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सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में क्या है अंतर?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


AnuSharma द्वारा लिखित · अपडेटेड 21/02/2022

    सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में क्या है अंतर?

    हार्ट फेलियर तब होता है जब हमारा हार्ट शरीर की जरूरत के अनुसार पर्याप्त ब्लड पंप नहीं कर पाता है। इसे ऐसी स्थिति भी कहा जा सकता है, जब हार्ट पर्याप्त ब्लड फिल-अप नहीं कर पाता है, लेकिन हार्ट फेलियर का यह अर्थ नहीं है कि हार्ट ने काम करना बंद कर दिया है। हार्ट के लेफ्ट वेंट्रिकल ventricle से जुड़ा हार्ट फेलियर सिस्टोलिक या डायस्टोलिक हो सकता है। यानी हार्ट फेलियर के दो प्रकार होते हैं सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure)। आज हम बात करेंगे सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure) के बारे में। लेकिन, सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure) के बारे में जानने से पहले यह जान लेते हैं कि यह दोनों कंडिशंस क्या हैं?

    सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर क्या हैं? (Systolic And Diastolic Heart Failure)

    लेफ्ट वेंट्रिकल हार्ट के चार चैम्बर्स में से एक है। इसका फंक्शन है शरीर में ऑक्सीजन युक्त ब्लड को पंप करना। लेफ्ट साइड या लेफ्ट वेंट्रिकुलर हार्ट फेलियर ब्लड की मात्रा को कम कर देती है, जो लेफ्ट  वेंट्रिकल में पंप कर सकता है। लेफ्ट साइड हार्ट फेलियर सिस्टोलिक और डायस्टोलिक में से कोई भी हो सकता है। यह निर्भर करता है कि यह समस्या हार्टबीट्स के बीच में या इस दौरान होती है या नहीं। यह टाइमिंग इस बात पर भी निर्भर करती है कि समस्या हार्ट की पम्पिंग में है या इसके रिलैक्सिंग फंक्शन में। सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure) से पहले आइए जानें किसे कहते हैं सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर?

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    सिस्टोलिक हार्ट फेलियर (Systolic heart failure)

    सिस्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) तब होता है, जब लेफ्ट वेंट्रिकल हार्टबीट्स के साथ स्ट्रांगली कॉन्ट्रेक्ट

    करने में सक्षम नहीं होता है। लेफ्ट वेंट्रिकल के हरेक कंट्रक्शन के साथ, हार्ट ऑक्सीजन युक्त ब्लड को बाहर और शरीर में पंप करता है। अगर लेफ्ट वेंट्रिकल पूरी तरह से कॉन्ट्रेक्ट करने में सक्षम नहीं होता है, तो शरीर जरूरी ऑक्सीजन की मात्रा नहीं प्राप्त कर पाता। ऑक्सीजन की अपर्याप्त सप्लाई के कारण न केवल कई समस्याएं हो सकती हैं बल्कि ऑर्गन डिसफंक्शन की संभावना भी बढ़ जाती है। सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure) से पहले डायस्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) क्या है जानिए।

    डायस्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic heart failure)

    डायस्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) की समस्या तब होती है, जब लेफ्ट वेंट्रिकल हार्टबीट्स के बीच में सही से रिलेक्स नहीं कर पाती हैं। लेफ्ट वेंट्रिकल हार्टबीट्स के बीच ऑक्सीजन युक्त ब्लड से भरता है। फिर हार्टबीट के दौरान शरीर के चारों ओर ब्लड पंप करता है, जिसे सिस्टोल भी कहा जाता है। अगर लेफ्ट वेंट्रिकल पूरी तरह से रिलेक्स नहीं होता है, तो यह शरीर के लिए जरूरी ब्लड की मात्रा को होल्ड नहीं कर पाता है। हार्ट चैम्बर्स के भीतर हाय प्रेशर भी पैदा हो सकता है और बदले में, फेफड़ों में दबाव बढ़ा सकता है।

    उम्मीद है कि सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure) के बारे में यह इंफॉर्मेशन आपको पसंद आ रही होगी। अब जानते हैं सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) के निदान के बारे में।

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    सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure): कैसे होता है इनका निदान?

