परिचय
केराटोकोनस क्या है?
केराटोकोनस नेत्र से जुड़ी एक बीमारी है जिसमें आंखों की कॉर्निया पतली हो जाती है और धीरे-धीरे शंकु के आकार में परिवर्तित होकर बाहर की ओर उभर आती है। जब कॉर्निया शंकु के आकार की हो जाती है तब आंखों से धुंधला दिखायी देने लगता है और आंखें प्रकाश और चमक के प्रति संवेदनशील हो जाती हैं। दरअसल, कॉर्निया का कार्य आंख में प्रवेश करने वाली लाइट को अपवर्तित (refract) करना होता है। लेकिन कॉर्निया में चोट या असमान्यता के कारण दृष्टि पर असर पड़ता है और ड्राइविंग, किताबें पढ़ने या टीवी देखने जैसे आसान से कामों में आंखों में दर्द होने लगता है।
केरोटोकोनस दोनों आंखों को प्रभावित करता है और आमतौर पर 10 से 25 वर्ष की उम्र के लोगों में यह समस्या अधिक होती है। केराटोकोनस धीरे-धीरे दस या इससे अधिक वर्षों में विकसित होता है। अगर समस्या की जद बढ़ जाती है तो आपके लिए गंभीर स्थिति बन सकती है । इसलिए इसका समय रहते इलाज जरूरी है। इसके भी कुछ लक्षण होते हैं ,जिसे ध्यान देने पर आप इसकी शुरूआती स्थिति को समझ सकते हैं।
कितना सामान्य है केराटोकोनस होना?
केराटोकोनस एक रेयर डिसॉर्डर है। ये महिला और पुरुष दोनों में सामान प्रभाव डालता है। पूरी दुनिया में लगभग प्रति 2000 में से 1 व्यक्ति केराटोकोनस से पीड़ित हैं। यह बीमारी किशोरावस्था या वयस्क होने के दौरान होती है और अगले 10 से 20 वर्षों में पूरी तरह विकसित हो जाती है। ज्यादा जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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लक्षण
केराटोकोनस के क्या लक्षण है?
केराटोकोनस धीरे-धीरे बढ़ने वाली आंखों की बीमारी है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति में शुरुआत में कॉर्निया के आकार में कोई बदलाव नजर नहीं आता है, हालांकि कुछ लोगों में इस बीमारी के लक्षण स्पष्ट नजर आते हैं। शंकु के आकार की कॉर्निया के अलावा केराटोकोनस के निम्न लक्षण नजर आते हैं:
- आंखों से धुंधला दिखना
- तेज रोशनी या चमक के प्रति संवेदनशीलता
- रात में ड्राइविंग करने में परेशानी
- बार-बार चश्मा बदलने की जरुरत
- फोटोफोबिया
मुझे डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?
ऊपर बताएं गए लक्षणों में किसी भी लक्षण के सामने आने के बाद आप डॉक्टर से मिलें। हर किसी की आंखों पर केराटोकोनस डिजीज अलग प्रभाव डाल सकता है। इसलिए किसी भी परिस्थिति के लिए आप डॉक्टर से बात कर लें। यदि आपके आंखों की रोशनी तेजी से घट रही है जिसके कारण आपके रोजमर्रा के कार्य प्रभावित हो रहे हों तो तुरंत ऑप्टोमेट्रिस्ट के पास जाकर आंखों की जांच कराएं।
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कारण
केराटोकोनस होने के कारण क्या है?
केराटोकोनस डिजीज का सटीक कारण ज्ञात नहीं है। हालांकि यह आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारणों से हो सकता है। कॉर्निया में चोट लगने या डैमेज होने, कॉर्निया में एंजाइम के असंतुलन के कारण ऊतकों के कमजोर होने, आंखों को बार बार हाथों से रगड़ने और खराब कॉन्टैक्स लेंस का इस्तेमाल करने के कारण केराटोकोनस हो सकता है।
कॉर्निया के अंदर एंजाइम घट जाने के कारण कॉर्निया में ऑक्सीडेटिव डैमेज की घटना बढ़ जाती है जिसके कारण यह बाहर की ओर उभर आती है। आंखों की यह बीमारी परिवार के एक सदस्य से अन्य सदस्यों को होती है और आमतौर पर केराटोकोनस के 14 प्रतिशत मामले आनवांशिक होते हैं।
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उपचार
यहां प्रदान की गई जानकारी को किसी भी मेडिकल सलाह के रूप ना समझें। अधिक जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
केराटोकोनस का निदान कैसे किया जाता है?
