जानिए मूल बातें
फीटल फाइब्रोनेक्टिन टेस्ट का इस्तेमाल उन महिलाओं के लिए किया जाता है, जिनमें समय से पहले प्रसव (प्रीटर्म प्रेग्नेंसी) और इंटेक्ट मेम्ब्रेन (हमेशा बरकरार रहने वाली झिल्ली) की आशंका होती है। फीटल फाइब्रोनेक्टिन एक प्रकार का ग्लाइकोप्रोटीन होता है जिसका पता गर्भावस्था के दौरान योनि के गर्भाशय ग्रीवा में संकुचन होने से लगाया जा सकता है। गर्भावस्था के 22वे और 35वे हफ्तों के बीच इसका स्तर कम रहता है। यह दो चरणों में की जाने वाली प्रक्रिया है।
पहले चरण में स्पेक्युलम (एक प्रकार का उपकरण) परीक्षण की मदद से गर्भाशय ग्रीवा का सैंपल लिया जाता है। इसके दूसरे चरण में फीटल फाइब्रोनेक्टिन की 50 एनजी/एमएल के होने या न होने की जांच की जाती है। इसकी मदद से प्रीटर्म प्रेग्नेंसी के जोखिम का पता लगाया जाता है। ये टेस्ट करवाने से प्रेग्नेंसी में होने वाली कई परेशानियों को रोका जा सकता है।
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क्या है फीटल फाइब्रोनेक्टिन?
फीटल फाइब्रोनेक्टिन (एफएफएन) एक प्रकार का प्रोटीन है जो एमनियॉटिक थैली को गर्भाशय से गोंद की तरह जोड़े रखता है। एमनीओटिक थैली एक ऐसा तरल पदार्थ है जो आपके शिशु को गर्भाशय के अंदर सुरक्षित रखता है। यदि यह कनेक्शन टूट जाता है तो फीटल फाइब्रोनेक्टिन आपके सर्विक्स (गर्भाशय ग्रीवा) के पास जमा हो सकता है। यह संबंध किसी संक्रमण, सूजन, गर्भाशय से अलग हुई गर्भनाल (placenta), गर्भाशय के संकुचन या गर्भाशय ग्रीवा के छोटे होने के कारण बाधित हो सकता है।
यदि आपके चिकित्सक समय से पहले प्रसव को लेकर चिंतित होंगे तो वह फीटल फाइब्रोनेक्टिन की जांच के लिए गर्भावस्था के 22वे और 34वे हफ्ते में भ्रूण के कुछ सैंपल ले सकते हैं। टेस्ट के पॉजिटिव परिणाम यह संकेत देते हैं कि एमनीयोटिक फ्लूइड में कोई गड़बड़ी आ चुकी है और ऐसे में सात दिनों के अंदर प्रीमैच्योर डिलिवरी का ज्यादा खतरा है।
एफएफएन टेस्ट क्यों किया जाता है?
प्रीमैच्योर डिलिवरी से पैदा हुए बच्चों में बीमार पड़ने और नवजात होने पर ही मृत्यु का खतरा ज्यादा रहता है। यदि किसी भी नवजात का जन्म 37 हफ्तों से पहले होता है तो उसके बीमार और मृत्यु होने की आशंका बढ़ जाती है। अधिकतर महिलाएं जिन्होंने नौ महीने पूरे होने से पहले शिशु को जन्म दिया होता है, उनमें इसके लक्षण साफ दिखाई देते हैं। इन लक्षणों में गर्भाशय में स्राव मुख्य रूप से शामिल है। हालांकि, ज्यादातर महिलाएं इस लक्षण के बाद शिशु को जन्म दे देती हैं। फीटल फाइब्रोनेक्टिन एक ऐसा टेस्ट है जो इन लक्षणों को पहचानने में मदद करता है। एफएफएन के स्तर का पता गर्भाशय से गर्भाशय ग्रीवा के स्राव के आधार पर लगाया जाता है। यदि परिणाम पॉजिटिव आते हैं तो चिकित्सक नवजात शिशु के फेफड़ो को मजबूत करने के लिए कोई कदम उठा सकते हैं।
प्रीमैच्योर बेबी बर्थ होने के क्या लक्षण हो सकते हैं?
अगर निम्न से आपको किसी भी लक्षण का अनुभव होता है, तो यह समय से पहले बच्चे के जन्म के संकेत हो सकेत हैं, जिनमें शामिल हैंः
- पेट में संकुचन होना या थोड़ी-थोड़ी देर में पेट में दर्द का अनुभव होना
- लगातार कमजोरी महसूस करना
- पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना
- पेल्विक (श्रोणि) या पेट के निचले हिस्से में दबाव महसूस करना
- पेट में ऐंठन होना
- योनि का मुंह खुलना
- योनि से अचानक खून बहना (रक्तस्राव)
- झिल्ली का टूटना (मां के गर्भ में शिशु के चारों ओर की मांस की बनी एक पतली परत होती है, जिसे झिल्ली कहते हैं जिसमें तरल पदार्थ भरा रहता है। जो बच्चे के जन्म के दौरान फट जाती है।)
- योनि स्राव के प्रकार में परिवर्तन महसूस करना, जैसे योनि से पानीनुमा, बलगम या खून जैसा चिपचिपा पदार्थ बहना।
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जानने योग्य बातें
क्या इस टेस्ट के कोई जोखिम भी हैं?
