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आंखों का टेढ़ापन क्या है? जानिए इससे बचाव के उपाय

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Satish singh द्वारा लिखित · अपडेटेड 26/08/2020

    आंखों का टेढ़ापन क्या है? जानिए इससे बचाव के उपाय

    आंखों का टेढ़ापन और भेंगापन आज के समय में आम समस्या बन गई है। इसके कारणों में एक डिजिटलाइजेशन और मोबाइल का इस्तेमाल भी है। केडिया आई एंड मेटर्निटी सेंटर जुगसलाई जमशेदपुर और सदर अस्पताल जमशेदपुर के आई स्पेशलिस्ट डॉ विवेक केडिया बताते हैं कि, ‘गांव के बच्चों की तुलना में शहरी बच्चों को आंखों के विकार संबंधी समस्या काफी ज्यादा होती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बच्चे मैदान में क्रिकेट, फुटबाल, गिल्ली डंडा खेलने की बजाय टीवी, मोबाइल और कंप्यूटर में समय बीता रहे हैं। इस कारण जहां उनकी आंखों की रोशनी कम होती है वहीं आंखों से संबंधित कई विकार भी सामने आते हैं। ‘

    इसलिए जरूरी है कि हर बच्चे को चार साल की उम्र तक एक्सपर्ट से आंखों की जांच जरूर करवाना चाहिए, क्योंकि यदि सही समय में आंखों से संबंधित बीमारी का पता लग जाए तो उसका इलाज संभव है, यदि बीमारी को नजरअंदाज किया गया तो बच्चे को उस बीमारी के साथ पूरी जिंदगी बितानी पड़ सकती है। इस आर्टिकल में हम आंखों का टेढ़ापन-भेंगापन, इसका कारण और बचाव बताने जा रहे हैं।

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    आंखों का टेढ़ापन यानी स्क्विंट ऑफ आई

    आई स्पेशलिस्ट डॉ विवेक केडिया बताते हैं कि आंखों के टेढ़ेपन और भेंगेपन को स्क्विंट ऑफ आई कहा जाता है। यह बीमारी बच्चों से लेकर बड़ों को हो सकती है। बच्चों को यह बीमारी जहां पैदायशी भी हो सकती है। इसके अलावा दो से तीन साल में बीमारी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। स्किवंट ऑफ आई के दो प्रकार होते हैं। पहला मैनिफेस्ट स्क्विंट (manifest squint) और दूसरी लेटेंट स्क्विंट (latent squint)। मैनिफेस्ट स्क्विंट में आंखों के भेंगेपन को साफ तौर पर देखा जा सकता है, एक आंख की तुलना में दूसरी आंख तिरछी होती है। वहीं लेटेंट स्क्विंट में आंखों का भेंगा पन क्लीयर पता नहीं लगता है। जब व्यक्ति थका रहता है या फिर डे ड्रिमिंग करता है तो उस स्थिति में आंखों में भेंगापन साफ दिखाई देता है।

    आंखों का टेढ़ापन’ मोबाइल है काफी हद तक दोषी

    डाॅक्टर विवेक बताते हैं कि फोन पर ज्यादा समय बिताने के कारण और पास की चीजों पर ज्यादा समय तक नजर गड़ाने की वजह से आंखों को काफी मेहनत करनी पड़ती है। वहीं दूर की चीजों को देखने के लिए आंखों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती, बल्कि रिलैक्स मुद्रा में ही दूर की चीजें आसानी से दिखती है। ऐसे में पास की चीजों को ज्यादा देर तक देखने के लिए आंखों की मसल्स को काफी मेहनत करना पड़ती है। ऐसे में मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करने से आंखें कमजोर हो जाती है, दूर की चीजें नहीं दिखती हैं, चश्मा लगाना पड़ता है। इसलिए जरूरत से ज्यादा और बिना काम के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर समय नहीं बिताना चाहिए। नहीं तो आंखों का भेंगापन और आंखों का टेढ़ापन के शिकार हो सकते हैं।

    मौजूदा समय में पैरेंट्स बच्चों को मोबाइल दे देते हैं और वे काफी देर तक टकटकी लगाए मोबाइल में देखते रहते हैं। इस कारण आंखों में ड्रायनेस, खुजली, जलन, थकान जैसी परेशानी भी महसूस हो सकती हैं। इसलिए जरूरी है कि बीमारी से बचाव के लिए फोन को खुद से दूर रखें। दूर देखने वाले काम में खुद को ज्यादा से ज्यादा व्यस्त रखना चाहिए। वहीं यदि कोई मोबाइल का इस्तेमाल भी करता है तो जरूरी है कि हर 15 मिनट तक आंखों को आराम दिया जाए। वहीं टीवी को नजदीक से देखने की बजाय कुछ दूरी पर रहकर टीवी देखा जाए, आंखों से संबंधित एक्सरसाइज करना भी फायदेमंद होता है।

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    डा विवेक केडिया
    Dr. Vivek Kedia

