यदि आपको एंटी डी इंजेक्शन के बारे में समझना है तो सबसे पहले आपको इससे जुड़ी हुई कुछ चीजें के बारे में समझना पड़ेगा। किस स्थिति में एंटी डी इंजेक्शन दिया जाता है? बॉडी में जाकर यह क्या काम करता है और किस बीमारी से लड़ता है? आज हम आपको इस आर्टिकल में एंटी डी इंजेक्शन के बारे में सिलसिले वार तरीके से बताने जा रहे हैं।
एंटी डी इंजेक्शन के बारे में जानने से पहले आपको रीसस बीमारी की पृष्ठभूमि को समझना होगा। किस स्थिति में यह बीमारी होती है। इसके बाद ही आप एंटी डी इंजेक्शन को बारीकी से समझ पाएंगे।
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क्या होता है Rhd एंटीजीन पॉजिटिव और नेगेटिव?
मनुष्य का ब्लड कई प्रकार का होता है। आम बोलचाल की भाषा में हम इसे ब्लड ग्रुप के नाम से भी जानते हैं। यह ब्लड ग्रुप A, B, AB और O चार प्रकार के होते हैं। इनमें से हर ब्लड ग्रुप RhD पॉजिटिव और नेगेटिव हो सकता है। आप RhD पॉजिटिव या नेगेटिव हैं, इसका पता ब्लड में रीसस डी (RhD) एंटीजीन से लगाया जाता है। यह एक मॉल्युक्यूल होता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर पाया जाता है।
जिन लोगों के ब्लड में RhD एंटीजीन होता है, वो RhD पॉजिटिव होते हैं। जिनके ब्लड में इसकी उपस्थिति नहीं होती है वो नेगेटिव होते हैं। युनाइटेड किंग्डम में करीब 85 प्रतिशत आबादी RhD पॉजिटिव है।
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आप कैसे होते हैं RhD पॉजिटिव और नेगेटिव?
आपका ब्लड टाइप क्या है? यह आपको माता पिता से विरासत में मिले जीन पर निर्भर करता है। माता पिता से मिली RhD एंटीजीन की कॉपीज पर यह निर्भर करता है कि आप पॉजिटिव हैं या नेगेटिव। माता या पिता से आपको RhD एंटीजीन की एक कॉपी मिल सकती है।
कुछ मामलों में हो सकता है कि आपको माता पिता से एक-एक कॉपी या एक भी कॉपी न मिले। माता पिता से RhD एंटीजीन की एक भी कॉपी न मिलने की सूरत में आप नेगेटिव होंगे। यदि पिता के जीन में इसकी सिर्फ एक ही कॉपी है और मां का ब्लड RhD एंटीजीन नेगेटिव है तो 50 प्रतिशत संभावना रहती है कि बच्चा RhD पॉजिटिव होगा।
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आर एच इंकम्पेटिब्लिटी या रीसस बीमारी क्या होती है?
