हर साल दुनियाभर में 50,000 से 1,00,000 तक महिलाओं को ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला की समस्या का सामना करना पड़ता है। यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक है और वह भी तब, जबकि इस समस्या से पूरी तरह से बचाव किया जा सकता है। लेकिन, गरीबी, महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता, गर्भावस्था व प्रसव में मेडिकल सहायता न मिलने आदि के कारण अधिकतर महिलाएं बच्चे को जन्म देते हुए बच्चे को खो देती हैं या अपनी जिंदगी गंवा देती है। इसके बाद भी, अगर कुछ महिलाएं बच भी जाती हैं, तो उन्हें इससे होने वाली परेशानी की वजह से जिंदगीभर गंभीर समस्या या शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति होने वाली अज्ञानता, उदासीनता, चिकित्सीय मदद में देरी आदि के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए हर साल 23 मई को इंटरनेशनल डे टू एंड ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला मनाया जाता है। ताकि, इस समस्या की वजह से किसी भी महिला को परेशानी न उठानी पड़े।
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ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला (Obstetric Fistula in hindi) की समस्या क्या है?
ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला (प्रसूति नालव्रण) एक वजायनल इंजुरी है, जो कि प्रसव के दौरान हो जाती है। यह इंजुरी महिलाओं में काफी गंभीर और खतरनाक परिणामों का कारण बन सकती है। जिसकी वजह से उन्हें यूरिन व मल लीक होने की समस्या, शर्मिंदगी, स्वास्थ्य समस्याएं, सामाजिक अलगाव आदि परेशानी का सामना करना पड़ता है। यह समस्या आमतौर पर लंबे प्रसव या प्रसव में दिक्कत आने के दौरान यूरिनरी ट्रैक्ट या गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट और जेनिटल ट्रैक्ट के बीच असमान्य गतिविधियों के कारण होती है।
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ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला में चिकित्सीय मदद या सी-सेक्शन सर्जरी न मिलने की वजह से प्रसव में लंबे समय तक बाधा आने के कारण शिशु के सिर व गर्भवती महिला की पेल्विक बोंस के बीच आने वाले नाजुक टिश्यू दब जाते हैं। यह टिश्यू दब जाने की वजह उनमें रक्त प्रवाह थम जाता है, जिससे वह बेजान हो जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं। इन टिश्यू के नष्ट हो जाने पर उस जगह गर्भवती महिला की वजायना और रेक्टम या फिर वजायना और ब्लैडर के बीच एक छेद हो जाता है, जो कि लीकेज का कारण बनता है। हालांकि, इसका इलाज सिर्फ सर्जरी के द्वारा किया जा सकता है, जिसके बाद प्रभावित महिला की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है।
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ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला का महिलाओं की जिंदगी पर असर
एक स्टडी के मुताबिक, मिडिल ईस्ट और नॉर्थ अफ्रीका, ईस्ट एशिया और पेसिफिट, साउथ एशिया और उप-सहारा अफ्रीका के कई देशों में प्रत्येक 1000 डिलीवरी के दौरान एक से तीन गर्भवती महिलाओं को ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला की समस्या होती है। जिसकी वजह से यूरिन व मल लीक होने की समस्या जैसे कई फिजिकल व एनाटॉमिक प्रेशर के अलावा महिलाओं में विभिन्न शारीरिक व मानसिक बुरे परिणाम देखने को मिलते हैं। आइए, इन प्रभावों के बारे में जानते हैं।
प्रसूति नालव्रण से दिमाग और भावनाओं से जुड़ी परेशानी
ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला से ग्रसित महिलाओं को दुनिया से बेदखल, बहिष्कृत और एक शक्तिहीन समूह के रूप में देखा व कहा जाता रहा है। कई संस्कृति व देशों में जहां महिलाओं को इस समस्या का सामना करना पड़ता है, वहां इसे न सिर्फ एक शारीरिक समस्या माना जाता है, बल्कि इससे उनकी गृहस्थ जिंदगी पर भी काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जीओएच और अन्य (2005) ने बांग्लादेश और इथियोपिया से प्रसूति नालव्रण की शिकार महिलाओं से सायकाइट्रिक डिसऑर्डर स्क्रीनिंग टूल की मदद से कुछ सवाल किए। जिसमें पाया गया कि, करीब 97 फीसदी महिलाओं को कोई संभावित मेंटल हेल्थ डिस्फंक्शन है और करीब 23 से 39 प्रतिशत महिलाओं को गंभीर डिप्रेशन है। इसके अलावा कुछ स्टडी में, इस समस्या की वजह से महिलाओं के आइसोलेशन में रहने, सुसाइड करने के प्रमाण मिले हैं। लेकिन, इस समस्या की वजह से उनका मर्डर या हॉरर किलींग जैसी किसी स्थिति के आंकड़े प्रकाशित नहीं मिले, हालांकि, घरेलू हिंसा बढ़ने के कुछ प्रमाण अवश्य हैं।
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आर्थिक प्रेशर
मौजूद स्टडी के आंकलन के बाद यह बात समझी जा सकती है कि, दर्ज मामलों में से 31 प्रतिशत से 66.7 प्रतिशत मामलों में यह ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला पहली बार प्रसव कर रही महिलाओं में देखी गई है। जिससे उनकी समाज में रहने लायक मानसिक स्थिति, कार्य करने की शारीरिक क्षमता और स्टिलबर्थ या इनफर्टिलिटी आदि की वजह से नौकरी छूट जाती है या वह कार्य करने के लिए मानसिक तौर पर सक्षम नहीं रह पाती। जिसकी वजह से महिलाओं को एक इमोशनल ट्रॉमा से गुजरते हुए आर्थिक दबाव का बोझ भी उठाना पड़ सकता है। यह समस्या सिंगल मदर या खराब पारिवारिक स्थिति से जूझ रही महिलाओं के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है।
प्रसूति नालव्रण (Obstetric Fistula) से त्वचा संबंधी समस्या
प्रसूति नालव्रण की वजह से त्वचा पर यूरिनरी अमोनिया के जमने के कारण उत्तेजना और अल्सर हो सकता है। यूरिन की वजह से क्रॉनिक मॉइश्चर और उसकी एसिडिटी की वजह से यूरिक एसिड क्रिस्टल बनने लगते हैं और त्वचा संक्रमित हो जाती है।
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स्टिलबर्थ
प्रसूति नालव्रण के जिन मामलों में गर्भवती महिला की जिंदगी बचा ली जाती है, वहां अधिकतर स्टिलबर्थ के मामले देखे जाते हैं। प्रसव के दौरान बाधा के लंबे दर्द और डर के समय के बाद निकला यह परिणाम निराशा को बढ़ा देता है। एक स्टडी में देखा गया है कि, ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला के 85 प्रतिशत मामलों में महिलाओं को स्टिलबर्थ का सामना करना पड़ता है। वहीं 899 मामलों पर आधारित दूसरी स्टडी में जीवित शिशुओं में मृत्यु का आंकड़ा 92 फीसदी रहा और इसके अतिरिक्त 14 शिशुओं की नियोनेटल पीरियड के दौरान मृत्यु हो गई।
इस समस्या से बचाव कैसे किया जा सकता है?
महिलाओं में ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला से बचाव या इस समस्या को टालने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, यह समस्या रोकी जा सकती है, जिसमें निम्नलिखित तरीके अहम योगदान दे सकते हैं।
- डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, महिलाएं अपनी पहली प्रेग्नेंसी की उम्र को थोड़ा बढ़ाकर इस समस्या को रोक सकती हैं, ताकि उनका शरीर पूरी तरह से प्रेग्नेंसी और बर्थ के लिए खुद को तैयार कर सके।
- इसके अलावा, महिलाओं के लिए कुछ खतरनाक व हानिकारक पारंपरिक प्रथाओं का अंत करने से भी मदद मिल सकती है।
- साथ ही, प्रेग्नेंसी और बर्थ के दौरान समय पर प्रसूति देखभाल यानी ऑब्स्टेट्रिक केयर मिलने से काफी हद तक इस समस्या से दूर रहा जा सकता है।
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हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।
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