    आंखों को कंट्रोल करतीं हैं छह मसल्स

    डाॅक्टर विवेक केडिया के अनुसार जिस प्रकार घोड़े को लगाम की मदद से कंट्रोल किया जाता है, ठीक उसी प्रकार आंखों को भी छह मसल्स कंट्रोल करती हैं। वहीं इन्हीं छह मसल्स में से एक भी मसल्स यदि ठीक से काम न करें तो दिमाग तक सिग्नल नहीं पहुंचेंगे और व्यक्ति को ठीक से देखने में परेशानी होगी। आंखों में भेंगापन का सबसे ज्यादा और महत्तवपूण कारण यह है कि बच्चों में रिफेक्टिव एरर (refractive error) होता है। इस कारण कमजोर आंख में एंब्लायोपिया (amblyopia) एवं टेढ़ापन की परेशानी होती है जिससे उन्हें दूर या नजदीक की चीजें देखने में दिक्कत होती है और इलाज न कराया गया तो आंख खुद ब खुद बाहर या अंदर की तरफ भागने लगती है। इस कारण आंखों में तिरछापन साफ तौर पर नजर आता है।

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    दोनों आंख की रोशनी में अंतर भी हो सकता है भेंगेपन का कारण

    आंखों के विशेषज्ञ डाॅक्टर विवेक के अनुसार यदि एक आंख की रोशनी ठीक है तो वो हमारे दिमार को क्लीयर इमेज भेजती है, वहीं यदि एक आंख की रोशनी कमजोर है या उससे कम दिखता है तो उस आंख से धुंधली इमेज ब्रेन तक पहुंचती है। इसका असर यह होता है कि कुछ समय के बाद जिस आंख से धुंधली इमेज ब्रेन तक पहुंच रही थी धीरे- धीरे ब्रेन उस आंख से इमेज लेना ही बंद कर देता है। इस कारण आंखों में टेढ़ापन की समस्या आ जाती है। दो से तीन साल की उम्र के बच्चों में इस बीमारी से संबंधित लक्षण दिखने लगते हैं।

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    बीमारी पकड़ में आते ही करते हैं इलाज

    आंखों में टेढ़ापन का यदि पता चल जाता है तो सबसे पहले आंखों के पावर की जांच की जाती है। रोशनी में अंतर दिखने पर पीड़ित को चश्मा लगाया जाता है। ट्रीटमेंट का पहला स्टेप यही है। इसके कारण आंखों में टेढ़ापन/तिरछापन के कारणों का पता लगाया जाता है, जैसे कहीं यह पैदायशी तो नहीं या फिर बाद में हुआ हो। इस बीमारी को एक से दो साल की उम्र में ही पता किया जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि बच्चों के आंखों की भी जांच करवानी चाहिए।

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    एंब्लायोपिया (amblyopia) बीमारी नहीं बल्कि है कंडिशन

    एंब्लायोपिया एक बीमारी नहीं बल्कि कंडीशन है। डाॅक्टर विवेक बताते हैं कि आंख को पावर देने के बाद भी यदि क्लियर नहीं दिखता तो इससे यह पता चलता है कि उस व्यक्ति के दिमाग ने कमजोर आंख का सिग्नल लेना ही बंद कर दिया है, या सिग्नल लेना भूल गया है। यदि सही समय पर पता चल जाए तो मरीज का इलाज संभव है। यदि सही समय पर इसका पता न चले तो इलाज करना मुश्किल हो जाता है। सात से आठ साल की उम्र तक किसी का भी विजिअल पाथवे या फिर नर्वस सिस्टम पूर्णत: डेवलप हो जाता है। इसलिए यदि शुरुआती उम्र में ही बीमारी का इलाज न किया गया तो बच्चे को उम्र भर टेढ़ी आंख के सहारे ही जीवन चलाना होगा। इसलिए जरूरी है कि चार साल की उम्र तक हर मां-पिता को बच्चे का आई स्पेशलिस्ट से जांच जरूर करवाना चाहिए। 100 में से पांच बच्चों में यह बीमारी होती है, लेकिन जरूरी है कि इसकी पहचान की जाए और सही समय पर इसका इलाज करवाया जाए।

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    ऐसे किया जाता है इलाज

    एंब्लायोपिया के केस में मरीज का इलाज करने के लिए उसकी अच्छी आंख यानि जिस आंख की रोशनी अच्छी है, जिससे वह साफ देख पा रहा है उसको दिन में कुछ घंटों के लिए बंद कर दिया जाता है। वहीं दूसरी कमजोर रोशनी वाली आंख से मरीज को देखने के लिए मजबूर किया जाता है। ताकि जबरदस्ती दूसरी आंख का सिग्नल भी ब्रेन रिसीव करें। ऐसा कर विजुअल पाथवे को सुधारा जा सकता है। आंखों का टेढ़ापन के इलाज में यह साइंटिफिक तरीके में से एक है।

