के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. हेमाक्षी जत्तानी · डेंटिस्ट्री · Consultant Orthodontist
ट्रिपल मार्कर स्क्रीन टेस्ट (Triple Marker Test) को ट्रिपल टेस्ट (Triple Test) के नाम से भी जानते है साथ ही कुछ और नाम भी प्रचलित है:
ट्रिपल टेस्ट इस बात की जांच पड़ताल करता है कि, किसी अजन्मे या अनबॉर्न बेबी में आनुवंशिक विकार के होने की कितनी संभावना है । टेस्ट के दौरान गर्भनाल में मौजूद तीन महत्वपूर्ण सबटेंस के हाई या लो लेवल की जांच की जाती है।
तीन महत्वपूर्ण सबटेंस :
ट्रिपल मार्कर टेस्ट एक खून सबंधी जांच है जिसे 15 से 20 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के दौरान किया जाता है इसके अलावा दूसरा टेस्ट क्वाडरुपल मार्कर स्क्रीन टेस्ट( Quadruple marker screen test ) है जो अवरोधक या ” हार्मोन” की जांच करता है ।
ट्रिप्ल मार्कर स्क्रीन टेस्ट संभावित माता-पिता को विकल्प तैयार करने और मूल्यांकन करने में मदद करता है। ये लोग डॉक्टर को प्रेग्नेंसी में आने वाली परेशानियों के लिए भ्रूण को बहुत बारीकी से देखने के लिए एलर्ट करते हैं।
ये टेस्ट आमतौर पर नीचे बताई महिलाओं को रिकमेंड किया जाता है:
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जैसा की हमने शुरुआत में चर्चा की ,
ट्रिपल मार्कर टेस्ट गर्भावस्था के पहले 15 से 22 हफ़्तों के दौरान किया जाना चाहिए लेकिन 16 से 18 वीक के बीच टेस्ट के सबसे बेहतर नतीजे प्राप्त होते हैं।
सबसे जरूरी बात ये है कि आप अपने डॉक्टर को सही जानकारी दे, क्योंकि आधी अधूरी जानकारी या गलत सूचना आपके टेस्ट रिजल्ट को प्रभावित कर सकती है । खैर, टेस्ट के दौरान जच्चा बच्चा के स्वास्थ्य के लिए कोई जोखिम की बात नही है, क्योंकि टेस्ट के दौरान रक्त की बहुत ही कम मात्रा का इस्तेमाल किया जाता है ।
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टेस्ट के दौरान किसी खास तैयारी की जरूरत नहीं होती है साथ ही खाने पीने सबंधी किसी तरह की कोई रोक टोक भी नहीं है ।
टेस्ट के बाद किसी भी तरह की विशेष देखभाल की जरूरत नहीं है । आप अपना डेली रूटीन और वर्क फॉलो कर सकते है जब तक कि डॉक्टर आपको कोई सलाह ना दे ।
यदि आपके मन में ट्रिपल मार्कर टेस्ट के विषय में कोई सवाल हैं, तो कृपया अपने डॉक्टर से मिले वह आपको बेहतर निर्देश देंगे ।
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ट्रिपल मार्कर स्क्रीन टेस्ट शरीर से ब्लड सैंपल जमा करता है और एफपी, एचसीजी, एस्ट्रिंऑल (Estriol) लेवल की जांच करता है ।
एएफपी: भ्रूण द्वारा निर्मित एक प्रोटीन होता है जिसका हाई लेवल कुछ संभावित दोषों या लक्षणों को पॉइंट आउट करता है, जैसे कि न्यूरल ट्यूब दोष या भ्रूण के पेट बंद होने में दिक्कत आना ।
एचजीसी: गृभ नाल द्वारा निर्मित एक हार्मोन होता है जिसका लो लेवल गर्भावस्था की संभावित समस्याओं का संकेत देता है जैसे, पॉसिबल मिसकैरेज, या ऑक्सीडेंडल मिसकैरेज । एचजीसी का हाई लेवल, मोलर प्रेग्नेंसी या दो या दो से अधिक बच्चों के पैदा होने का संकेत दे सकता है.
एस्ट्रिऑल: एक एस्ट्रोजन, जो भ्रूण और गर्भ नाल दोनों से आता है। एस्ट्रिओल का लो लेवल डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे के पैदा होने की तरफ इशारा करता है, खासकर तब, जबकि लो एएफपी लेवल और हाई एचजीसी लेवल को एक साथ जोड़ा जाता है।
यदि इन तीनों तत्वों में से किसी का एबनॉर्मल लेवल पाया जाता है तो इससे निम्नलिखित परेशानी की संभावना होती है:
न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट जैसे स्पाइना बिफिडा और एनेसेफेली (bifida and anencephaly)
मल्टीपल प्रेग्नेंसी जैसे ट्विनस या ट्रिप्लेट्स (multiple infants, such as twins or triplets)
ट्रिपल मार्कर स्क्रीन टेस्ट शिशु के आनुवंशिक या जेनेटिक विकार जैसे डाउन सिंड्रोम, मेरुदंड या रीढ़ की समस्या होने की संभावना की तरफ इशारा करते है । ध्यान दे कि ये टेस्ट 100 प्रतिशत परिणाम का दावा नहीं करते । ये केवल उन संभावनाओं के संकेत देते है और दूसरे मेडिकल टेस्ट के लिए आपको आगाह करते है ।
डॉक्टर्स अक्सर उन दूसरे कारको का भी पता लगाने की कोशिश करते हैं जो टेस्ट के रिजल्ट को प्रभावित कर सकते हैं जैसे,
अस्पतालों और लैब की स्थिति के हिसाब में ट्रिपल मार्कर टेस्ट (Triple Marker Test) की रेंज भिन्न भिन्न हो सकती है । ट्रिपल मार्कर टेस्ट रिजल्ट के विषय मे जो भी आपके सवाल हो कृपया अपने डॉक्टर से सलाह करे ।
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हम आशा करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। हैलो हेल्थ के इस आर्टिकल में ट्रिपल मार्कर स्क्रीन टेस्ट से जुड़ी ज्यादातर जानकारी देने की कोशिश की है, जो आपके काफी काम आ सकती हैं। ट्रिपल मार्कर स्क्रीन टेस्ट से जुड़ी यदि आप अन्य जानकारी चाहते हैं तो आप हमसे कमेंट कर पूछ सकते हैं।
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