केराटोकोनस डिजीज का पता लगाने के लिए डॉक्टर आंखों की जांच करते हैं और मरीज का पारिवारिक इतिहास भी देखते हैं। इस बीमारी को जानने के लिए कुछ टेस्ट कराए जाते हैं :
- आई रिफ्रैक्शन-डॉक्टर एक विशेष उपकरण से दृष्टि की समस्या की जांच करते हैं। इस डिवाइस में अलग अलग लेंस लगे होते हैं जो आंखों की गहरायी से जांच करते हैं।
- स्लिट लैम्प टेस्ट- इस टेस्ट में डॉक्टर मरीज की आंख की सतह पर लाइट की वर्टिकल बीम डालते हैं और माइक्रोस्कोप से कॉर्निया की शेप एवं आंखों में अन्य समस्याओं की जांच करते हैं।
- केराटोमेट्री-यह टेस्ट करने के लिए डॉक्टर मरीज की आंख की कॉर्निया पर लाइट डालते हैं और रिफ्लेक्शन को मापकर कॉर्निया के शेप में बदलाव का पता लगाते हैं।
इसके अलावा कुछ मरीजों का कंप्यूटराइज्ड कॉर्नियल मैपिंग टेस्ट किया जाता है। यह स्पेशनल फोटोग्राफिक टेस्ट है जिसमें कॉर्निया का सही इमेज उतारकर इसकी आकृति में बदलाव का पता लगाया जाता है। यह टेस्ट कॉर्निया की मोटाई का भी पता लगाने में मदद करता है।
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केराटोकोनस का इलाज कैसे होता है?
केराटोकोनस डिजीज का इसकी गंभीरता पर निर्भर करता है। कुछ थेरिपी और दवाओं से व्यक्ति में केराटोकोनस डिजीज के असर को कम किया जाता है। केराटोकोनस डिजीज के लिए कई तरह की मेडिकेशन की जाती है :
- आईग्लास या सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस-चश्मा या सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस केराटोकोनस डिजीज की शुरूआत में ही आंखों से धुंधला दिखने की समस्या को कम कर देते हैं। लेकिन कॉर्निया का शेप बदलते रहने के कारण चश्मा भी बदलने की जरुरत होती है।
- स्कलेरल लेंस-कॉर्निया का आकार रोजाना बदलने पर स्कलेरल लेंस की जरुरत पड़ती है। यह लेंस कॉर्निया के सफेद पार्ट पर बैठ जाता है और कॉर्निया को नुकसान पहुंचाए बिना इसके आकार को सामान्य करने में मदद करता है।
- कॉर्नियल क्रास लिंकिंग- यह एक थेरेपी है जिसमें कॉर्निया को राइबोप्लेविन ड्रॉप से भिगोकर पराबैंगनी किरणों से इलाज किया जाता है। कॉर्नियल क्रॉस लिंकिंग आंखों की रोशनी को कम होने से बचाती है।
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घरेलू उपचार
जीवनशैली में होने वाले बदलाव क्या हैं, जो मुझे केराटोकोनस को ठीक करने में मदद कर सकते हैं?
अगर आपको केराटोकोनस डिजीज है तो आपके डॉक्टर वह आहार बताएंगे जिसमें बहुत ही अधिक मात्रा में न्यूट्रिएंट पाये जाते हों। साथ ही ओमेगा 3 फैटी एसिड, ल्यूटिन, जिंक, विटामिन सी और ई से भरपूर पोषक तत्वों का सेवन करने की सलाह देंगे। आंखों की सेहत के लिए निम्न फूड्स फायदेमंद होते है:
- पालक
- काले (kale)
- टूना मछली
- ऑयली फिश
- अंडा
- पपीता
- संतरा
- अखरोट
इस संबंध में आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें। क्योंकि आपके स्वास्थ्य की स्थिति देख कर ही डॉक्टर आपको उपचार बता सकते हैं।
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हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई भी मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है, अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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