गर्भ में ही शिशु के भौतिक जीवन की नीव रख दी जाती है। इस दौरान माता-पिता बच्चे को तत्काल भौतिक वातावरण प्रदान करते हैं, जिससे शिशु का शारीरिक विकास होता है। शिशु के अधिकतर अंग गर्भ में ही बन जानते हैं। इसके माता-पिता को कई चीजों का ध्यान रखना पड़ता है जैसे मां का सही आहार खाना, डॉक्टर की सलाह का पालन करना, समय-समय पर सभी टेस्ट कराना और शिशु को हर समस्या से बचाना आदि।
भावनात्मक नींव बनाना (Build an emotional foundation)
गर्भ में जीवन के बारे में सबसे बड़ा आश्चर्य इमोशनल इन्वोल्वमेंट और एक्सप्रेशन (Emotional Involvement and expression) है, जो आमतौर पर मनोविज्ञान या चिकित्सा में अपेक्षित नहीं है। ऐसा माना जाता है कि गर्भ में 15 सप्ताह के बाद बच्चा मां की हंसी या खांसी पर अपनी प्रतिक्रिया देता है।
माता पिता के साथ बेहतरीन संबंध स्थापित करना (Bond with Parents)
गर्भ में ही शिशु अपने माता-पिता के साथ अच्छा संबंध बना लेता है। इस दौरान न केवल वो अपनी मां बल्कि पिता के टच और उनकी आवाज को भी पहचानने लगता है।
बच्चे की उम्र के अनुसार पेरेंटिंग (Parenting) में किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?
बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, वैसे ही बढ़ती हैं पेरेंट्स की मुश्किलें। खासतौर, पर वो माता-पिता जो संयुक्त परिवार में नहीं रहते। आजकल अधिकतर पेरेंट्स नौकरी करते हैं। ऐसे में बच्चों के लिए किसी के पास अधिक समय नहीं होता। उससे भी ज्यादा चिंता है इंटरनेट, मोबाइल और अन्य तकनीकों की। बच्चे आजकल केवल इन्हीं में व्यस्त रहते हैं। लेकिन, कुछ बातों का ध्यान रख कर आप पेरेंटिंग (Parenting) की समस्याओं को कम कर सकते हैं। जानिए बच्चे की उम्र के अनुसार पेरेंटिंग (Parenting) में किन बातों का ख्याल रखना चाहिए:
5 से 10 साल के बच्चे (Positive parenting of early aged child)
इस उम्र के बच्चों में एनर्जी कमाल की होती है और यह हमेशा कुछ न कुछ नया सीखने को तैयार रहते हैं। इस उम्र में आप जो आदतें उन्हें सीखा देंगे या जो भी बताएंगे, वो पूरी उम्र उनके साथ रहेगा। जानिए इस उम्र में किन बातों का आप रखें ध्यान: