आमतौर पर एलजीवी में पहले रेक्टम या जेनिटल एरिया में छोटे घाव होते हैं जो धीरे-धीरे यानी 3 से 30 दिन के भीतर अल्सर में बदल जाते हैं। यूरेथ्रा, वजायना और रेक्टम के अल्सर के बारे में पता नहीं चल पाता है इसलिए वहां लंबे समय तक रह सकते हैं। अन्य सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज जिसके कारण अल्सर होता है, के साथ मिलकर एलजीवी एड्स के ट्रांस्मीशन की संभावना बढ़ा देता है। कई बार रेक्टल इंफेक्शन के लक्षणों को गलती से अल्सरेटिव कोलाइटिस से जोड़कर देखा जाने लगता है। लिम्फोग्रैनुलोमा वेनेरम की पहचान जल्दी नहीं हो पाती इसलिए इसके कई मामलों का पता ही नहीं चल पाता। इसके अलावा पुरुषों के पुरुषों के साथ सेक्स संबंध बनाने पर इसका खतरा और बढ़ जाता है।
और पढ़ें: मैलरी-वाइस सिंड्रोम क्या है?
कारण
लिम्फोग्रैनुलोमा वेनेरम के कारण
लिम्फोग्रैनुलोमा वेनेरम एक व्यक्ति से दूसरे में फैलता है। प्रभावित हिस्से के सीधे संपर्क में आने पर संक्रमण फैल जाता है। यह आमतौर पर सेक्सुअल इंटरकोर्स और त्वचा के संपर्क में आने से फैलता है।
लिम्फोग्रैनुलोमा वेनेरम लिम्फैटिक सिस्टम में होने वाला दीर्घकालिक (क्रोनिक) संक्रमण है। यह बैक्टीरिया क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस के तीन अलग-अलग प्रकार (सेरोवर्स) में से किसी के भी कारण हो सकता है। यह बैक्टीरिया सेक्सुअल संबंध बनाने पर फैलते हैं। यह संक्रमण उसी बैक्टीरिया के कारण नहीं होता है जो जेनिटल क्लैमाइडिया के लिए जिम्मेदार होते हैं। यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक होता है और एचआईवी पॉजिटिव लोगों में इसका खतरा अधिक होता है।
संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद कितनी जल्दी आप इसका शिकार हो सकते हैं, इस बारे में साफ तौर पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन अन्य सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज की तलुना में यह कम संक्रामक होता है। यदि किसी व्यक्ति ने लिम्फोग्रैनुलोमा वेनेरम से संक्रमित व्यक्ति के साथ संक्रमण के लक्षण दिखने के 60 दिनों के अंदर यौन संबंध बनाए हैं तो उसे मूत्रमार्ग या ग्रीवा क्लैमाइडियल संक्रमण की जांच करवानी चाहिए, और 7 दिनों के लिए रोजाना दो बार डॉक्सीसाइक्लिन दवा दी जानी चाहिए।