इम्प्लांटेड डिवाइसेस (Implanted devices): लेफ्ट-साइडेड हार्ट फेलियर से पीड़ित कुछ लोगों में एक डिवाइस जिसे सर्जिकली इम्प्लांट किया जाता है, हार्ट फंक्शन में सुधार करता है।
इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (Implantable cardioverter defibrillator): अगर आपको हार्ट फेलियर और इर्रेगुलर हार्ट बीट्स की समस्या है, तो जब हार्टबीट रेगुलर न हो, तो हार्ट को शॉक दिया जाता है। इससे हार्ट को सही से बीट होने में मदद मिलती है।
कार्डिएक रीसिंक्रनाइजेशन थेरेपी (Cardiac resynchronization therapy): इस उपचार में पेसमेकर का प्रयोग किया जाता है। यह खास पेसमेकर है ,जो आपके हार्ट के वेंट्रिकल को सामान्य रूप से और सही रिदम में कॉन्ट्रैक्ट करने में सहायता करता है।
लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (Left ventricular assist device): इस पंप जैसे डिवाइस को अक्सर ट्रांसप्लांट का ब्रिज कहा जाता है। यह लेफ्ट वेंट्रिकल को इसका काम करने में मदद करता है।
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सर्जरी (Surgery)
कुछ मामलों में लेफ्ट साइडेड हार्ट फेलियर में सर्जरी की सलाह भी दी जा सकती है। दो तरह की मुख्य सर्जरीज हैं:
करेक्टिव सर्जरी (Corrective surgery).अगर रोगी के दिल की कोई फिजिकल प्रॉब्लम, हार्ट फेलियर का कारण बन रही है या इसे और खराब कर रही है, तो रोगी इसे ठीक करने के लिए सर्जरी करवा सकते हैं।
ट्रांसप्लांट (Transplant).अगर हार्ट फेलियर बहुत गंभीर हो चुका हो, तो रोगी को डोनर से एक नए हार्ट की जरूरत हो सकती है। सर्जरी के बाद, उन्हें दवाइयों की सलाह भी दी जा सकती है ताकि उनका शरीर नए हार्ट को रिजेक्ट न कर दे।
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यह तो थी जानकारी सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हार्ट फेलियर में अंतर (Difference Between Systolic And Diastolic Heart Failure) के बारे में। अगर आपमें हार्ट फेलियर का निदान हुआ है तो डॉक्टर से बात करें कि आपको कौन से प्रकार का हार्ट फेलियर है। हार्ट फेलियर के प्रकार के बारे में समझने के बाद इसके उपचार के सही विकल्पों को जानने में मदद हो सकती है। डॉक्टर की सलाह का पूरी तरह से पालन करें, ताकि कॉम्प्लीकेशन्स के जोखिम को कम किया जा सके और कंडिशन को मैनेज किया जा सके।