अच्छी हेल्थ की शुरुआत गट से होती है। हेल्दी माइक्रोबायोम (Microbiome) में डायजेस्टिव ट्रैक्ट में रहने वाले कई सूक्ष्मजीव (Microorganisms) होते हैं जो कि अनगिनत शारीरिक प्रक्रियाओं (Physiological processes) को रेगुलेट करते हैं। ये हेल्थ के लगभग हर पहलू को प्रभावित करते हैं, जिसमें इम्यून फंक्शन (Immune function), ब्रेन फंक्शन (Brain function) और फैट स्टोरेज (Fat storage) शामिल है। बैक्टीरिया का यह बैलेंस काफी नाजुक होता है, इसलिए पाचन तंत्र आसानी से खराब हो जाता है। डायजेस्टिव डिस्ट्रेस की वजह से ओवरऑल हेल्थ पर असर पड़ता है। इसके सबसे सामान्य कारणों में से एक छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ (Small intestinal fungal overgrowth) है। छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ (SIFO) क्या है, इसके लक्षण, रिस्क फैक्टर्स, कारण और इसके ट्रीटमेंट के बारे में ही इस आर्टिकल में बताया गया है।
छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ (Small Intestinal Fungal Overgrowth) होना क्या है?
एसआईएफओ (SIFO) एक ऐसी स्थिति है जिसमें छोटी आंत में हाय लेवल के फंगी पाए जाते हैं। यह ओवरग्रोथ अक्सर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) के सिम्पटम्स डेवलप कर सकती है। जबकि जीआई फंगल ओवरग्रोथ अक्सर कमजोर इम्यून सिस्टम वाले व्यक्तियों में डेवलप होता है। यह हेल्दी इम्यून सिस्टम वाले लोगों में भी हो सकती है।एनसीबीआई में छपी स्टडीज में पाया गया कि अनएक्सप्लेंड जीआई लक्षणों वाले लगभग 25 प्रतिशत लोगों में एसआईएफओ था।
इनमें से एक स्टडी में, 97 प्रतिशत से अधिक फंगी कैंडिडा प्रजाति (Candida species) के पाए गए। कैंडिडा आमतौर पर मुंह में, स्किन पर और आंतों में कम मात्रा में पाया जाता है। निचले स्तर पर, यह किसी भी समस्या का कारण नहीं बनता है, लेकिन अगर इसे बैलेंस में नहीं रखा जाता है और अनियंत्रित रूप से बढ़ता है, तो यह कई प्रकार के सामान्य इंफेक्शन्स का कारण बन सकता है, जैसे कि वजायनल यीस्ट इंफेक्शन (Vaginal yeast infection) और ओरल थ्रश (Oral thrush)। और अगर आंतों में अतिवृद्धि है तो यह गट हेल्थ को भी खराब कर सकता है।
छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ (Small intestinal fungal overgrowth) के लक्षण क्या हैं?
एसआईएफओ के लक्षण अन्य स्थितियों के समान हैं जो क्रोनिक या रेकरिंग जीआई सिम्पटम्स का कारण बनते हैं। सबसे आम लक्षणों में से कुछ में शामिल हैं:
- पेट फूलना या फुलनेस का एहसास
- गैस
- डकार आना
- पेट में दर्द
- डायरिया
- जी मिचलाना
एसआईएफओ अधिक गंभीर लक्षण भी पैदा कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक केस स्टडी में पाया गया कि एसआईएफओ कुपोषण (malnutrition) और वेट लॉस से जुड़ा था।
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छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ के रिस्क फैक्टर्स क्या हो सकते हैं? (Small intestinal fungal overgrowth risk factors)
फंगी ओवरग्रोथ विशेष रूप से कैंडिडा प्रजाति, अक्सर व्यक्तियों के स्पेसिफिक ग्रुप्स में ज्यादा पाई जाती है, जैसे:
- ओल्डर एडल्ट्स
- छोटे बच्चे
- कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोग
हालांकि, हेल्दी इम्यून सिस्टम वाले लोग भी एसआईएफओ डेवलप कर सकते हैं। यह कैसे या क्यों होता है, इसे समझना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन कुछ पॉसिबल रिस्क फैक्टर्स की पहचान की गई है:
- आंतों की शिथिलता (Intestinal dysmotility): यह तब होता है जब आंतों की स्मूथ मसल्स के कॉन्ट्रैक्शंस बाधित होते हैं। यह जेनेटिक या डायबिटीज, ल्यूपस (Lupus), या स्क्लेरोडर्मा (Scleroderma) जैसी अन्य हेल्थ कंडीशंस के कारण हो सकता है।
- प्रोटॉन पंप इन्हिबिटर्स (पीपीआई): ये दवाएं आपके पेट में एसिड के लेवल को कम करने का काम करती हैं। पीपीआई अक्सर गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (जीईआरडी) के लक्षणों से राहत के लिए दी जाती है।
क्या छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ (Small intestinal fungal overgrowth) अन्य हेल्थ प्रॉब्लम्स को जन्म दे सकता है?
