बच्चे की हंसी के साथ-साथ बच्चे के शरीर का हर एक अंग आकर्षित करता है। बच्चे के छोटे-छोटे हाथ पैर, छोटी सी नाक और आंखें लोगों को अपनी ओर खींचती हैं। अगर आंखों का रंग काला ना होकर भूरा यह हल्का नीला है, तो यकीनन यह बच्चे की खूबसूरती को और बढ़ाने का काम करता है। आपके मन में यह सवाल जरूर होगा कि आखिरकार बच्चे की आंखों का रंग क्या समय के साथ बदलता है? बच्चों की आंखों का रंग माता-पिता की आंखों के रंग पर निर्भर करता है। अगर पेरेंट्स की आंखें काली या फिर भूरी हैं, तो संभावना बढ़ जाती है कि बच्चे की आंखों का रंग भी वैसा ही हो। आइए जानते हैं कि बेबी की आंखों का रंग किन बातों पर निर्भर करता है।
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बेबी की आंखों का रंग (Baby Eye Color)
जैसा कि हमने आपको पहले भी बताया कि बच्चे की आंखों का रंग माता-पिता की आंखों पर निर्भर करता है। यह पूरी तरीके से अनुवांशिक प्रक्रिया होती है। यानी कि अगर परिवार में बाबा, दादी या किसी अन्य व्यक्ति की आंखों का रंग नीला या बुरा है, तो हो सकता है कि आपके बच्चे की भी आंखों का रंग वैसा ही हो। आंखों का रंग 3से 6 महीने की उम्र में बदल सकता है। आंखों का रंग पिगमेंट मिलेनिन पर निर्भर करता है, जो कि आयरिस पर होती है।
जब तक बच्चे की उम्र 3 वर्ष की नहीं हो जाती है, तब तक बच्चों की आंखों के रंग के बदलने की संभावना बनी रहती है। यह सभी बच्चों में हो, ऐसा जरूरी नहीं है लेकिन ज्यादातर बच्चों में यह बदलाव दिखाई दे सकता है। बच्चों की आंखों में रंग में बदलाव जेनेटिक या अनुवांशिक रूप से होता है। ऐसा क्यों होता है, इस बारे में बता पाना मुश्किल है लेकिन ऐसा जीन के कारण ही होता है।
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- अगर बायोलॉजिकल माता-पिता की आंखें भूरी हैं, लेकिन अगर किसी के माता-पिता नीली आंखों वाले हैं, तो इस बात की थोड़ी संभावना है कि आपके नन्हे-मुन्नों की आंखें हमेशा के लिए नीली हो जाएंगी।
- यदि एक बायोलॉजिकल माता-पिता की आंखें नीली और दूसरी भूरी हैं, तो आपके बच्चे के पास स्थायी रूप से नीली आंखें होने की 50-50 संभावना है।
- यदि बायोलॉजिकल माता-पिता दोनों की नीली आंखें हैं, तो बहुत संभावना है कि आपके बच्चे की आंखें हमेशा के लिए नीली होंगी।
आंखों के रंग में मिलेनिन की क्या होती है भूमिका?
तीन से छह माह की उम्र तक आइरिस में पर्याप्त मात्रा में पिगमेंट जमा होना शुरू हो जाता है और बच्चे के पहले जन्मदिन तक आपको बच्चे की आंखों के रंग में बदलाव महसूस हो सकता है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर बच्चे की आखों के रंग में बदलाव कैसे होता है। हरी आंखें धीरे-धीरे हेजल में बदल जाती हैं, या हेजल रंग वाली आंखें भूरे रंग में बदल जाती हैं।
मेलेनिन एक प्रकार का पिगमेंट है, जो स्किन और हेयर को रंग देने के लिए जिम्मेदार होता है। जैसे कि तेज सूरज की रोशनी के कारण स्किन का रंग गहरा होता है। ठीक वैसे ही आईरिस भी आंखों के रंग के लिए काम करती है। जब बच्चे का जन्म होता है, तो ये आइरिस में मेलेनिन प्रोड्यूस होना शुरू हो जाता है, जो बच्चे के आंखों के रंग में बदलाव के लिए जिम्मेदार होता है। आंखों का रंग ब्लू, ग्रीन, ग्रे या फिर काला हो सकता है।
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अगर आंखों का रंग है ऐसा, तो हो सकता है बीमारी का संकेत!
बच्चे की आंखों का रंग जन्मजात बीमारियों (जिन बीमारियों के साथ आप पैदा हुए हैं) और अन्य हेल्थ कंडीशन को भी प्रकट कर सकता है। जिन शिशुओं की आंखें अलग-अलग रंग की होती हैं, उन्हें हेटरोक्रोमिया कहा जाता है, उनमें वार्डनबर्ग सिंड्रोम हो सकता है। यह एक जेनेटिक कंडीशन है, जो एक या दोनों कानों में सुनाई न देने का कारण बन सकता है। वार्डनबर्ग सिंड्रोम वाले लोग में पीली आंखों या एक आंख के साथ पैदा होने की संभावना होती है। कुछ लोगों में दो रंगों की आंखें भी हो सकती है। बहुत पीली नीली आंखें ओकुलर ऐल्बिनिजम (ocular albinism) के कारण हो सकती हैं। यह तब होता है जब आईरिस में पिगमेंट नहीं होता है। एक्स-लिंक्ड रिसेसिव डिसऑर्डर के रूप में, ऑक्यूलर ऐल्बिनिजम पुरुषों में ही होता है। महिलाओं में दो एक्स सेक्स क्रोमोसोम होते हैं, इसलिए वे कैरियर या फिर वाहक का काम करती हैं। आपको डॉक्टर से बेबी की आंखों का रंग के संबंध में अधिक जानकारी लेनी चाहिए।
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जन्म के बाद बच्चों की आंखों की देखभाल करना भी बहुत जरूरी होता है। ऐसा कुछ बच्चों में अक्सर देखने को मिलता है कि बच्चों की आंखों से लगातार पानी आता है या फिर डिस्चार्ज निकलता है। अगर आपके बच्चों को भी इस प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, तो डॉक्टर को तुरंत दिखाएं। आंखों में किसी प्रकार की समस्या होने पर लापरवाही करने पर बच्चों की आंखों की रोशनी के साथ समस्या पैदा हो सकती है। बेहतर होगा कि बिना देरी किए डॉक्टर को दिखाएं।
अगर आपके मन में यह प्रश्न आ रहा है कि बच्चों की आंखों के रंग से बच्चों की देखने की क्षमता पर कोई प्रभाव पड़ता है, तो यह बिल्कुल गलत है बच्चों की आंखें काली, भूरी, हल्की नीली या हल्की हरी हो सकती है लेकिन इससे बच्चों की देखने की क्षमता पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है। यह पूर्ण रूप से प्राकृतिक होता है और बच्चों की आंखों का रंग अनुवांशिकी (जेनेटिक) पर निर्भर करता है।
इस आर्टिकल में हमने आपको बेबी के आंखों का रंग (Baby Eye Color) के बारे में अहम जानकारी दी है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की ओर से दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको बेबी या पेरेंटिंग के संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हैलो हेल्थ की वेबसाइट में आपको अधिक जानकारी मिल जाएगी।
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