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बेटी को हाथों में लेकर खुद को मजबूत महसूस कर रही थी
34 साल की केरला की रहने वाली मैरी टीचर हैं, उन्होंने अपना अनुभव शेयर करते हुए कहा, “मरी कॉप्लिकेटेड प्रेग्नेंसी थी। बावजूद इसके मैंने अपने बच्चे को नैचुरल बर्थ दिया, जो बहुत खूबसूरत अनुभव रहा। पहली प्रेग्नेंसी के दूसरे चरण में अपने बच्चे को खोने के बाद दूसरी प्रेग्नेंसी के दौरान मैं बहुत तनावग्रस्त रहती थी। एक दिन डिनर के लिए बाहर जाते समय ही मुझे महसूस हुआ कि जैसे वॉटर ब्रेक हो चुका है। हमने पहले ही नैचुरल बर्थ से जुड़ी क्लास अटेंड की थी और इसे अपनाने का सोचा था, इसके लिए एक रूम तैयार करने के साथ ही दाई भी रखी थी। लेबर पेन के दौरान दाई और मेरे पति मेरे सिर और पीठ पर लगातार लैवेंडर की खुशबू वाला तौलिया रख रहे थे। हॉट बाथ टब में 10 घंटे दर्द झेलने के बाद मेरी बेटी मेरे हाथों में थी। दर्द असहनीय होता है, लेकिन जैसे ही बेटी को हाथों में लिया मैं खुद को बहुत ताकतवर समझने लगी। मुझे इस बात का कोई अफसोस नहीं है कि मैंने नैचुरल बर्थ को चुना, क्योंकि मेरे हिसाब से नॉर्मल डिलिवरी के जोखिम नहीं है।
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