के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
फाइलेरिया (Filaria) एक शारीरिक बीमारी है, जिसे हिंदी में हाथी पांव कहते हैं। इसे अंग्रेजी में फाइलेरियासिस (Filariasis) और एलीफेंटिटिस (Elephantiasis) भी कहते हैं। फाइलेरिया या हाथी पांव की समस्या से पीड़ित सबसे अधिक लोगों की संख्या भारत में हैं। फाइलेरिया बीमारी का संक्रमण आमतौर से बचपन में ही हो सकता है। लेकिन इसके गंभीर लक्षण सात से आठ सालों में दिखाई दे सकते हैं। इसे फीलपांव और श्लीपद भी कहते हैं। सामान्य तौर पर उष्णकटिबंधीय देशों में इसके मरीजों की संख्या सबसे अधिक पाई जा सकती है। फाइलेरिया बीमारी परजीवी (पैरासिटिक) निमेटोड कीड़ों के कारण होता है जो छोटे धागों जैसे दिखाई देते हैं।
फाइलेरिया बीमारी फिलेरी वुचरेरिअ बैंक्रोफ्टी (Filariae-Wuchereria Bancrofti), ब्रूगिआ मलाई (Brugia Malayi) और ब्रूगिआ टिमोरि (Brugia Timori) नामक निमेटोड कीड़ो के कारण होती है। हालांकि, इनमें से सबसे बड़ा कारण वुचरेरिअ बैंक्रोफ्टी नाम के परजीवी को माना जा सकता है। हाथी पांव के कारण विकलांगता और कुरूपता की समस्या हो सकती है। भारतीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इसके मरीजों की बढ़ती संख्या को कंट्रोल करने के लिए सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों की शुरुआत की गई है, जो लगभग 40 करोड़ से अधिक लोगों को फाइलेरिया से बचाव करने के लिए मुफ्त में दवा प्रदान करता है।
रिपोर्ट की मानें, तो मौजूदा समय में देश में 2.3 करोड़ से अधिक लोगों को इसकी समस्या है। जबकि, भविष्य में लगभग 50 करोड़ लोगों को फाइलेरिया (Filaria) होने का जोखिम बना हुआ है।
फाइलेरिया के अलग-अलग प्रकार हो सकते हैं।
परजीवी (पेरेसिटिक) कीड़ें शरीर के किस क्षेत्र को प्रभावित करते हैं, उसके अनुसार ही फाइलेरिया की बीमारी हो सकती है, जो 3 प्रकार के होते हैं, जिनमें शामिल हैंः
यह लिम्फ (लसीका) की प्रणाली के साथ लिम्फ नोड (लसीकापर्व) को प्रभावित कर सकता है।
यह त्वचा के नीचे की परत को प्रभावित कर सकता है।
यह पेट की सीरियस कैविटी को प्रभावित कर सकता है।
फाइलेरिया गंभीर बनने से पहले विभिन्न चरणों से होकर गुजरता है।
फलेरिया के कीड़ों के जीवन में 5 चक्र होते हैं। जिसके मुताबिक ही हाथी पांव की समस्या के भी पांच स्टेज होते हैं, जिसमें शामिल हैंः
इन कीड़ों के ये सभी चरण पीड़ित व्यक्ति के शरीर के खून के अंदर होता है। इसके पहले चरण से लेकर आखिरी चरण तक होने में कई सालों का समय लग सकता है। जिसकी वजह से इसके लक्षण कई सालों के बाद दिखाई देते हैं।
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फाइलेरिया या हाथी पांव के लक्षण सामान्यता शुरू में दिखाई नहीं देते हैं। इसके परजीवी शरीर में प्रवेश करने के लक्षण लगभग सात से आठ सालों बाद दिखाई दे सकते हैं, जिसके चलते निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जिनमें शामिल हैंः
एक बात का ध्यान रखें कि, हाथी पांव की समस्या वंशानुगत नहीं हो सकती है। अगर कोई महिला या पुरुष इस बीमारी से पीड़ित है, तो इसका प्रभाव होने वाले भ्रूण या बच्चे पर नहीं पड़ सकता है।
इसके अलावा हाथी पांव के तीनों प्रकार के अलग-अलग लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जिनमें शामिल हैंः
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फाइलेरिया (हाथी पांव) की बीमारी सबसे ज्यादा गरीब इलाकों में होने का खतरा हो सकता है क्योंकि ऐसे स्थानों में प्रदूषण के कारण मच्छरों के विकास की संभावना अधिक हो सकती है। फाइलेरिया बीमारी का सबसे मुख्य कारण फाइलेरिया संक्रमण मच्छरों के काटने के कारण होता है। ये मच्छर फ्युलेक्स और मैनसोनाइडिस प्रजाति के होते हैं। ये मच्छर एक धागे समान परजीवी को छोड़ता है। ये परजीवी हमारे शरीर में प्रवेश करके हाथी पांव की बीमारी का कारण बन सकते हैं।