इस टेस्ट की प्रक्रिया बेहद आसान होती है। हालांकि, इसका परिणाम कभी-कभी गलत भी आ सकता है।
कैसे करें फीटल फाइब्रोनेक्टिन टेस्ट के लिए तैयारी?
विपरीत या गलत परिणाम से बचने के लिए एफएफएन टेस्ट किसी भी पेल्विस टेस्ट या ट्रांसवजाइनल अल्ट्रासाउंड से पहले किया जाना चाहिए। इन टेस्ट के कारण फीटल फाइब्रोनेक्टिन रिलीज हो जाता है और टेस्ट का परिणाम विपरीत या गलत आता है। संभोग और योनि से खून आना भी परिणामों को प्रभावित कर सकता है। इसलिए 24 घंटों के भीतर योनि से खून आने या सेक्स करने पर इस टेस्ट को न करवाएं।
इसके अलावा टेस्ट से पहले योनि के आसपास किसी भी प्रकार की दवा या लुब्रीकेंट का इस्तेमाल न करें, अन्यथा इससे भी टेस्ट के परिणाम पर प्रभाव पड़ सकता है।
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प्रक्रिया
फीटल फाइब्रोनेक्टिन टेस्ट के दौरान क्या होता है?
एफएफएन टेस्ट के दौरान एग्जाम टेबल पर कमर के बल लिटाया जाता है। चिकित्सक योनि में एक वीक्षणयंत्र (speculum) लगाएंगे और रुई की मदद से गर्भाशय ग्रीवा के आसपास के स्राव का सैंपल लिया जाता है।
टेस्ट के बाद क्या होता है?
सैंपल जांच के लिए लैब भेज दिया जाता है। कुछ मामलों में सैंपल लेने के बाद गर्भाशय ग्रीवा की लंबाई नापने के लिए ट्रांसवजाइनल अल्ट्रासाउंड किया जाता है। इस प्रक्रिया में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण साउंड वेव्स (ध्वनि तरंगोंं) की मदद से एक डिजीटल इमेज तैयार करते हैं।
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परिणामों को समझें
फीटल फाइब्रोनेक्टिन टेस्ट के परिणामों को कैसे समझें?
फीटल फाइब्रोनेक्टिन टेस्ट के परिणाम या तो नेगेटिव होते हैं या पॉजिटिव :
पॉजिटिव परिणाम
पॉजिटिव परिणाम का अर्थ है कि आपके गर्भाशय ग्रीवा के स्राव में फीटल फाइब्रोनेक्टिन मौजूद है। यदि आपका परिणाम 22वें और 34वें हफ्तों के बीच में पॉजिटिव आता है तो आप सात दिनों के भीतर प्रीमैच्योर डिलिवरी के जोखिम में होंगे। चिकित्सक इस स्थिति को संभालने के लिए पहले से ही कुछ ठोस कदम उठाने की तैयारी कर सकते हैं, जैसे कि शिशु के फेफड़ोंं को मजबूत करने के लिए स्टेरॉयड या तंत्रिका संबंधित समस्याओं (neurological complications) के जोखिम को कम करने के कुछ दवाएं दे सकते हैं।
नेगेटिव परिणाम
नेगेटिव परिणाम का मतलब है कि आपके गर्भाशय ग्रीवा के तरल पदार्थ में फीटल फाइब्रोनेक्टिन मौजूद नहीं है। यह इस बात का संकेत देता है कि आप आने वाले 2 सप्ताह में शिशु को जन्म नहीं देने वाले हैं। यहां तक कि नेगेटिव परिणाम इस टेस्ट का सबसे महत्वपूर्ण फायदा हो सकता है। इसकी मदद से आप और चिकित्सक कुछ समय के लिए रिलैक्स महसूस कर सकते हैं।
घर जाते समय क्या करें?
अगर घर जाते समय आपको पेट में किसी प्रकार का दर्द, संकुचन या टाइटनेस महसूस होती है तो आपको वापस लेबर वार्ड से संपर्क करने की आवश्यकता होगी। इस स्थिति को नजरअंदार न करें और तुरंत वापस हॉस्पिटल जाएं।
हालांकि, टेस्ट के परिणाम कई बार गलत भी साबित हो सकते हैं इसलिए अपने फीटल फाइब्रोनेक्टिन टेस्ट के रिजल्ट को बेहतर तरीके से जानने के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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