चांदनी बैंगलोर में रहती हैं लेकिन, उनकी बुजुर्ग चाची और चाचा मुंबई में रहते हैं। जब चांदनी के 76 साल के चाचा को डायलिसिस की जरूरत पड़ी और उस ही समय उनमें कोविड-19 के लक्षण दिखना शुरू हुए, तो यह स्थिति उनके लिए और भी कठिन साबित हुई। मुंबई में इस बुजुर्ग कपल्स के पास कोई भी परिवार का सदस्य नहीं है और इसलिए, चांदनी को बैंगलोर से ही अपने चाचा के लिए एक एम्बुलेंस और हॉस्पिटल विजिट मैनेज करना पड़ा। इसके लिए उन्हें एक नया डायलिसिस सेंटर भी ढूंढना पड़ा क्योंकि उनके रेगुलर डायलिसिस सेंटर ने कोरोना महामारी के कारण अपने रेगुलर पेशेंट्स को लेना बंद कर दिया था। कुछ दिनों बाद, चांदनी की 66 वर्षीय चाची में भी कोरोना रिजल्ट पॉजिटिव पाया गया और दोनों दूसरे अस्पताल में चले गए, जहां उन्हें हॉस्पिटल के आईसीयू में डायलिसिस कराना पड़ा। इस पर हॉस्पिटल ने उनसे डायलिसिस चार्जेज के साथ-साथ आईसीयू के चार्जेज भी देने पड़े। कोविड-19 महामारी के चलते कोरोना के इलाज के अनाप शनाप रूपए लेने के साथ-साथ कई हॉस्पिटल्स ने गैर-कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट चार्जेज में बढ़ोत्तरी कर दी है। एक तरफ जहां कोरोना केसेस (corona cases) बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में गैर-कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट चार्जेज में बढ़ोत्तरी कठिनाईयों को और बढ़ा रही है।
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गैर-कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट चार्जेज में बढ़ोत्तरी
कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउनका प्रभाव फाइनेंसियल मार्केट्स पर साफ दिखाई देता है। कोरोना महामारी से पहले, जहां यह कपल हर डायलिसिस का 2,500 रुपये देते थे। वहीं, नए डायलिसिस सेंटर में, उन्हें एम्बुलेंस के लिए लगभग 10,000 रुपये और डायलिसिस के एक सेशन के लिए 39,000 रुपये का भुगतान करना पड़ा। डायलिसिस की लागत में अचानक बढ़ोत्तरी ने परिवार को काफी परेशान कर दिया।
कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान हेल्थकेयर सेक्टर इसका केंद्र रहा है और प्राइवेट हॉस्पिटल्स ने इसके लिए सभी तरह का सपोर्ट दिया। चाहे वह कोरोना टेस्टिंग की बात हो या कोविड-19 के उपचार के लिए आइसोलेशन बेड तैयार करने की।
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प्राइज कंट्रोल
भारत में प्राइवेट हेल्थकेयर सेक्टर में हेल्थ केयर सर्विसेज के हाई रेट तो वैसे भी किसी से छुपे नहीं हैं, लेकिन कोरोना महामारी ने गैर-कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट चार्जेज में बढ़ोत्तरी को और बिगाड़ दिया है। हालांकि, केंद्र सरकार और अदालतों ने प्राइस कंट्रोल के लिए कुछ कदम उठाए हैं। जैसे सुप्रीम कोर्ट ने RT-PCR टेस्टिंग की कीमत 4,500 रुपये निर्धारित किए। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि एंटीबॉडी किट (antibody kit) भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद को 400 रुपये में बेची जानी चाहिए। हालांकि, कई महत्वपूर्ण वस्तुओं का प्राइज कंट्रोल नहीं किया गया था। इसमें N95 मास्क, पर्सनल सेफ्टी प्रोडक्ट्स, फेस शील्ड, आईसीयू चार्जेज के साथ ही दूसरे कई शुल्क शामिल नहीं थे।
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प्राइवेट हॉस्पिटल्स कर रहे मनमानी
जन स्वास्थ्य अभियान की एक एक्टिविस्ट का कहना है कि गैर-कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट चार्जेज में बढ़ोत्तरी के साथ ही प्राइवेट हॉस्पिटल्स कोविड-19 परीक्षणों पर जोर दे रहे हैं। कोरोना टेस्टिंग के लिए सरकार के मानदंडों पर फिट न बैठने पर भी गैर-कोरोना मरीजों को टेस्टिंग के लिए कहा जाता है। यहां तक कि कुछ निजी अस्पताल इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि नॉन-कोरोना पेशेंट्स और उनके फैमिली मेमबर्स को हर बार अस्पताल जाने पर टेस्टिंग करानी पड़ेगी। यह उन गैर-कोरोना मरीजों के लिए और भी मुसीबत बन गया है जिनको डायलिसिस जैसे नियमित उपचार के लिए जल्दी-जल्दी हॉस्पिटल जाने जरुरत पड़ती है। गैर-कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट चार्जेज में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ ये एक्स्ट्रा बिल भी पे करने पड़ते हैं।
