन के स्तर को कम करता है।
इसके दो दिन बाद, आपको प्रोस्टाग्लैंडीन की चार गोलियां खाने के लिए देंगे। इससे आपका गर्भाशय गर्भ में बनने वाले भ्रूण को बाहर निकाल देता है। इस दौरान आपकी योनि से खून बहेगा, उल्टी और पीरियड्स जैसा दर्द भी होगा। दर्द और उल्टी से राहत पाने के लिए आप दर्द निवारक दवाएं खा सकती हैं।
वैक्यूम ऐस्परेशन प्रक्रिया (14 सप्ताह तक के लिए)
इस प्रक्रिया में आमतौर पर जनरल एनेस्थीसिया की खुराक दी जाती है। इसके बाद सक्शन ट्यूब का इस्तेमाल करके आपकी योनि से भ्रूण को बाहर निकाल देते हैं। जिसमें 10 मिनट से भी कम समय लगता है।
इस प्रक्रिया के बाद आपको कुछ समय तक बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो सकती है।
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मेडिकल टर्मिनेशन (13 सप्ताह तक के लिए)
इसकी प्रक्रिया प्रारंभिक चिकित्सा प्रक्रिया के समान है। इसके तहत आपको आमतौर पर प्रोस्टाग्लैंडिन्स की कई खुराक दी जाती है। जिसे आप मुंह से खा सकते हैं या इसे सीधे योनि के अंदर भी रखा जा सकता है। जिसके बाद दो दिनों तक अस्पताल में भर्ती भी रहना पड़ सकता है।
डायलेशन और इवैक्यवैशन सर्जरी (D&E) (14 सप्ताह के लिए)
डायलेशन और इवैक्यवैशन सर्जरी आमतौर पर जनरल एनेस्थीसिया देकर की जाती है। इसमें 20 मिनट से भी कम समय लगता है। इसमें एक विशेष ट्यूब और उपकरणों का इस्तेमाल करके आपकी योनि के माध्यम से भ्रूण को बाहर निकाल दिया जाता है। अगर इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से बात करें।
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रिकवरी
अबॉर्शन के बाद क्या होता है?
अबॉर्शन के कुछ समय बाद आप घर जा सकती हैं। हालांकि, अगर देरी से अबॉर्शन कराया है तो आपको एक दिन अस्पताल में रूकना पड़ सकता है।घर जाने के बाद भी डॉक्टर कुछ दिन आराम की सलाह देते हैं। दर्द से राहत पाने के लिए दर्द निवारक दवाओं का इस्तेमाल कर सकती हैं। इस दौरान आपको पीरियड्स की तरह ही कुछ दिनों के लिए ब्लीडिंग और पेट मे ऐंठन हो सकती है।
इससे आपकी प्रजनन क्षमता प्रभावित नहीं होती है। हालांकि, अगर आप फिर से प्रेग्नेंसी की प्लानिंग करती हैं, तो इसके बारे में अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
अबॉर्शन के बाद कुछ महिलाएं भावनात्मक रूप से उदास या डिप्रेशन में जा सकती है। अगर ऐसी स्थिति अधिक समय तक बनी रहती है, तो जल्द से जल्द अपने चिकित्सक को बताएं।
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