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इंडियन फ्रंकिंसन्स (Indian frankincense) भारत के अलावा अफ्रीका और अरबिया में पाया जाता है। आयुर्वेद में इसका काफी इस्तेमाल होता है। दशकों से Indian frankincense या शल्लकी का प्रयोग प्राकृतिक दवाओं के रूप में होता आया है। शल्लकी जोड़ो में सूजन पैदा करने वाले तत्व पर अंकुश करने का काम करता है, जिस वजह से ये काफी कारगर होता है।
भारत के प्राचीन जड़ी बूटियों में से एक शल्लकी, जो बोस्वेलिए (Boswellia) के नाम से भी जाना जाता है, ऑस्टिओआर्थरिटिस (osteoarthritis) के लिए मुख्य रूप से इस्तेमाल होता है।
इसमें पाया जाने वाला एंटी-इंफ्लेमेटरी (anti-inflammatory) तत्व होता है, जो की इंफ्लेमेटरी(inflammatory) स्थिति को ठीक करने में मदद करती है जैसे की रहूमटॉइड आर्थराइटिस(rheumatoid arthritis) , इंफ्लेमेटरी बॉउल डिजीज(inflammatory bowel disease), और अस्थमा (asthma) जैसी बीमारियों को ठीक करता है।
इसके द्वारा इलाज किए जाने से यह सूजन कम करता है। बोस्वेलिए की खासियत यह भी है कि यह क्रॉनिक इंफ्लेमेटरी कंडीशन को भी ठीक करने में मदद करता है। बोस्वेलिए पर कई साइंटिफिक शोध किए जा चुके हैं, लेकिन ज्यादातर शोध जानवरों पर किए हैं। वहीं इंसानों पर इसको लेकर कम शोध ही हुए हैं, वर्तमान में कई क्लीनिकल ट्रायल किए जा रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि यदि इंसान बोस्वेलिए का इस्तेमाल करने जा रहे हैं तो उसके पहले डॉक्टरी सलाह लें। तो आइए इस आर्टिकल में हम बोस्वेलिए से जुड़े कई अहम तथ्यों को जानने की कोशिश करते हैं।
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ये सदियों से आयुर्वेद और नैचुरोथेरपी में इस्तेमाल होता है, अब इसका इस्तेमाल दवाइयां बनाने में भी होता है। इसके अलावा भी इसके काफी उपयोग हैं।
कुछ शोधो में ये बात साबित हुई हैं की इंडियन फ्रंकिंसन्स, ऑस्टिओआर्थरिटिस के दर्द को 65% तक काम करने की क्षमता रखता हैं। ये भी पता चला हैं की इंडियन फ्रंकिंसन्स को अगर दूसरे हर्बल जड़ी बूटियों के साथ मिला कर इस्तेमाल किया जाये तो भी ये काफी कारगर होता हैं ऑस्टिओआर्थरिटिस के दर्द को कम करने में।
रेडिएशन(radiation) थेरेपी के द्वारा त्वचा को पहुंची क्षति को ठीक करने में
इंडियन फ्रंकिंसन्स की जलन तथा सूजन को कम करने वाले गुण के कारण, ये बात साबित हुई हैं की कोई भी प्रकार की क्रीम जिसमे इंडियन फ्रंकिंसन्स की मात्रा 2% तक होती हैं; रेडिएशन थेरेपी से त्वचा पर होने वाले नुकसान को ठीक करने की क्षमता रखता हैं।
इंफ्लेमेटरी बॉउल डिजीज (inflammatory bowel disease)
इसमें अल्सर वाले कोलाइटिस(colitis) को भी ठीक किया हैं। कई मामलों में इंडियन फ्रंकिंसन्स कोलाइटिस को ठीक करने में दवाओं की तरह असरदार हैं और 70% से 82% तक लोगों का इलाज किया हैं।
रिसर्च के हिसाब से हर रोज़ इंडियन फ्रंकिंसन्स युक्त क्रीम का इस्तेमाल करने से उम्र की महीन रेखाएं, रूखी त्वचा पर अच्छा असर होता हैं। साथ ही ये सूरज की किरणों से भी त्वचा की रक्षा करता हैं।
अस्थमा
कुछ रीसर्च में इस बात का पता चला की इंडियन फ्रंकिंसन्स, स्वास लेने में मदद करता हैं और अचानक होने वाले दौरों को रोकने में कारगर हैं। इसके अलावा ये अस्थमा के लक्षणों में धीमा करता हैं।
ब्रेन ट्यूमर
