के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr. Pooja Bhardwaj
निपाह वायरस एक जानलेवा वायरस है। निपाह वायरस के कारण दुनिया भर में मौतों का आंकड़े भी डराने वाले हैं। इस वायरस की चपेट में आने पर पीड़ितों का डेथ रेट लगभग 74.5 प्रतिशत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, निपाह वायरस (Nipah Virus) एक तेजी से फैलने वाला वायरस है, जिसके संक्रमण से इंसानों को जानलेवा बीमारी हो सकती है।
निपाह वायरस सबसे पहले साल 1998 में मलेशिया के कंपंग सुंगाई में पाया गया था। वहीं से इस वायरस को निपाह नाम मिला। उस वक्त इस बीमारी के वाहक सूअर बने थे। इस मामले के बाद जहां निपाह वायरस के केस मिले। वहां इस वायरस के वाहक का स्पष्ट रूप से पता नहीं लग पाया था। इसके बाद साल 2004 में बांग्लादेश में कुछ लोग निपाह वायरस से संक्रमित पाए गए। इन सभी लोगों ने खजूर के पेड़ से निकलने वाले लक्विड का सेवन किया था। यहां सामने आया कि इस तरल में वायरस चमकादड़ों के कारण पहुंचा। इन चमकादड़ों को फ्रूट बैट भी कहा जाता है। यह वायरस इंसानों में संक्रमित चमगादड़ों, सूअरों या फिर दूसरे इंसानों से फैल सकता है।
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साल 2004 में बांग्लादेश में कुछ लोगों के इस वायरस के शिकार होने के बाद इस वायरस के एक इंसान से दूसरे इंसान तक पहुंचने का मामला भारत में सामने आया।
साल 1998-99 में जब ये बीमारी फैली थी, तो इस वायरस की चपेट में 265 लोग आए थे। अस्पतालों में भर्ती हुए इनमें से करीब 40 प्रतिशत मरीज ऐसे थे, जिन्हें गंभीर नर्वस बीमारी हुई थी और उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। आमतौर पर, ये वायरस इंसानों में इंफेक्शन की चपेट में आने वाली चमगादड़ों, सूअरों या फिर दूसरे इंसानों से फैलता है।
मलेशिया और सिंगापुर में इसके सूअरों के जरिए फैलने की जानकारी मिली थी जबकि, भारत और बांग्लादेश में इंसान से इंसान का संपर्क होने पर इसकी चपेट में आने का खतरा ज्यादा रहता है।
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निपाह वायरस टेरोपोडिडेई परिवार के फ्रूट बैट (चमगाड़) के कारण फैलता है। ऐसे चमगादड़ का खाया हुआ फल खाने से यह वायरस फैल सकता है।
निपाह वायरस मनुष्यों में संक्रमित चमगादड़, सूअर और अन्य संक्रमित मनुष्य के संपर्क में आने से फैल सकता है।
मलेशिया और सिंगापूर में लोग आमतौर पर संक्रमित सूअरों के संपर्क में आने के कारण निपाह वायरस की चपेट में आए थे। इस वायरस पर की गई रिसर्च में पाया गया कि यह सूअरों में संक्रमित चंगादड़ो से आया था।
इसके बाद लोगो के संक्रमित सूअर को खाने या उसके पास जाने से वह संक्रमित हुए। इस महामारी में मनुष्य से मनुष्य के बीच फैलने के कोई मामले दर्ज नहीं हुए।
इसके विपरीत भारत और बांग्लादेश में निपाह वायरस के एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में लगातार फैलने के मामलें सामने आते रहे। यह आमतौर पर निपाह वायरस से संक्रमित मरीज का ध्यान रखने वाले व्यक्तियों के साथ हुआ था।
चमगादड़ो के सीधे संपर्क में आने से भी वायरस का ट्रांसफर होना संभावित है।
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निपाह वायरस संक्रमण मस्तिष्क में सूजन से जुड़ा होता है। इस वायरस के संपर्क में आने के 5 से 14 दिनों के अंदर मरीज को बुखार महसूस होने लगता है जिसके साथ 3 से 14 दिनों में सिरदर्द, नींद आना, बेहोशी और मानसिक तौर पर भ्रमित महसूस होने लगता है।
इस प्रकार के लक्षण 24 से 48 घंटों के अंदर व्यक्ति को कोमा में पहुंचा सकते हैं। संक्रमण के शुरुआती दिनों में कुछ मरीजों को श्वसन संबंधी समस्याएं भी महसूस हो सकती हैं। तो कुछ को तंत्रिकाओं के साथ फेफड़ों संबंधी बिमारियों के लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं।
1998 और 1999 में हुई निपाह वायरस महामारी में संक्रमण से कुल 265 लोग संक्रमित हुए थे। जिनमे से तंत्रिकाओं संबंधी रोग से ग्रस्त 40 प्रतिशत लोगो की बीमारी की वजह से मृत्यु हो गई।
