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थायराइड (थायरॉइड) एक तितली के आकार की ग्रंथी होती है जो गर्दन के बीच में श्वास नली के ठीक ऊपर स्थित होती है। इसका काम शरीर में उपयुक्त थायराइड हॉर्मोर्न्स को बनाना होता है। यह शरीर में कई चयापचय प्रक्रियाओं को विनियमित करने के लिए अहम भूमिका निभाता है। यह डिसऑर्डर कई तरह के होते हैं जो इसकी संरचना और कार्य को प्रभावित करते हैं।
यदि थायराइड ग्लैंड हॉर्मोन का उत्पादन अधिक कर रहा है या बहुत कम कर रहा है, दोनों ही स्थिती को थायराइड रोग कहा जाता है। थायराइड (थायरॉइड) का ठीक तरीके से काम न करना शरीर में कई तरह की परेशानी का कारण बन सकता है। यदि थायराइड ग्लैंड इस हॉर्मोन को अधिक बनाता है तो इसे हायपरथायरॉइडिज्म कहते हैं। यदि आपका थायराइड ग्लैंड इस हॉर्मोन को कम बनाता है तो इसे हायपोथायरॉइडिज्म कहते हैं। इन दोनों ही स्थितियों में डॉक्टर को दिखाना जरूरी होता है।
थायराइड (थायरॉइड) मेटाबॉलिज्म को कंट्रोल करने वाले इस हॉर्मोन को जारी करने और उन्हें कंट्रोल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेटाबॉलिज्म वो प्रक्रिया है जिसमें आपके द्वारा खाए गए खाने को एनर्जी में ट्रांसफॉर्म किया जाता है। ये एनर्जी आपके पूरे शरीर को सही तरीके से काम करने में मदद करती है।
थायराइड मेटाबॉलिज्म को कुछ खास हॉर्मोन्स जैसे टी4 और टी3 की मदद से कंट्रोल करता है। इन दोनों हॉर्मोन्स का उत्पादन थायराइड करता है और इनका काम शरीर के हर सेल को कितनी एनर्जी की जरूरत है, यह बताना होता है। जब आपका थायराइड (थायरॉइड) सही तरीके से काम करता है तो यह सही मात्रा में हॉर्मोन्स को बनाता है जो सही तरीके से मेटाबॉलिज्म का काम करते हैं।
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यदि आपको यह रोग है तो आपको बहुत तरह के लक्षण हो सकते हैं। इसके लक्षण काफी हद तक दूसरी मेडिकल कंडिशन के लक्षण से मिलते जुलते हैं। ऐसे में कई बार यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि आपके लक्षण इस बीमारी के हैं या किसी अन्य बीमारी के हैं।
थायराइड (थायरॉइड) के लक्षण को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है। पहले लक्षण अत्यधिक थायराइड हॉर्मोर्न (हायपरथायरॉइडिज्म) से जुड़े हैं और दूसरे लक्षण थायराइड हॉर्मोर्न की कमी (हायपोथायरॉइडिज्म) से जुड़े हैं।
ओवरएक्टिव थायराइड (हायपरथायरॉइडिज्म) के लक्षण:
अंडरएक्टिव थायराइड (हायपोथायरॉइडिज्म) के लक्षण:
यह डिजीज किसी को भी हो सकती है। आदमी, औरत, बच्चे, बूढ़ें आदि कोई भी इसकी चपेट में आ सकता है। यह पैदा होने के समय भी हो सकती है और किसी भी उम्र में भी हो सकती है। यह बीमारी बहुत आम है। पुरुषों की तुलना में यह परेशानी महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है। नीचे बताए लोगों को यह परेशानी होने की अधिक संभावना होती है:
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हायपरथायरॉइडिज्म और हायपोथायरॉइडिज्म दोनों परेशानियों के होने के कारण अलग होते हैं। सबसे पहले बात करते हैं हायपरथायरॉइडिज्म की। हायपरथायरॉइडिज्म होने के पीछे निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
ग्रेव्स डिजीज(Graves’ diseases): ग्रेव्स डिजीज में हमारे शरीर की एंटीबॉडीज गलती से हमारे थायरॉइड ग्रंथि पर हमला कर देती हैं। इसमें थायराइड (थायरॉइड) ग्रंथि ओवरएक्टिव हो जाती है और बहुत अधिक हॉर्मोन का उत्पादन करती है। 80% से 90% हायपरथायरॉइडिज्म के मामलों में होने का कारण यह बीमारी होती है। इसे एनलार्जड थायराइड ग्लैंड (enlarged thyroid gland) भी कहते हैं।
नोड्यूल (Nodules): हायपरथायरॉइडिज्म नोड्यूल के कारण भी हो सकता है, जो थायराइड (थायरॉइड) में ओवरएक्टिव होते हैं।
