टॉलरेंस, डिपेंडेंस और एडिक्शन शब्दों के बीच लोग अक्सर कंफ्यूज हो जाते हैं। कई बार लोग इन शब्दों का गलत उपयोग भी कर लेते हैं। हालांकि, इनकी डेफिनेशन अलग है। चलिए जानते हैं इनका मतलब क्या है? टॉलरेंस सामान्य है। ऐसा तब होता है, जब आप मेडिकेशन का यूज रेगुलरली करते हैं। आप जो मेडिसिन ले रहे हैं उसके प्रति यदि आपकी बॉडी ने टॉलरेंस डेवलप कर लिया है तो इसका मतलब है कि दवा के डोज ने प्रभावी तरीके से काम करना बंद कर दिया है। इसका मतलब ये भी है कि आपकी बॉडी उस दवा के प्रति अभ्यस्त (used to) हो गई है और अब आपको इस दवा के वे फायदे नहीं मिलेंगे जो पहले मिलते थे। ऐसे में डॉक्टर दवा का डोज बढ़ा सकता है, आपका रूटीन बदल सकता है या आपको कोई दूसरी दवा को प्रिस्क्राइब कर सकता है।
ड्रग टॉलरेंस होने के पीछे जेनेटिक और बिहेवियरल एलिमेंट जिम्मेदार होते हैं। कई बार टॉलरेंस बहुत जल्दी यानी कम समय के लिए दवा लेने पर भी डेवलप हो जाता है। आपको बता दें कि टॉलरेंस, ड्रग डिपेंडेंस की तरह काम नहीं करता। आगे जानते हैं कि ड्रग टॉलरेंस और ड्रग डिपेंडेंस में क्या अंतर है।
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ड्रग टॉलरेंस और ड्रग डिपेंडेंस में क्या अंतर है?
इन दोनों के बीच का सबसे बड़ा अंतर ये है कि बॉडी कैसे किसी स्पेसिफिक ड्रग की प्रेजेंस और एबसेंस को लेकर रिएक्ट करती है। टॉलरेंस में बॉडी में कुछ सेल रिसेप्टर्स जो दवा लेने पर एक्टिवेट होते हैं रिस्पॉन्ड करना बंद कर देते हैं जैसे वे पहले करते थे। साइंटिस्ट अभी तक ये नहीं समझ पाएं हैं कि कुछ लोगों के साथ ऐसा क्यों होता है। डिपेंडेंस की स्थिति में अगर आप डोज नहीं लेते हैं या डोज को अचानक कम कर देते हैं तो आपको विड्रॉल सिम्प्टम्स का अहसास हो सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि आपकी बॉडी नॉर्मली फंक्शन तब ही करेगी, जब आपकी बॉडी में वो ड्रग प्रेजेंट होगा। ऐसा कई ड्रग्स के साथ हो सकता है। कुछ केसेस में डिपेंडेंस एडिक्शन का कारण भी बन सकता है।
विड्रॉल के लक्षण इस पर भी निर्भर करेंगे कि आप कौन सी दवा यूज कर रहे हैं। ये लक्षण उल्टी और जी मिचलाने जैसे माइल्ड भी हो सकते हैं और सीजर्स और साइकोसिस की तरह गंभीर भी। अगर आपकी बॉडी उस दवा पर डिपेंडेंट है, तो जरूरी है कि अचानक दवा को लेना बंद न करें। डॉक्टर आपके लिए उस दवा को छोड़ने के लिए एक शेड्यूल बनाएंगे, ताकि विड्रॉल सिम्पटम्स से निपटा जा सके। इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति में डॉक्टर की सलाह लेना सबसे जरूरी होता है।
टॉलरेंस और डिपेंडेस के बाद बात करते हैं एडिक्शन के बारे में। यह ज्यादा सीरियस कंडिशन है।
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एडिक्शन क्या है?
एडिक्शन ड्रग डिपेंडेंस से काफी अलग है। यह एक हेल्थ कंडिशन है, जो किसी भी दूसरी क्रॉनिक हेल्थ कंडिशन की तरह ही है। इसमें ब्रेन एक्टिविटीज में बदलाव होता है। न्यूरोट्रांसमीटर्स जैसे कि डोपामाइन लगातार ट्रिगर होता है और ड्रग क्रेविंग को बढ़ाता है। एडिक्शन को ‘सब्सटेंस यूज डिसऑर्डर’ भी कहा जाता है। एडिक्शन से किसी भी व्यक्ति की फैमिली लाइफ, सोशल लाइफ और वर्क लाइफ खराब होती है। सब्सटेंस यूज डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति दवा का सेवन करने के बाद अपने चारों ओर स्ट्रेस, एंग्जायटी महसूस करेगा।
अगर किसी को एडिक्शन हो जाता है तो उसके लिए जेनेटिक्स फैक्टर्स जिसमें एडिक्शन की फैमिली हिस्ट्री, सोशल और एनवारमेंटल फैक्टर्स जिम्मेदार होते हैं। कई बार व्यक्ति इसका शिकार जानबूझकर नहीं बनता है। डॉक्टर थेरिपीज और कुछ विशेष मेडिकेशन की मदद से इस कंडिशन को मैनेज करते हैं।
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ड्रग टॉलरेंस के रिस्क क्या हैं?