निपाह वायरस संक्रमण से ठीक हुए लोगों में संक्रमण के वापिस आने के लक्षण भी दिखाई दिए जिनमें से कई लोगों की कुछ महीनो या साल बाद मृत्यु भी हो गई।
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इंसानों को इस बीमारी से बचाने के लिए अभी तक कोई इंजेक्शन या दवा नहीं बनाई जा सकी है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एक कमेटी बनाई है, जो बीमारी की तह तक जाने में जुटी है। इस वायरस से बचने के लिए संक्रमित व्यक्ति को सीधे हॉस्पिटल में एडमिट कराना चाहिए।
हालांकि, सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार निपाह वायरस से ग्रसित व्यक्ति के निदान की प्रक्रिया में कुछ विशेष प्रकार के टेस्ट का कॉम्बिनेशन किया जा सकता है।
गले और नाक की नलिका से सैंपल लेने के लिए रियल टाइम पॉलीमिरेस चेन रिएक्शन (RT-PCR) का इस्तेमाल किया जा सकता है। संक्रमण के शुरुआती चरणों में इस टेस्ट में मस्तिष्क में मौजूद तरल पदार्थ, पेशाब और खून का सैंपल भी लिया जाता है।
आगे चल कर एंटीबाडी का पता लगाने के लिए ईएलआईए (IgG और IgM) टेस्ट का उपयोग भी किया जा सकता है। कुछ बेहद दुर्लभ व गंभीर मामलों में ऑटोप्सी के दौरान ऊतकों की इम्यूनोहिस्ट्रीकेमिस्ट्री निपाह वायरस के बारे में पता लगाने का एक मात्र तरीका बचता है।
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निपाह वायरस का इलाज केवल सहायक देखभाल तक ही सिमित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि निपाह वायरस इन्सेफेलाइटिस (मस्तिष्क की सूजन) एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में ट्रांसफर हो सकती है। संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सही नर्सिंग तकनीकों का पालन करना और इसके रोकथाम को अपनाना बेहद आवश्यक है।
विट्रो में रिबाविरिन ड्रग द्वारा वायरस के खिलाफ सकरात्मक प्रभाव देखे गए हैं लेकिन मनुष्यों पर रिसर्च की कमी होने के कारण इसे क्लीनिकल इस्तेमाल के लिए फिलहाल असमर्थ माना जाता है।
इंसानो की मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की मदद से निष्क्रिय टीकाकरण का इस्तेमाल किया जा सकता है जिसमें निपाह जी ग्लाइकोप्रोटीन को बढ़ाया जाता है। इस प्रक्रिया का इस्तेमाल थेरेपी से पहले किया जाता है।
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भारत में निपाग वायरस का सबसे पहला हमला साल 2001 में देखा गया था। इस समय जनवरी और फरवरी महीने में सिलिगुड़ी में देश में सबसे पहले इस वायरस के केस देखे गए थे। पहली बार में ही यह इतना गंभीर था कि यहां इसके लगभग 66 मामले सामने आए थे। वहीं इन 66 में से 45 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद छह साल बाद निपाह वायरस के दुसरी बार मामले भी पश्चिम बंगाल में ही देखने को मिले। लेकिन इस बार ये यहां नदिया नामक जगह पर मिलें। इस बार केवल पांच मामले दर्ज किए गए थे और इस बार पांचों की ही मौत हुई थी।
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साल 2019 में भारत में निपाह वायरस का ताजा मामला दर्ज होने के बाद एक मौत भी हुई थी। इसके बाद एक डॉक्टरों की टीम ने देश भर से कुल 21 जगहों से सैंपल इकट्ठे किए थे। साथ ही यह सैंपल्स अलग-अलग पशु-पक्षियों के थे, जो पहले इस वायरस के वाहक बन चुके हैं। इनमें चमगादड़, सुअर, गोवंश, बकरी और भेड़ भी शामिल थी। इन सैंपल्स को यहां से भोपाल में राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान और पुणे में विषाणु विज्ञान संस्थान भेजा गया। साथ ही केरल में हुई मौत के बाद उस घर के कुएं में पाए गए चमगादड़ों के नमूने इनमें शामिल किए गए थे। लेकिन, अधिकारियों का कहना था कि इन चमगादड़ों में निपाह वायरस के सैंपल नहीं मिले। इसके अलावा हिमाचल में मृत पाए गए चमगादड़ों के नमूनों को पुणे लाया गया था। लेकिन, इनमें भी कोई विषाणु नहीं पाए गए।
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