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अत्यधिक आयोडीन (Excessive iodine): यदि आप आयोडीन की अधिक मात्रा ले रहे हैं तो थायराइड जरूरत से ज्यादा थायराइड हार्मोन बनाता है। अत्यधिक आयोडीन कई दवा और कफ सिरप में भी होता है।
हायपोथायरॉइडिज्म होने के निम्न कारण हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैंः
थायरॉइडाइटिस (Thyroiditis): इसमें थायराइड ग्रंथी में सूजन आ जाती है। थायरॉइडाइटिस थायराइड पैदा करने वाले हॉर्मोन की मात्रा को कम कर सकती है।
हाशिमोटोस थाइरॉइडाईटिस (Hashimoto’s Thyroiditis): यह एक ऑटोइम्यून कंडिशन है, जिसमें शरीर की कोशिकाएं थायराइड पर हमला करती हैं और नुकसान पहुंचाती हैं।
नॉन फंक्शनिंग थायाइड ग्लैंड (non-functioning thyroid gland): कई बार यह ग्रंथी बचपन से ही ठीक तरीके से काम नहीं करती है। 4 हजार में से एक नवजात में यह परेशानी हो सकती है। यदि इसका इलाज न किया जाए तो बच्चे को भविष्य में फिजिकल और मेंटल परेशानियां हो सकती हैं। इसलिए नवजात शिशु के स्क्रीनिंग ब्लड टेस्ट जरूर कराने चाहिए।
आयोडीन की कमी (Iodine deficiency): हॉर्मोन को बनाने के लिए थायराइड (थायरॉइड) आयोडीन का इस्तेमाल करता है। यदि शरीर में आयोडीन की कमी होगी तो यह समस्या हो सकती है।
पोस्टपार्टम थाईरॉइडाईटिस (Postpartum thyroiditis): 5% से 9% महिलाओं में बच्चे को जन्म देने के बाद यह समस्या होती है। आमतौर पर यह एक अस्थायी स्थिति है।
कई बार थायराइड का पता लगना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इसके लक्षण कई दूसरी बीमारी से मिलते हैं। थायरॉयड हार्मोन के लेवल की जांच करने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित टेस्ट कराने के लिए कह सकते हैं:
फिजिकल एग्जाम: इसमें डॉक्टर आपकी गर्दन पर किसी तरह की ग्रोथ और थायराइड बढ़ा हुआ है या नहीं यह पता करते हैं।
ब्लड टेस्ट: इसमें आपके ब्लड में इस हार्मोन (T3, T4) की मात्रा का पता चलता है। इस टेस्ट को करने के लिए आपकी नस से खून लिया जाता है।
इमेजिंग टेस्ट: डॉक्टर आपको थायराइड (थायरॉइड) स्कैन कराने का सुझाव भी दे सकते हैं। इसमें थायराइड का बढ़ा हुआ साइज, शेप और नोड्यूल्स की ग्रोथ के बारे मालूम होता है।
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यदि आपको हायपरथायरॉइडिज्म (Hyperthyroidism) है तो डॉक्टर इन तरीकों से इलाज कर सकते हैं:
एंटी-थारयाइड दवाएं: डॉक्टर आपको एंटी-थारयाइड दवाएं दे सकते हैं जो थायराइड को हॉर्मोन बनाने से रोकती हैं।
रेडियोएक्टिव आयोडीन (Radioactive iodine): हायपरथायरॉइडिज्म की परेशानी दूर करने के लिए डॉक्टर आपको रेडियोएक्टिव आयोडीन ट्रीटमेंट रिकमेंड कर सकते हैं। इसमें थायराइड को अधिक थायराइड हॉर्मोन बनाने से रोकने के लिए उसकी सेल्स को डैमेज किया जाता है।
बीटा ब्लॉकर्स (Beta blockers): ये दवाएं आपके शरीर में हॉर्मोन की मात्रा को नहीं बदलती, लेकिन ये इसके लक्षणों को कम करने में मदद करती हैं।
सर्जरी (Surgery): यह इस परेशानी को जड़ से खत्म करने का तरीका है। इसमें डॉक्टर सर्जरी कर थायराइड (थायरॉइड) के एक भाग को रिमूव कर देता है। हालांकि इसमें आपको हमेशा थायराइड रिप्लेसमेंट हॉर्मोन लेने की जरूरत होती है।
यदि आपको हायपोथायरॉइिज्म (hypothyroidism) है तो डॉक्टर थायराइड रिप्लेसमेंट मेडिकेशन दे सकते हैं। ये दवाएं शरीर में थायराइड हॉर्मोन की कमी को पूरा करने में मदद करती हैं। आमतौर पर इसके लिए लेवोथायरोक्सिन (levothyroxine) दवा दी जाती है। इस दवा का उपयोग करके, आप थायराइड रोग को नियंत्रित कर सकते हैं और एक सामान्य जीवन जी सकते हैं।
अगर आपका इससे जुड़ा किसी तरह का कोई सवाल है, तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी तरह की मेडिकल एडवाइस, इलाज और जांच की सलाह नहीं देता है।
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