क्या मां एक शब्द है या फिर एक एहसास, जो आपको बहुत कुछ करने के लिए उकसाता है। एक मां बच्चे की भूख का एहसास कर सकती है। उसके दर्द को भी महसूस कर सकती है। जरूरत पड़ने पर मां हमेशा साथ खड़ी रहती है और जब बच्चे को ऐसी मां मिलती है तो उसके मन में ये प्रश्न नहीं आता है कि मां मैं आपकी कोख से आया हूं या कहीं और से। ये सच है कि जन्म से बड़ा परवरिश का रिश्ता होता है। एडॉप्शन के साथ मां बनना (Becoming a mother with adoption) अक्सर लोगों के मन में कई सवाल पैदा कर देता है। अक्सर लोग ये प्रश्न करते हैं कि एडॉप्ट किए गए बच्चे के साथ मां की वो बॉन्डिंग नहीं बन पाती है, जो जन्म देने के बाद बनती है। आप इसे महज एक सोच भी कह सकते हैं। व्यक्ति का व्यवहार एक जैसा नहीं होता है, तो इस रिश्ते में एक जैसी राय कैसे बनाई जा सकती है? एडॉप्शन (Adoption) के बाद मां बनने का एहसास भी ठीक वैसा ही होता है, जैसा बच्चे को खुद जन्म देने के बाद। फर्क सिर्फ इतना होता कि एडॉप्शन (Adoption) के बाद बच्चा धीरे-धीरे मां के मन में पलता है। ये तर्क का विषय हो सकता है लेकिन ज्यादातर मांओं का एहसास एक जैसा ही होता है। आज हम आपको ऐसी ही एक मां से रूबरू कराएंगे, जिन्होंने एक बच्चे को गोद लिया और आज वो पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं। ‘मदर्स डे’ के मौके पर पढ़ें ऐसी मां की कहानी, जिनके एक आशावादी कदम ने उनकी जिंदगी में खुशिया भर दी।