आमतौर पर प्रेग्नेंसी के दौरान महिला को रीसस नामक बीमारी हो जाती है। यह बीमारी उस स्थिति में होती है जब मां और भ्रूण दोनों का ब्लड एक विशेष स्थिति में एक साथ आकर मिल जाता है। इसमें मां का ब्लड RhD एंटीजीन नेगेटिव होता है और पिता का पॉजिटिव। इससे प्रेग्नेंट महिला की बॉडी में एक विशेष प्रकार के एंटी बॉडी बनने लगते हैं। यह एंटी बॉडी प्लेसेंटा के जरिए भ्रूण में प्रवेश करके उसे नष्ट कर देते हैं। इस स्थिति को रीसस कहा जाता है।
आर एच इंकम्पेटिब्लिटी या रीसस के लक्षण
इसके लक्षण गर्भाशय में मौजूद भ्रूण के लिए कम गंभीर और जानलेवा तक हो सकते हैं। जब एंटी बॉडी शिशु की लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला करती हैं तब उसे हेमोलाइटिक बीमारी होती है।
इस बीमारी में शिशु की लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट हो जाने की स्थिति में शिशु की ब्लड स्ट्रीम में बिलिरुबिन (bilirubin) बनना शुरू हो जाता है। बिलिरुबिन एक कैमिकल है, जो लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने से बनता है। बिलिरुबिन की अधिकता यह संकेत देती है कि शिशु का लिवर पुरानी रक्त कोशिकाओं को ही प्रोसेस करने पर समस्या में है।
यदि जन्म लेने के बाद शिशु की बॉडी में बिलिरुबिन का लेवल ज्यादा है तो उसकी त्वचा पीली और आंखें सफेद पड़ सकती हैं। इस स्थिति को पीलिया कहते हैं । इसके अलावा बच्चे में सुस्ती, मसल टोन कम होना भी इसका एक लक्षण हो सकता है। हालांकि, इसका समुचित इलाज करने पर यह ठीक हो सकती है।
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किन मामलों में होती है रीसस बीमारी?
महिला का ब्लड ग्रुप RhD नेगेटिव होने और पुरुष का ब्लड ग्रुप RhD पॉजिटिव होने की स्थिति में यह बीमारी होने का खतरा रहता है। प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भाशय में मौजूद भ्रूण यदि RhD पॉजिटिव है तो इस स्थिति में महिला की बॉडी एक विशेष प्रकार की एंटी बॉडी का निर्माण करती हैं।
भ्रूण के RhD पॉजिटिव होने की सूरत में महिला की बॉडी भ्रूण को एक बाहरी चीज समझ लेती है। बॉडी भ्रूण को बाहरी समझकर उसे स्वीकारती नहीं है। इससे लड़ने के लिए महिला की बॉडी इन विशेष एंटी बॉडी का निर्माण करती है।
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रीसस भ्रूण के लिए कब घातक हो सकती है?
डॉक्टरों की मानें तो पहली प्रेग्नेंसी में यदि पुरुष पॉजिटिव है और महिला नेगेटिव है तो यह स्थिति इतनी जल्दी सामने नहीं आती। महिला की बॉडी को भ्रूण को बाहरी समझने में समय लगता है। ऐसी स्थिति में भ्रूण को नुकसान पहुंचाने वाली एंटी बॉडी का निर्माण देरी से होता है।
लेकिन, यदि महिला की दूसरी या तीसरी प्रेग्नेंसी है तो इस सूरत गर्भवती महिला की बॉडी ने पहले ही पहली एंटी बॉडी को तैयार कर लिया होता है। जो प्लेसेंटा या गर्भनाल के जरिए भ्रूण में प्रवेश करके उसे नष्ट करना शुरू कर देती हैं। यह एंटी बॉडी भ्रूण के ब्लड में हीमोग्लोबिन के स्तर को कम करना शुरू कर देती हैं, जो उसके लिए जानलेवा हो साबित हो सकता है।
इन स्थितियों में खतरा हो सकता है
- पहली डिलिवरी के दौरान शिशु के ब्लड की कुछ मात्रा महिला के ब्लड में मिल जाना।
- डिलिवरी के दौरान ब्लीडिंग होने से भी यह स्थिति पैदा हो सकती है।
- यदि मां के पेट पर चोट लगी हो।
- पिछली प्रेग्नेंसी में गर्भपात या एक्टोपिक प्रेग्नेंसी होने पर।
