ऐसे किया जाता है इलाज
एंब्लायोपिया के केस में मरीज का इलाज करने के लिए उसकी अच्छी आंख यानि जिस आंख की रोशनी अच्छी है, जिससे वह साफ देख पा रहा है उसको दिन में कुछ घंटों के लिए बंद कर दिया जाता है। वहीं दूसरी कमजोर रोशनी वाली आंख से मरीज को देखने के लिए मजबूर किया जाता है। ताकि जबरदस्ती दूसरी आंख का सिग्नल भी ब्रेन रिसीव करें। ऐसा कर विजुअल पाथवे को सुधारा जा सकता है। आंखों का टेढ़ापन के इलाज में यह साइंटिफिक तरीके में से एक है।
ऐसे में इलाज की बात करें तो सबसे पहले चश्मा दिया जाता है। दूसरी आंखों की पैचिंग कर दूसरे कमजोर आंख से देखने के लिए बच्चे को मजबूर कर विजुअल पाथवे को सुधारा जाता है, तीसरा और अंतिम तरीका सर्जरी है। मरीज की सर्जरी कर इलाज किया जाता है। मसल्स में किसी प्रकार का इंबैलेंस है तो सर्जरी कर उसे ठीक किया जाता है। वहीं मौजूदा समय में कई लोग विजन थैरपी के द्वारा भी इलाज करते हैं, जिसके अंतर्गत कई एक्सरसाइज, थैरेपी के द्वारा आंखों के भेंगेपन या तिरछापन को ठीक करने की कोशिश की जाती है। ऐसे में जरूरी है कि चार साल की उम्र तक बच्चों के आंखों की जांच जरूर करवानी चाहिए।
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व्यस्कों में भी आंखों का टेढ़ापन-तिरछापन की हो सकती है शिकायत
बता दें कि व्यस्कों को सिर्फ मोबाइल, कंप्यूटर के ज्यादा इस्तेमाल के कारण ही आंखों का टेढ़ापन या तिरछापन नहीं हो सकता है बल्कि उन्हें किसी चोट, एक्सीडेंट या फिर ट्यूमर के कारण भी दिमाग की नस दब जाने के कारण भी आंखों का टेढ़ापन हो सकता है। वहीं आंखों का टेढ़ापन का पता उस वक्त चलता है जब व्यक्ति दिनभर काम कर घर आकर लेटता है, थका रहता है। उस वक्त उसे खुद एहसास होगा कि कोई भी इमेज उसे दो-दो बार दिखाई दे रही हैं। ऐसा पास के काम में फोकस करने के कारण भी आंखों का टेढ़ापन हो सकता है। बड़ों की तुलना में बच्चों में आंखों का टेढ़ापन ज्यादा देखने को मिलता है, वहीं ऐसा एंब्लायोपिया के कारण या फिर सौ में 5 बच्चों को हो सकती है। व्यस्कों में आंखों में टेढ़ापन का इलाज सर्जरी कर किया जाता है। वहीं यदि हल्की परेशानी है तो उसका इलाज एक्सरसाइज और फोन व कंप्यूटर में कम से कम समय बिताकर किया जा सकता है।
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आंखों का टेढ़ापन है शारीरिक विकार