ये सूजन कम करने की क्षमता ब्रेन ट्यूमर पर भी असर डालता हैं, और दिमाग में आयी सूजन को कम करता हैं। पर ये बात साफ़ नहीं हैं की इंडियन फ्रंकिंसन्स, बच्चो में भी इसी प्रकार से काम करते हुए दिमागी सूजन को कम करता हैं या नहीं। साथ ही ये स्टेरॉयड(steroid) दवाइयों के असर को कम नहीं करता जो की सूजन को कम करने के लिए ही इस्तेमाल की जाती हैं।
क्लस्टर हेडएक
कुछ स्टडी में ये पता चला हैं की इंडियन फ्रंकिंसन्स में क्लस्टर हेडएक को कम करने और काबू में करने की क्षमता होती हैं।
क्रोहन डिजीज
ये एक तरह का इंफ्लेमेटरी बॉउल डिजीज (inflammatory bowel disease) हैं। कुछ रिसर्च का मानना हैं की इंडियन फ्रंकिंसन्स इसके लक्षणों पर असरदार हैं, पर कुछ रिसर्च इस से सहमत नहीं हैं।
इंडियन फ्रंकिंसन्स का इस्तेमाल: मधुमेह (Diabetes)
रिसर्च के हिसाब से हर रोज़ इंडियन फ्रंकिंसन्स को खाने के बाद लेने से टाइप 2 डायबिटीज में ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल, दोनों ही अच्छा होता हैं।
इर्रिटेबल बॉउल सिंड्रोम
इसके नियमित इस्तेमाल पेट में होने वाले असहनीय दर्द को कम कर के अतिरिक्त दवाओं से छुटकारा दिलाता हैं।
माइक्रोस्कोपिक कोलाइटिस (microscopic colitis)
इसका इस्तेमाल 6 हफ्तों तक नियमित रूप से करने से, माइक्रोस्कोपिक कोलाइटिस (microscopic colitis) और कलाजेनॉस कोलाइटिस (collagenous colitis) के ख़तम होने की सम्भावना काफी ज्यादा होती है।
रहूमटॉइड आर्थराइटिस (Rheumatoid arthritis)
इसके के इस्तेमाल का असर रहूमटॉइड आर्थराइटिस पर बहुत ज्यादा संतोषकारक नहीं रहा है। पर फिर भी लोगो का मानना है की ये कारगर है।
इसके अलावा की काफी साडी तकलीफो में इसका इस्तेमाल काफी लाभकारी माना जाता है। जैसे की
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इसमें ज्यादातर व्यस्कों के लिए सुरक्षित माना गया है।इसको 1000mg 6 महीने तक रोज़ाना लिया जा सकता है, और इसके कोई नुक्सान भी नहीं हैं। यु तो इसका कोई खास दुष्परिणाम नहीं हैं पर कुछ लोगो में पेट दर्द, जी मिचलाना, दस्त, सीने में जलन, खुजली, सरदर्द, सूजन, तथा थकन जैसे लक्षण देखे गए हैं।
किसी भी प्रकार का क्रीम जिसमे ये होता है, उसे बिना किसी डर के 5 हफ्तों तक त्वचा पर लगाया जा सकता है। हालांकि जिन लोगो में किसी भी प्रकार की एलर्जी पायी गयी है, उन्हें डॉक्टर के सलाह के बिना इंडियन फ्रंकिंसन्स के प्रोडक्ट इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
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इसमे थोड़ी मात्रा में खाने में इस्तेमाल होता आया है, पर इसके अधिक मात्रा में इस्तेमाल करने पर इसके असर के बारे में तथ्य उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गर्भावस्था एवं स्तनपान के दौरान ज्यादा मात्रा में इंडियन फ्रंकिंसन्स नहीं लेना चाहिए।
ये इम्यून सिस्टम को ज्यादा अच्छा बना देता हैं, जिसकी वजह से ऑटो इम्यून डिजीज के लक्षणों को और ख़राब कर सकता हैं। इसलिए ऐसी अवस्था में ये नहीं लेना चाहिए।
इस बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं हैं।
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इंडियन फ्रंकिंसन्स को लेने का डोज़ इस प्रकार हैं।
इंडियन फ्रंकिंसन्स का 100-1000mg का अर्क या फिर 300-600mg इंडियन फ्रंकिंसन्स जो की दूसरे किसी हर्बल जड़ी बूटी के साथ मिलाया गया हो। ऐसे मिश्रण को नियमित रूप से लिया जा सकता हैं।