आंत के स्वास्थ्य पर आंत में फंगल ओवरग्रोथ के संभावित प्रभाव अभी भी स्पष्ट नहीं हैं। यह निर्धारित करने के लिए और रिसर्च की जरुरत है। 2011 के शोध के अनुसार, कैंडिडा प्रजातियों के साथ जीआई ट्रैक्ट का कॉलोनिजेशन निम्नलिखित हेल्थ इश्यूज से जुड़ा हुआ है:
- गैस्ट्रिक अल्सर
- क्रोहन डिजीज (Crohn’s disease)
- अल्सरेटिव कोलाइटिस (ulcerative colitis)
यह इर्रिटेबल बोएल सिंड्रोम (आईबीएस) का भी कारण बन सकता है। हालाँकि, इस बारे में और रिसर्च की आवश्यकता है।
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छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ को डायग्नोस कैसे किया जाता है?
छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ को डायग्नोस छोटी आंत से तरल पदार्थ का एक सैंपल को लेकर किया जाता है। सैंपल कलेक्ट करने के लिए, एक इंस्ट्रूमेंट जिसे एंडोस्कोप (Endoscope) कहा जाता है, एसोफैगस (Esophagus) और स्टमक के माध्यम से स्मॉल इंटेस्टाइन में पास किया जाता है। फिर सैंपल फ्लूइड को लैब में भेजा जाता है।
एसआईएफओ का इलाज कैसे किया जाता है? (SIFO treatment)
इसके इलाज के लिए एंटीफंगल ड्रग्स का एक कोर्स दिया जा सकता है। हालांकि, एंटीफंगल दवाएं लक्षणों को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकती हैं। एक छोटे से अध्ययन में पाया गया कि जिन व्यक्तियों को एसआईएफओ के लिए एंटीफंगल दवाएं निर्धारित की गई थीं, उनमें सीमित सुधार हुआ था।
अगर छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ है तो क्या खाना चाहिए?
डायट कैसे छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ को प्रभावित कर सकती है, इसकी रिसर्च बहुत लिमिटेड है। फंगी और डायट से संबंधित में कई स्टडीज विशेष रूप से छोटी आंत पर फोकस नहीं करती हैं। कैंडिडा डायट कैंडिडा ओवरग्रोथ में मदद कर सकती है, जो कि एसआईएफओ वाले लोगों की छोटी आंत में अक्सर पाए जाने वाले फंगी का एक प्रकार है। इसलिए ऐसे खाने से बचें जिसमें:
- ग्लूटेन होता है, जैसे गेहूं, राई, जौ
- हाय शुगर वाले फल, जैसे केला, आम और अंगूर
- चीनी, शुगर ऑप्शंस, और शुगर युक्त पेय पदार्थ
- कुछ डेयरी प्रोडक्ट्स, जैसे पनीर, दूध और क्रीम
- रिफाइंड तेल, जैसे कैनोला तेल, सोयाबीन तेल
- डेली मीट
- कैफीन और एल्कोहॉल
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कुछ और सामान्य अध्ययन हैं जो डायट और जीआई फंगी पर किए गए हैं
- 2017 की एक स्टडी के अनुसार, यदि आप वेजिटेरियन हैं या यदि आप ज्यादा कन्वेंशनल डायट का सेवन करते हैं, तो आपके जीआई ट्रैक्ट को कोलोनाइज करने वाले फंगी के प्रकार अलग हो सकते हैं।
- 2013 में हुई एक रिसर्च में पाया गया कि कैंडिडा कोलोनाइजेशन उन व्यक्तियों में ज्यादा था, जो बहुत ज्यादा कार्बोहाइड्रेट का सेवन करते थे, और उन व्यक्तियों में कम संभावना थी जिनके आहार में अमीनो एसिड, प्रोटीन और फैटी एसिड अधिक थे।
- 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, कैंडिडा के लिए नेगेटिव जीआई सैंपल्स वाले व्यक्तियों ने लेस रिफाइंड गेहूं के आटे के प्रोडक्ट्स (जैसे वाइट ब्रेड और वाइट पास्ता) और अधिक हेल्दी गेहूं के आटे के ऑप्शन, येलो चीज और क्वार्क का सेवन किया।
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ये ना भूलें
छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ एक ऐसी स्थिति है जो तब होती है जब आपकी छोटी आंत में अधिक मात्रा में फंगस मौजूद होता है। यह कई जीआई लक्षण पैदा कर सकता है, जैसे कि सूजन, पेट दर्द और डायरिया। छोटी आंत में फंगल ओवरग्रोथ के कई पहलू, जैसे कि इसका क्या कारण है और आपके पेट के स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, अभी भी कम समझ में आता है। इन क्षेत्रों में रिसर्च अभी भी जारी है। हालांकि एसआईएफओ का इलाज एंटीफंगल दवाओं से किया जा सकता है, लेकिन जीआई के लक्षणों को पूरी तरह से कम नहीं किया जा सकता है।
यदि आपके पास कोई भी जीआई सिम्प्टम्स हैं जो बार-बार सामने आ रहे या क्रोनिक हैं, तो डायग्नोसिस के लिए अपने डॉक्टर से मिलना सुनिश्चित करें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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