    डॉक्टर सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) के निदान के लिए कई टेस्ट टेस्ट की सलाह दे सकते हैं। आइए, जानते हैं कि इनका निदान किस प्रकार हो सकता है?

    सिस्टोलिक हार्ट फेलियर का निदान (Systolic heart failure diagnosis)

    डॉक्टर सिस्टोलिक हार्ट फेलियर को इजेक्शन फ्रैक्शन (Ejection fraction) की कमी वाला हार्ट फेलियर मानते हैं। इजेक्शन फ्रैक्शन इस बात का माप है कि लेफ्ट वेंट्रिकल हर बार सिकुड़ने पर कितना ब्लड पंप करता है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (American Heart Association) के अनुसार सामान्यतया हार्ट का इजेक्शन फ्रैक्शन 50% और 70%, के बीच में होता है। लेकिन, जिन लोगों को सिस्टोलिक हार्ट फेलियर (Systolic heart failure) की समस्या होती है, उनमें इजेक्शन फ्रैक्शन 40 प्रतिशत से कम हो सकता है। इस समस्या के निदान के लिए डॉक्टर इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram) का इस्तेमाल करते हैं। ताकि, रोगी की इजेक्शन फ्रैक्शन परसेंटेज को चेक किया जा सके। सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure) में अब जानें डायस्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) के निदान के बारे में।

    सिस्टोलिक और डायास्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर, Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure
    सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर, Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure

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    डायस्टोलिक हार्ट फेलियर का निदान (Diastolic heart failure diagnosis)

    इस हार्ट फेलियर को डॉक्टर प्रीजर्व्ड इजेक्शन फ्रैक्शन (preserved ejection fraction) वाला हार्ट फेलियर कहते हैं। इस समस्या से पीड़ित रोगी का इजेक्शन फ्रैक्शन सामान्य हो सकता है। इसमें लेफ्ट वेंट्रिकल स्टिफ और थिक हो सकता है, जिससे हार्ट में दबाव बढ़ जाता है। इसका अर्थ है कि यह सामान्य से कम मात्रा में ब्लड होल्ड कर सकता है। हालांकि, यह थिक लेफ्ट वेंट्रिकल अभी भी ब्लड को सामान्य रूप से पंप कर सकता है। इसके लिए भी डॉक्टर इकोकार्डियोग्राम की सलाह दे सकते हैं। इसका इस्तेमाल रोगी के लेफ्ट वेंट्रिकल की थिकनेस को जांचने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही डॉक्टर कार्डियक MRI भी करा सकते हैंसिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure) में अब जानते हैं इनके उपचार के बारे में।

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    सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर का उपचार (Systolic And Diastolic Heart Failure Treatment)

    इन दोनों हार्ट फेलियर के उपचार के लिए कई ट्रीटमेंट ऑप्शन मौजूद हैं। आइए, जानें इनके बारे में:

    सिस्टोलिक हार्ट फेलियर (Systolic heart failure) के लिए दवाइयां (Medications)

    सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure) में यह जाना आवश्यक है कि इन दोनों स्थितियों में कौन सी दवा दी जा सकती है। सिस्टोलिक हार्ट फेलियर (Systolic heart failure) के उपचार के लिए डॉक्टर कई दवाइयों की सलाह दे सकते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

    कुछ लोगों में इस दवाईयों के कॉम्बिनेशन को भी प्रभावी माना जाता है। इस कॉम्बिनेशंस से रोगियों में डेथ रेट में कमी पाई गई है।

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    डायस्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) के लिए दवाइयां (Medications)

    डॉक्टर डायस्टोलिक हार्ट फेलियर के उपचार के लिए भी उन्ही दवाइयों की सलाह देते हैं, जो सिस्टोलिक हार्ट फेलियर की स्थिति में दी जाती हैं। हालांकि इस तरह के हार्ट फेलियर के बारे में पर्याप्त स्टडी नहीं की गई है। ऐसे में डॉक्टर इस बारे में सही से नहीं बता पाते हैं कि इस कंडिशन में सबसे प्रभावी ट्रीटमेंट कौन सा है। सामान्य रूप से इस हार्ट फेलियर का उपचार इन दवाइयों से किया जा सकता है:

    • दवाईयां जो ब्लड वेसल्स को रिलैक्स और वाइड करती हैं। इसमें कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स (Calcium channel blockers), एंजियोटेंसिन II रिसेप्टर ब्लॉकर्स (Angiotensin II Receptor Blocker), बीटा ब्लॉकर्स (Beta-blockers) या लॉन्ग-एक्टिंग नाइट्रेट्स (Long-acting nitrates) आदि शामिल हैं। इसमें वेसोडायलेटर (Vasodilator) को भी शामिल किया जा सकता है।
    • फ्लूइड-बिल्ड-अप को कम करने के लिए दवाइयां, ताकि अतिरिक्त फ्लूइड को कम किया जा सकता है।
    • अन्य स्थितियों को कंट्रोल करने के लिए दवाइयां दी जा सकती हैं। इस ट्रीटमेंट का फोकस अन्य कंडिशंस में मैनेज करना शामिल है जैसे हाय ब्लड प्रेशर।

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    सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure): लेफ्ट-साइडेड हार्ट फेलियर के लिए अन्य उपचार

    हालांकि दोनों प्रकार की हार्ट फेलियर से संकेत मिलता है कि हार्ट अपना काम करने में सक्षम नहीं है, ऐसे में उपचार के अन्य तरीके भी इस्तेमाल किये जा सकते हैं। सिस्टोलिक हार्ट फेलियर (Systolic heart failure) और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) दोनों में इन ट्रीटमेंट के लिए कहा जा सकता है:

    इम्प्लांटेड डिवाइसेस (Implanted devices): लेफ्ट-साइडेड हार्ट फेलियर से पीड़ित कुछ लोगों में एक डिवाइस जिसे सर्जिकली इम्प्लांट किया जाता है, हार्ट फंक्शन में सुधार करता है।

    इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (Implantable cardioverter defibrillator): अगर आपको हार्ट फेलियर और इर्रेगुलर हार्ट बीट्स की समस्या है, तो जब हार्टबीट रेगुलर न हो, तो हार्ट को शॉक दिया जाता है। इससे हार्ट को सही से बीट होने में मदद मिलती है।

    कार्डिएक रीसिंक्रनाइजेशन थेरेपी (Cardiac resynchronization therapy): इस उपचार में पेसमेकर का प्रयोग किया जाता हैयह खास पेसमेकर है ,जो आपके हार्ट के वेंट्रिकल को सामान्य रूप से और सही रिदम में कॉन्ट्रैक्ट करने में सहायता करता है।

    लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (Left ventricular assist device): इस पंप जैसे डिवाइस को अक्सर ट्रांसप्लांट का ब्रिज कहा जाता है। यह लेफ्ट वेंट्रिकल को इसका काम करने में मदद करता है।

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    सर्जरी (Surgery)

    कुछ मामलों में लेफ्ट साइडेड हार्ट फेलियर में सर्जरी की सलाह भी दी जा सकती है। दो तरह की मुख्य सर्जरीज हैं:

    करेक्टिव सर्जरी (Corrective surgery).अगर रोगी के दिल की कोई फिजिकल प्रॉब्लम, हार्ट फेलियर का कारण बन रही है या इसे और खराब कर रही है, तो रोगी इसे ठीक करने के लिए सर्जरी करवा सकते हैं।

    ट्रांसप्लांट (Transplant).अगर हार्ट फेलियर बहुत गंभीर हो चुका हो, तो रोगी को डोनर से एक नए हार्ट की जरूरत हो सकती है। सर्जरी के बाद, उन्हें दवाइयों की सलाह भी दी जा सकती है ताकि उनका शरीर नए हार्ट को रिजेक्ट न कर दे।

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    यह तो थी जानकारी सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure) के बारे में। अगर आपमें हार्ट फेलियर का निदान हुआ है तो डॉक्टर से बात करें कि आपको कौन से प्रकार का हार्ट फेलियर है। हार्ट फेलियर के प्रकार के बारे में समझने के बाद इसके उपचार के सही विकल्पों को जानने में मदद हो सकती है। डॉक्टर की सलाह का पूरी तरह से पालन करें, ताकि कॉम्प्लीकेशन्स के जोखिम को कम किया जा सके और कंडिशन को मैनेज किया जा सके।

    डिस्क्लेमर

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