300-400mg इंडियन फ्रंकिंसन्स अर्क दिन में 3 बार लिया जा सकता हैं।
350-400mg दिन में तीन बार लिया जा सकता हैं।
किसी भी प्रकार का डोज़ लेने से पहले ये जरुरी हैं की आप डॉक्टर की सलाह जरूर ले।
पारंपरिक इलाज करने वाले कई एक्सपर्ट आज भी इस औषधी का इस्तेमाल विभिन्न बीमारियों का उपचार करने के लिए करते हैं। वहीं सदियों से कई क्रॉनिक इन्फ्लमेटरी डिसऑर्डर का इलाज करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। बोस्वेलिए (इंडियन फ्रंकिंसन्स) में कुछ एक्टिव इंग्रीडिएंट्स पाए जाते हैं, जैसे बोसविलिक एसिड (boswellic acid)। यह काफी अच्छा एंटी-इंफ्लमेटरी तत्व है। इसका इस्तेमाल विभिन्न बीमारियों के उपचार में किया जाता है, उनमें रयूमेटायड अर्थराइटिस, इनफ्लमेटरी बावेल डिजीज, अस्थमा की समस्या, पार्किंसन डिजीज व अन्य शामिल हैं।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। ज्यादा जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।
बोस्वेलिए के कई फायदे हैं, यही कारण है कि पौराणिक समय में औषधि के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता था। शोध से यह भी पता चला है कि बोस्वेलिए में कई प्रकार के औषधीय गुण होते हैं, वहीं यह एंटी-इंफ्लमेटरी गुणों के लिए जाना जाता है। शरीर में होने वाले कई प्रकार के इनफ्लमेटरी डिसऑर्डर से निजात दिलाने में इसका इस्तेमाल औषधी के तौर पर किया जा सकता है। शोध यह भी बताते हैं कि शुरुआती दिनों में बोस्वेलिए का इस्तेमाल काफी कारगर है। लेकिन अभी भी कई क्लीनिकल ट्रायल होने बाकी है। इसलिए जरूरी है कि इसका इस्तेमाल करने के पूर्व हमेशा एक्सपर्ट की सलाह लेनी चाहिए। ताकि किसी प्रकार की बीमारी – समस्या न हो।
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Indian Frankincense use in Arthritis https://www.versusarthritis.org/about-arthritis/complementary-and-alternative-treatments/types-of-complementary-treatments/indian-frankincense/ Accessed on 7th April, 2020
Indian Frankincense herbal uses https://www.koop-phyto.org/en/medicinal-plants/indian-frankincense.php Accessed on April, 2020
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Frankincense essential oil suppresses melanoma cancer through down regulation of Bcl-2/Bax cascade signaling and ameliorates heptotoxicity via phase I and II drug metabolizing enzyme/https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC6544398/ / Accessed on 10 sept 2020
Supplement and Herb Guide for Arthritis Symptoms/https://www.arthritis.org/health-wellness/treatment/complementary-therapies/supplements-and-vitamins/supplement-and-herb-guide-for-arthritis-symptoms / Accessed on 10 sept 2020
Pharmacological evidences for cytotoxic and antitumor properties of Boswellic acids from Boswellia serrata/https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/27346540/ / Accessed on 10 sept 2020
Effect of Boswellia Serrata Extract on Acute Inflammatory Parameters and Tumor Necrosis Factor-α in Complete Freund’s Adjuvant-Induced Animal Model of Rheumatoid Arthritis/https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC6477955/ / Accessed on 10 sept 2020