- यदि RhD नेगेटिव महिला का ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया गया हो, जो गलती से RhD पॉजिटिव हो। हालांकि, यह काफी दुर्लभ मामलों मे होता है।
डिलिवरी के बाद आर एच इंकम्पेटिब्लिटी या रीसस का उपचार
- यदि जन्म के बाद बच्चे में रीसस के लक्षण नजर आते हैं तो उसका ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया जाता है।
- शिशु की बॉडी को हाइड्रेट रखा जाता है।
- मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने वाले इलेक्ट्रोलाइज दिए जाते हैं।
- फोटेथेरेपी में शिशु को फ्लूरोसेंट की रोशनी के पास रखा जाता है, जिससे बल्ड में बिलिरुबिन को कम करने में मदद मिलती है।
बच्चे की स्थिति की गंभीरता को देखते हुए इन सभी उपचारों को दोहराया जाता है। यह तब तक किया जाता है जब तक शिशु की बॉडी में से बिलिरुबिन और आर एच नेगेटिव एंटीबॉडीज का स्तर कम नहीं हो जाता।
हालांकि, प्रेग्नेंसी में डॉक्टर यह तय करेगा कि बॉडी ने शिशु के खिलाफ पहले ही एंटी बॉडी बना लिए हैं। यदि ऐसा होता है तो आपकी प्रेग्नेंसी को डॉक्टर की निगरानी में रखा जाएगा।
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रीसस में एंटी डी इंजेक्शन का कार्य
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इसे रोका कैसे जाए। यदि किसी महिला में इस प्रकार की स्थिति पैदा होती है तो उसे एंटी डी इम्युनोग्लोब्युलिन इंजेक्शन दिया जाता है। यह इंजेक्शन RhD पॉजिटिव एंटी बॉडी को बेअसर कर देता है, जो प्रेग्नेंसी के दौरान महिला के ब्लड में प्रवेश कर जाती हैं। यदि इन एंटी बॉडी को एंटी डी इंजेक्शन के जरिए प्रभावहीन कर दिया जाए तो महिला का ब्लड इनसे लड़ने के लिए विशेष एंटी बॉडीज का निर्माण नहीं करता है। आप रीसस के बारे में डॉक्टर से जानकारी जरूर प्राप्त करें।
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एंटी डी इंजेक्शन कब दिया जाता है?
यदि किसी गर्भवती महिला के ब्लड में शिशु के जरिए RhD एंटीजीन के संपर्क में आने का खतरा रहता है तो उसे एंटी डी इम्युनोग्लोब्युलिन इंजेक्शन दिया जाता है। हालांकि, यदि आपका ब्लड RhD नेगेटिव है तो तीसरे ट्राइमेस्टर के दौरान नियमित तौर पर आपको एंटी डी इम्युनोग्लोब्युलिन इंजेक्शन दिया जाएगा।
तीसरे ट्राइमेस्टर के दौरान भ्रूण के ब्लड का कुछ हिस्से का बॉडी में प्रवेश करने का खतरा रहता है। इससे बचने के लिए नियमित रूप से एंटीनेटल एंटी डी प्रोफाइलेक्सिस (anti-D prophylaxis) या आरएएडीपी (प्रोफाइलेक्सिस का मतलब वह कदम जो इस ऐसी परिस्थिति को रोकता है।) दिया जाता है। इसके अलावा भी नियमित तौर पर एंटी नेटल एंटी डी प्रोफाइलेक्सिस (आरएएडीपी) दो तरीके से दिया जाता है।
- इसका पहला डोज प्रेग्नेंसी के 28 से 30 हफ्तों के बीच दिया जाता है। जिसमें एंटी डी इम्युनोग्लोब्युलिन का एक इंजेक्शन दिया जाता है।
- दूसरे डोज में प्रेग्नेंसी के 28वें हफ्ते के दौरान एक इंजेक्शन और दूसरा 34वें हफ्ते को दौरान दिया जाता है।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। यदि आप भी मां बनने जा रही हैं तो एक बार अपने डॉक्टर से एंटी डी इंजेक्शन के बारे में सलाह जरूर लें। संभव हो तो RhD फैक्टर के बारे में जानकारी हासिल करें। इससे प्रेग्नेंसी के दौरान रीसस बीमारी से शिशु को होने वाला खतरा कम होगा बल्कि, समय पर इसकी रोकथाम भी संभव होगी। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।
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