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डायग्नोस्टिक्स लैब का दावा
एक जानी मानी डायग्नोस्टिक्स लैब चेन ने डायग्नोस्टिक पैकेजों में कोरोना टेस्टिंग को भी शामिल कर दिया है। सभी नॉन-कोरोना रोगियों के लिए ये कोरोना टेस्ट्स अनिवार्य करने की पेशकश की गई है। कोविड -19 परीक्षण के सरकारी मानदंडों पर फिट न होने पर भी कई निजी अस्पताल मरीजों को कोरोना परीक्षण कराने पर जोर दे रहे हैं। डायग्नोस्टिक्स लैब चेन ने अस्पतालों में परीक्षणों के लिए 4,500 रुपये से कम का शुल्क लागू किया है लेकिन अस्पताल मरीजों की देखभाल के लिए बायो-सेफ्टी मेजर्स या सैंपल्स इक्क्ठे करने के लिए सर्विस टैक्स भी बिल में जोड़ देते हैं। जबकि सूत्रों की मानें तो आरटी-पीसीआर परीक्षण की कीमतें कम हो सकती हैं। टेस्ट की लागत किए गए परीक्षणों की मात्रा और इस परीक्षण को करने की क्षमता पर निर्भर करती है। यदि सरकार टेस्टिंग बढ़ाती है और लैब परीक्षण के लिए अपनी क्षमता बढ़ाती हैं, तो प्राइज कम हो सकते हैं।
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गैर-कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट चार्जेज में बढ़ोत्तरी : मेडिकल डिवाइजेज पर भी दिख रहा असर
गैर-कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट चार्जेज में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ मेडिकल डिवाइजेज के दामों पर भी असर साफ दिखाई दे रहा है। देश, चीन से ऑर्थोपेडिक इम्प्लांट्स, ग्लव्स, सीरिंज, बैंडेज, कंप्यूटेड टोमोग्राफी (computed tomography) और मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग उपकरणों (magnetic resonance imaging devices) के साथ-साथ डिस्पोजेबल उपकरणों का आयात करता है। चीन में कोरोना संकट के कारण, भारत भर में मेडिकल डिवाइज मैन्युफैक्चरर के लिए जरूरी कच्चा माल और इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स को इंपोर्ट करना मुश्किल हो रहा है। नतीजन, मेडिकल डिवाइजेज के दामों में भी वृद्धि हो रही है।
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सेफ्टी प्रोडक्ट्स के बढ़े दामों ने भी किया परेशान
गैर-कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट चार्जेज में बढ़ोत्तरी के साथ ही कोरोना वायरस से संक्रमित मामलों की बढ़ती संख्या के बीच N-95 मास्क, हैंड सैनिटाइजर और पीपीई किट के प्राइज में भी उछाल आया। कोरोना वायरस के खिलाफ रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा अनुशंसित विशेष रूप से मार्केट में एन-95 मास्क की भारी मांग है। 45 रुपये की रेंज में मिलने वाले N-95 मास्क भी कई स्टोर्स पर 1000 रुपये में मिल रहे हैं।
यही हाल बाजारों में हैंड सैनिटाइजर का भी है मार्केट में हैंड सैनेटाइजर की कमी होने की वजह से इनके दामों में भी बढ़ोत्तरी की बात सामने आई है। वहीं, महाराष्ट्र खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने एनपीपीए (National Pharmaceutical Pricing Authority) से एन 95 मास्क और पीपीई किट की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उचित दर और इन सेफ्टी प्रोडक्ट्स के प्लग ओवरचार्जिंग को सुनिश्चित करने का आग्रह किया है।
एक ओर देश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या ढाई लाख पार कर गई है। ऐसे में गैर-कोरोना मरीजों की परेशानियां और भी बढ़ती जा रही हैं। एक ओर जहां उन्हें सही समय पर मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं मिल पा रहा है वहीं, दूसरी ओर गैर-कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट चार्जेज में बढ़ोत्तरी मुसीबत का सबब बनी हुई है। ऐसे में सरकार को इस ओर कोई कठोर कदम उठाने की जरुरत है जिससे कोरोना महामारी के बीच में नॉन-कोरोना पेशेंट्स को मुसीबतों से दो चार न होना पड़े।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है।
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