के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
ट्रांसइसोफेजिअल इकोकार्डिओग्राम दिल से संबंधित एक टेस्ट है। जिसका मुख्य उद्देश्य दिल के अंदर की स्थिति को जानना है। इकोकार्डिओग्राम को इको भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में उपकरण द्वारा इको को चित्र में बदला जाता है। जिससे डॉक्टर बीमारी को आसानी से समझ सकते हैं। इस उपकरण के सिरे पर ट्रांसड्यूसर लगा रहता है, जो उच्च आवृत्ति के ध्वनि को चित्र में बदलता है। जो दिल के विभिन्न अंगों में ध्वनि तरंगे पैदा करता है और इस जरिए मॉनिटर पर दिल के आंतरिक हिस्सों का चित्र दिखाई देता है।
इकोकार्डिओग्राम (Echocardiography) चार प्रकार के होते हैं :
ट्रांसइसोफेजिअल इकोकार्डिओग्राम (Transesophageal echocardiography) टेस्ट डॉक्टर दिल की दीवारों और इसोफोगस की जांच के लिए करते हैं। इससे पता लगाया जाता है कि दिल के पास फेफड़े और सीने की हड्डियों के कारण कहीं ब्लॉकेज तो नहीं है।
दिल से संबंधित एक या एक से अधिक समस्या होने से ट्रांसथोरैसिक इकोकार्डिओग्राम (Transesophageal echocardiography) की जाती है। इस टेस्ट से सिर्फ आपके दिल के चेंबर की जांच हो पाती है। इसके अलावा गर्भ में पल रहे शिशु में हार्ट डिफेक्ट को जानने के लिए भी होता है। जब ट्रांसथोरैसिक इकोकार्डिओग्राम स्पष्ट नहीं होता है तो ट्रांसइसोफेजिअल इकोकार्डिओग्राम करने के लिए कहा जाता है।
डॉक्टर आपको ट्रांसइसोफेजिअल इकोकार्डिओग्राम (Transesophageal echocardiography) तब कराने के लिए कहते हैं, जब :
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विशेषज्ञों के अनुसार, हर किसी को रूटीन चेकअप में हार्ट टेस्ट को शामिल करना जरूरी नहीं होता है। ट्रांसइसोफेजिअल इकोकार्डिओग्राम के अलावा अन्य विकल्प भी हैं :
ट्रांसइसोफेजिअल इकोकार्डिओग्राम (Transesophageal echocardiography) टेस्ट कराने से पहले आपको विशेष तैयारी की जरूरत पड़ती है। सबसे पहले टेस्ट कराने से कुछ घंटे पहले से आपको कुछ भी खाना पीना नहीं है। इसके बाद आपको आरामदायक जूते पहनने है ताकि टेस्ट के दौरान आपको ट्रेडमिल पर चलने में समस्या न हो। इसके अलावा आप टेस्ट कराने अपने परिजनों के साथ आएं। क्योंकि, टेस्ट के दौरान आपको बेहोशी या नींद की दवा दी जाती है।
ट्रांसइसोफेजिअल इकोकार्डिओग्राम (Transesophageal echocardiography) को करने में लगभग दो घंटे का समय लगता है। इसके लिए एक टेक्निशियन और उसके सहायक लोग लगते हैं। वहीं, अगर आप मोटे हैं या आपको फेफड़े से संबंधित कोई समस्या है, तो डॉक्टर आपको इंजेक्शन के जरिए कुछ मटेरियल देंगे, जिससे टेस्ट की रिपोर्ट आने में आसानी होगी। इसके बाद आपके मुंह में एक एंटीसेप्टिक स्प्रे दिया जाएगा। इसके बाद आपके हाथों में एक इंजेक्शन भी दिया जाएगा।
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान दवा लार और पेट में होने वाले स्रावण को घटाती है। वहीं, नींद की दवा इसलिए इंजेक्ट की जाती है, जिससे आपको टेस्ट के दौरान कोई समस्या न हो। इस प्रक्रिया के द्वारा आपकी हार्ट रेट (Heart rate), सांस लेने की दर, ब्लड प्रेशर (Blood pressure) और खून में ऑक्सिजन आदि की जांच की जाती है।
इसोफेगस की भी अगर जांच करनी है, तो आपको एक करवट लेटा कर आपके जीभ से होते हुए उपकरण को अंदर डालते हैं। इसके बाद इसोफेगस के अंदर का अल्ट्रासाउंड किया जाता है। इसके बाद यदि प्रक्रिया पूरी होने के बाद आपके सामान्य हो जाने के बाद घर जाने दिया जाता है।
ट्रांसइसोफेजिअल इकोकार्डिओग्राम के द्वारा अगर रिजल्ट अच्छा आ गया, तो डॉक्टर आपको कोई भी टेस्ट करवाने के लिए नहीं कहेंगे। लेकिन अगर रिपोर्ट असामान्य आती है, तो आपको सीटी स्कैन कराना पड़ सकता है। इसके बाद डॉक्टर समस्याओं को लेकर पूरी तरह से संतुष्ट होंगे और उसी के आधार पर इलाज करेंगे।
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टेस्ट करने के बाद टेक्नीशियन आपकी ट्रांसइसोफेजिअल इकोकार्डिओग्राम की रिपोर्ट को हृदय रोग (Heart problem) विशेषज्ञ यानी की आपके डॉक्टर को देंगे। जो निम्न प्रकार से हो सकती है :
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हार्ट चेंबर का आकार काफी बड़ा हो गया है। दिल की दीवारें मोटी या पतली हो गई हैं। दीवारें पतली होने से रक्त संचार सही से नहीं हो पाता है। दिल की मांसपेशियां सही तरीके से मूव नहीं कर रही है। एक या एक से अधिक वाल्व खुल या बंद नहीं हो पा रहे हैं। जो दिल में संक्रमण के कारण होता है। बाएं निलय (Ventricle) से ब्लड सामान्य तौर पर पंप नहीं हो पा रहा है। वहीं, दिल के आसपास की त्वचा मोटी हो गई है।
वहीं, बता दें कि ट्रांसइसोफेजिअल इकोकार्डिओग्राम की रिपोर्ट हॉस्पिटल और लैबोरेट्री के तरीकों पर निर्भर करती है। इसलिए आप अपने डॉक्टर से टेस्ट रिपोर्ट के बारे में अच्छे से समझ लें।
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