के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
केरेटोकोनस आंखों से संबंधित एक समस्या है। आंखों का सबसे सामने वाला पारदर्शी भाग, जिसे कॉर्निया कहा जाता है, वह पतला हो जाता है और बाहर की तरफ कोन के आकार में उभर जाता है। जिससे आंखों से धुंधला दिखाई देने लगता है। केरेटोकोनस होने पर आंखे रोशनी और चमक के लिए बेहद सेंसटिव हो जाती है। केरेटोकोनस 10 से 25 साल के उम्र के लोगों में पाया जाता है। केरेटोकोनस के शुरुआती स्टेज में आंखों से साफ दिखाई देने के लिए चश्मे या मुलायम लेंस लगाए जाते हैं। बाद में ठीक ने होने पर लेंस को आंखों में फिट कर दिए जाते हैं। अगर स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो जाती है तो कॉर्निया ट्रांसप्लांट किया जाता है।
केरेटोकोनस होना बहुत सामान्य है। ज्यादा जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।
और पढ़ें : Color blindness: कलर ब्लाइंडनेस क्या है?
केरेटोकोनस के लक्षण निम्न प्रकार से हैं :
और पढ़ें : आंखों में खुजली/जलन (Eye Irritation) कम करने के घरेलू उपाय
ऊपर बताए गए लक्षणों के सामने आने पर आपको नेत्र रोग विशेषज्ञ (ophthalmologist) से मिलना चाहिए। जांच में डॉक्टर आपकी आंखों का परिक्षण करने के बाद केरेटोकोनस की पुष्टि करते हैं। इसके बाद जरूरत पड़ने पर लेजर-असिस्टेड इन सीटू केरैटोमाइल्यूसिस (LASIK) सर्जरी की जाती है।
[mc4wp_form id=”183492″]
और पढ़ें : Bulging Eyes : कुछ लोगों की आंखें उभरी हुई क्यों होती है?
आंखों में प्रोटीन के छोटे फाइबर्स होते हैं जिसे कोलेजन कहते हैं। ये कोलेजन आंखों के ऊपर के कॉर्निया को पकड़ के रखता है। जब कोलेजन कमजोर पड़ने लगते हैं तो कोलेजन कोन के आकार में विकृत हो कर उभरने लगते हैं। तब जा कर केरेटोकोनस होता है। कॉर्निया में प्रोटेक्टिव एंटीऑक्सीडेंट के घटने के कारण भी केरेटोकोनस होता है। जिसमें कॉर्निया सेल्स डैमेज होने लगती है।
और पढ़ें : स्मार्टफोन ऐप से पता चलेंगे बच्चों की आंख में कैंसर के लक्षण
केरेटोकोनस परिवार में फैलने वाली समस्या है। अगर आपको केरेटोकोनस है तो आप अपने बच्चे का 10 साल की उम्र से ही आंखों का रूटीन चेकअप कराते रहें। जिससे बच्चे पर केरेटोकोनस के असर को कम किया जा सकता है। आंखों की परेशानी टीनएज से शुरू होती है और 30 साल तक की उम्र तक हो सकती है। कुछ मामलों में 40 से ज्यादा उम्र के लोगों को भी केरेटोकोनस हो सकता है। कॉर्निया में होने वाले बदलाव कभी भी बंद हो सकते हैं। वहीं, केरेटोकोनस से पहले एक आंख प्रभावित होती है और फिर दूसरी आंख पर असर पड़ता है।
और पढ़ें : डब्लूएचओ : एक बिलियन लोग हैं आंखों की समस्या से पीड़ित
केरेटोकोनस में रिस्क फैक्टर निम्न हैं :
और पढ़ें : De Quervain Surgery : डीक्वेवेंस सर्जरी क्या है?
यहां प्रदान की गई जानकारी को किसी भी मेडिकल सलाह के रूप ना समझें। अधिक जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
केरेटोकोनस का पता लगाने के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ पारिवारिक इतिहास के साथ आपका मेडिकल इतिहास भी देखते हैं। साथ ही आपकी आंखों की जांच भी करते हैं। आंखों के लिए निम्न टेस्ट करते हैं :
यह भी पढ़ें : Picrorhiza: कुटकी क्या है?
केरेटोकोनस का इलाज मरीज के स्थिति पर निर्भर करता है। केरेटोकोनस के शुरुआत में चश्मा या लेंस लगा कर इलाज किया जाता है। लेकिन, जिन लोगों को चश्मा लगाना नहीं पसंद है वे लोग सर्जरी कराते हैं।
लेंस या चश्मा न लगाने की स्थिति में आंखों की सर्जरी की जाती है :
केरेटोकोनस के मरीज के आंखों में अल्ट्रावायलेट ए (UVA) प्रकाश डाला जाता है। जिससे कॉर्निया के टिश्यू मजबूती से पकड़ बना कर रखते हैं। फिलहाल अभी यह ट्रीटमेंट यूनाइटेड स्टेट में टेस्टिंग फेज में है। इसलिए ये ट्रीटमेंट ज्यादा प्रचलित नहीं है।
इस संबंध में आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें। क्योंकि आपके स्वास्थ्य की स्थिति देख कर ही डॉक्टर आपको उपचार बता सकते हैं।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।
हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।