    ऐसे में इलाज की बात करें तो सबसे पहले चश्मा दिया जाता है। दूसरी आंखों की पैचिंग कर दूसरे कमजोर आंख से देखने के लिए बच्चे को मजबूर कर विजुअल पाथवे को सुधारा जाता है, तीसरा और अंतिम तरीका सर्जरी है। मरीज की सर्जरी कर इलाज किया जाता है। मसल्स में किसी प्रकार का इंबैलेंस है तो सर्जरी कर उसे ठीक किया जाता है। वहीं मौजूदा समय में कई लोग विजन थैरपी के द्वारा भी इलाज करते हैं, जिसके अंतर्गत कई एक्सरसाइज, थैरेपी के द्वारा आंखों के भेंगेपन या तिरछापन को ठीक करने की कोशिश की जाती है। ऐसे में जरूरी है कि चार साल की उम्र तक बच्चों के आंखों की जांच जरूर करवानी चाहिए।

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    व्यस्कों में भी आंखों का टेढ़ापन-तिरछापन की हो सकती है शिकायत

    बता दें कि व्यस्कों को सिर्फ मोबाइल, कंप्यूटर के ज्यादा इस्तेमाल के कारण ही आंखों का टेढ़ापन या तिरछापन नहीं हो सकता है बल्कि उन्हें किसी चोट, एक्सीडेंट या फिर ट्यूमर के कारण भी दिमाग की नस दब जाने के कारण भी आंखों का टेढ़ापन हो सकता है। वहीं आंखों का टेढ़ापन का पता उस वक्त चलता है जब व्यक्ति दिनभर काम कर घर आकर लेटता है, थका रहता है। उस वक्त उसे खुद एहसास होगा कि कोई भी इमेज उसे दो-दो बार दिखाई दे रही हैं। ऐसा पास के काम में फोकस करने के कारण भी आंखों का टेढ़ापन हो सकता है। बड़ों की तुलना में बच्चों में आंखों का टेढ़ापन ज्यादा देखने को मिलता है, वहीं ऐसा एंब्लायोपिया के कारण या फिर सौ में 5 बच्चों को हो सकती है। व्यस्कों में आंखों में टेढ़ापन का इलाज सर्जरी कर किया जाता है। वहीं यदि हल्की परेशानी है तो उसका इलाज एक्सरसाइज और फोन व कंप्यूटर में कम से कम समय बिताकर किया जा सकता है।

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    आंखों का टेढ़ापन है शारीरिक विकार

    आई स्पेशलिस्ट डाॅक्टर विवेक बताते हैं कि आंखों का टेढ़ापन कई मामलों में पैदायशी होता है, जिसका लोग गलत अर्थ निकाल लेते हैं। समाज में भ्रांति है कि कई लोग यह मानते हैं कि आंखों का टेढ़ापन भगवान की देन है, बल्कि ऐसा नहीं है सही समय पर डाक्टरी सलाह ली जाए तो इस बीमारी का इलाज संभव होता है। इसलिए जरूरी है कि तीन से चार साल की उम्र में बच्चों को आई स्पेशलिस्ट के पास जरूरी लेकर जाना चाहिए। वहीं यदि परिवार में ही कोई फोटो खींचता है, जिसमें बच्चा सामान्य से दूसरी ओर देखता हुआ दिखता है तो उसे नजरअंदाज करने की बजाय डाॅक्टरी सलाह लेनी चाहिए। जागरूकता के चलते आंखों का टेढ़ापन ठीक किया जा सकता है।

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    पेरेंट्स और टीचर्स को भी होना होगा जागरूक

    डाॅक्टर विवेक के अनुसार आंखों का टेढ़ापन को लेकर पेरेंट्स और टीचर्स को भी जागरूक होना पड़ेगा। बता दें कि कोई भी स्टूडेंट अपना छह घंटे से अधिक समय स्कूल में बिताता है, ऐसे में देखने को लेकर ब्लैक बोर्ड में शब्दों को पढ़ने को लेकर किसी स्टूडेंट को परेशानी हो तो उसे डाॅक्टरी सलाह लेनी चाहिए। पेरेंट्स को भी ध्यान देना चाहिए कि यदि उनके बच्चे को पढ़ने में परेशानी आ रही है, जिस कारण वो पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पा रहा है तो उस स्थिति में डाॅक्टरी सलाह लेना उचित होगा। मौजूदा समय में स्कूलों में अच्छी आदत यह है कि बच्चों को रोटेट कर बिठाया जाता है, ऐसे में जिन बच्चों को आंख संबंधी परेशानी होती है उसका पता आसानी से चल जाता है।

    सिर्फ इतना ही नहीं अंधेरे में भी फोन या कंप्यूटर का इस्तेमाल करने के कारण आंखें खराब हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि उससे भी बचाव किया जाए। वहीं सारे शोध बताते हैं कि फोन  व कंप्यूटर की ब्लू लाइट हमारे आंखों को पूरी तरह से खराब कर सकती है, इसलिए इससे बचाव किया जाए।

    इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाक्टरी सलाह लें।

    डिस्क्लेमर

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    Satish singh द्वारा लिखित · अपडेटेड 26/08/2020

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