ड्रग टॉलरेंस कुछ निश्चित कंडिशंस के ट्रीटमेंट के लिए चुनौतिपूर्ण हो सकता है। जिसमें शामिल हैं:
- क्रॉनिक पेन
- इम्यून कंडिशन
- सीजर्स डिसऑर्डर
- कुछ मेंटल हेल्थ कंडिशन
- जब टॉलरेंस डेवलप हो जाता है तो डॉक्टर को लक्षणों को इफेक्टविली मैनेज करने के लिए नए तरीके तलाशने पड़ते हैं।
ड्रग टॉलरेंस के रिस्क में निम्न भी शामिल हैं।
- दवाइयां जैसे कि एंटीसाइकोटिक्स और एंटी सीजर्स ड्रग्स प्रभावी नहीं रहती
- कई बार लक्षण से राहत के लिए दवा के हायर डोज की जरूरत होती है जो कि ड्रग का नेगेटिव साइड- इफेक्ट्स बढ़ा सकती हैं।
- ड्रग टॉलरेंस कुछ लोगों में एडिक्शन या सब्सटेंस यूज डिसऑर्डर का कारण बन सकता है, क्योंकि ऑपिऑइड (Opiods) का हायर डोज इसका कारण बनता है।
- कुछ केसेज में एल्कोहॉल दूसरी दवाओं के साथ क्रॉस टॉलरेंस का कारण बन सकती है। जैसे कि डायजेपाम (diazepam) और वैलियम (Valium) जैसी दवाओं के साथ।
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ड्रग टॉलरेंस के बारे में महत्वपूर्ण फैक्ट्स
- टॉलरेंस को लेकर अब तक रिसर्चर असमंजस में हैं। वे अब तक नहीं समझ पाएं हैं कि ये कैसे और क्यों कुछ लोगों में डेवलप हो जाता है और कुछ में नहीं।
- यह किसी भी दवा के साथ हो सकता है। फिर चाहे वह प्रिस्क्रिप्शन ड्रग हो या कभी-कभी ली जाने वाली दवाएं हों।
- इसके कारण आपकी स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है क्योंकि दवाएं आप पर काम नहीं कर रही हैं।
- टॉलरेंस का बस यही एक फायदा है कि इससे दवा के साइड इफेक्ट्स बहुत कम होते हैं क्योंकि आपकी बॉडी दवा के प्रति यूज्ड टू हो चुकी है।
- क्रॉस टालरेंस भी हो सकता है। यह उसी क्लास की दूसरी दवाओं के साथ होता है।
- जब आपकी बॉडी के अंदर ड्रग टॉलरेंस हो जाता है तो ऐसे में हायर डोज का उपयोग करने से ओवरडोज का रिस्क बढ़ सकता है।
- दवाओं के कुछ निश्चित क्लासेस जैसे कि ऑपिऑइड्स (Opioids) के साथ टॉलरेंस डिपेंडेंस, एडिक्शन और ओवरडोज का रिस्क बढ़ जाता है।
अगर आप ड्रग टॉलरेंस (Drug Tolerance) से जूझ रहे हैं?
कुछ निश्चित मेडिकेशन के साथ टॉलरेंस होने का मतलब है कि आपका डॉक्टर ट्रीटमेंट को रिवैल्यूएट करेगा। यह कई बार चुनौतिपूर्ण हो सकता है क्योंकि ड्रग का डोज बढ़ाने से साइड- इफेक्ट्स का खतरा बढ़ जाता है। ऐसी दवाओं को ढूंढ़ना और उनका उपयोग करना जो काम करें बेहद मुश्किल हो सकता है। कुछ दूसरी अनरेगुलेटेड ड्रग्स के कारण ओवरडोज और दूसरे कॉम्प्लिकेशन भी हो सकते हैं। ऐसे में डॉक्टर ही आपकी मदद कर सकता है। ऐसे में डॉक्टर की सलाह के बिना किसी भी दवा का यूज न करें। अगर आपको लगता है कि आप इस परेशानी से जूझ रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। कभी भी दवा को खुद से बंद ना करें। डॉक्टर इस परेशानी को मैनेज करने का कोई हल निकालेगा ताकि आप बेहतर महसूस कर सकें।
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