इसके अलावा एक अकेली वयस्क मादा फाइलेरिया परजीवी नर कृमि से जुड़ने के बाद, लाखो सूक्ष्म फाइलेरिया भ्रूणों की पीढ़ियों को जन्म दे सकती है, जो शरीर में प्रवेश कर खून को प्रभावित करते हैं। इनकी यह प्रक्रिया बीमार व्यक्ति के खून की नसों में होता है।
इसके अलावा यह रोग इससे बीमार व्यक्ति के संपर्क आने में किसी अन्य व्यक्ति में भी फैल सकता है, जैसेः
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फाइलेरिया या हाथी पांव का निदान करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिनमें शामिल हैंः
यह ब्लड टेस्ट अक्सर गहरी नींद में होने के दौरान ही किया जाता है। ताकि, टेस्ट की नतीजों में इन कीड़ों की संख्या का अनुमान अधिक सटीक आए।
खून में एंटीबॉडी की जांच करने के लिए इम्यूनोडायग्नोस्टिक टेस्ट किया जा सकता है। इससे खून में फाइलेरिया परिसंचरण करने वाला प्रतिजन (Circulating Filarial Antigen (CFA)) है या नहीं यह जानने के लिए यह टेस्ट किया जा सकता है।
फाइलेरिया या हाथी पांव से बचने का सबसे अच्छा तरीका है स्वच्छ और खुली हवा में रहना। इसका सबसे मुख्य कारण मच्छर होते हैं। इससे मच्छरों के काटने से बचना चाहिए। आमतौर पर देखा जाए, मच्छर सुबह और शाम के समय ज्यादा काटते हैं इससे बचने के लिए आप निम्न उपाय कर सकते हैंः
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फाइलेरिया या हाथी पांव के मरीजों को अपने आहार में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिनमें शामिल हैंः
हालांकि, इसका सेवन करने से पहले आपको अपने डॉक्टर की सलाह लेनी जरूरी हो सकती है।
निम्न विधियों से हाथी पांव का उपचार किया जा सकता है, जिनमें शामिल हैंः
डॉक्टर्स के मुताबिक, फाइलेरिया या हाथी पांव के कारण हुए कुष्ठ रोग से प्रभावित अंगों को रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के जरिए दोबारा सही किया जा सकता है। लेकिन इसका उपचार नहीं किया जा सकता है। हालांकि, इसकी रोकथाम करनी मददगार हो सकती है।
कुछ शोध में आइवरमेक्टिन और अल्बेंडाजोल का इस्तेमाल भी लाभकारी पाया गया है। प्रभावित क्षेत्र को साफ करके वहां पर इसका इस्तेमाल करने से बैक्टीरियल संक्रमण से बचा जा सकता है।
एरोसोल (AEROSOL) मच्छर को दूर करने वाला एक स्प्रे होता है, जिसे आप अपने घर में इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि, इसका इस्तेमाल आप अपने डॉक्टर की सलाह से कर सकते हैं।
भारत सरकार ने फाइलेरिया का उपचार करने और इसे नियंत्रित करने के लिए फाइलेरिया उन्मूलन नाम का कार्यक्रम चलाया है। इसके तहत सार्वजनिक दवा सेवन (एम.डी.ए.) किया जाता है, जिसमें डी.ई.सी. दवा की एक खुराक लोगों को साल में एक बार खिलाई जाती है।
इस फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तरत चिकित्सक शाम 7 से 12 बजे रात क्षेत्र के प्रत्येक परिवार में जाते हैं। जहां के परिवार के प्रत्येक सदस्य की अंगुलियों में से वे खून की बूंदे लेते हैं।
इसके अगले दिन चिकित्सक सभी लोगों को फिलपांव रोग के बैक्टीरिया मारने वाली एक खुराक सभी लोगों को देते हैं। जो निशुल्क होती है।
एक व्यक्ति को इसकी खुराक चार से छह साल तक के लिए साल में एक बार दी जा सकती है।
फाइलेरिया के उपचार के लिए डाइथीकार्बमैजीन (Diethylcarbamazine) (डी.ई.सी.) का उपयोग करना लाभकारी हो सकता है। यह खून में मौजूद सूक्ष्मफाइलेरिया को खत्म कर सकता है, लेकिन वयस्क कीड़ों पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता है।
डी.ई.सी की खुराक खाने से पहले आपको निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिनमें शामिल हैंः
अगर आपका इससे जुड़ा किसी तरह का कोई सवाल है, तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा।
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