एओर्टिक वॉल्व डिजीज (Aortic Valve Disease) एक ऐसी कंडिशन है जिसमें हार्ट का मुख्य पंपिंग चैम्बर (left ventricle) और बॉडी की मुख्य आर्टरी (Aorta) ठीक से काम नहीं करते। एओर्टिक वॉल्व डिजीज कंडिशन जन्मजात या दूसरों कारणों के चलते भी हो सकती है। एओर्टिक वॉल्व डिजीज कौन सी हैं इनके लक्षण और इलाज क्या हैं। इस आर्टिकल में विस्तार से बताया गया है। पहले जान लेते हैं इनके प्रकार के बारे में। अओर्टिक वॉल्व डिजीज दो प्रकार की हो सकती हैं।
एओर्टिक वॉल्व स्टेनोसिस (Aortic valve stenosis)
इस कंडिशन में एओर्टिक वाॅल्व का फ्लैप्स मोटे और सख्त हो जाते हैं। वे एक दूसरे से जुड़ भी सकते हैं। जिसके कारण एओर्टिक वॉल्व की ओपनिंग संकरी हो जाती है। संकरे वॉल्व पूरी तरह से ओपन नहीं हो पाते हैं जिसकी वजह से हार्ट के जरिए एओर्टा तक जाने वाला ब्लड फ्लो ब्लॉक या फिर कम हो जाता है।
एओर्टिक वॉल्व रिगर्जिटेशन (Aortic valve regurgitation)
इस कंडिशन में एओर्टिक वॉल्व ठीक से बंद नहीं होते हैं। जिसके कारण ब्लड लेफ्ट वेंट्रिकल के पीछे की तरफ बहना शुरू कर देता है। एओर्टिक वॉल्व डिजीज (Aortic Valve Disease) का इलाज इसके प्रकार और बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करता है। कुछ मामलों में एओर्टिक वॉल्व को रिप्लेस करने के लिए सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। चलिए पहले इन बीमारियों के लक्षणों पर नजर डाल लें।
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एओर्टिक वॉल्व डिजीज के लक्षण (Aortic Valve Disease symptoms)
कुछ लोगो में कई सालों तक एओर्टिक वॉल्व डिजीज (Aortic Valve Disease) के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। एओर्टिक वॉल्व डिजीज के लक्षणों में निम्न शामिल हो सकते हैं।
- स्टेथोस्कोप लगाने पर आसामान्य हार्ट साउंड सुनाई देना।
- सांस लेने में कठिनाई खासतौर पर जब आप बहुत एक्टिव हो या लेते हों
- चक्कर आना
- बेहोशी
- सीने में दर्द या जकड़न
- असामान्य दिल की धड़कन
- एक्टिव रहने के बाद थकान लगना या फिजिकल एक्टिविटी में असमर्थ होना
- पर्याप्त मात्रा में खाने में समर्थ होना ऐसा खासकर बच्चों में देखा जाता है
- वजन का ना बढ़ना ऐसा खासकर उन बच्चों में देखा जाता है जो एओर्टिक वॉल्व डिजीज (Aortic Valve Disease) से पीड़ित होते हैं।
अगर हार्ट मर्मर की पेरशानी है तो डॉक्टर कार्डियोलॉजिस्ट के पास जाने के लिए कह सकते हैं। डॉक्टर इसके लिए इकोकार्डियोग्राम echocardiogram करने की सलाह भी दे सकते हैं। अगर आपको ऊपर दिए गए लक्षण दिखाई देते हैं तो डॉक्टर से संपर्क करें।
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एओर्टिक वॉल्व डिजीज के कारण Aortic Valve Disease Causes
हमारे हार्ट में चार वॉल्व होते हैं जो ब्लड फ्लो को सही दिशा में रखते हैं। इन वॉल्व में मिट्रल वॉल्व (Mitral valve), टायकप्सिड वॉल्व (Tricuspid valve), पल्मोनरी वॉल्व (Pulmonary valve) और एओर्टिक वॉल्व (Aortic valve)। इन सभी वॉल्व में फ्लैप्स होते हैं जो जब हृदय धड़कता है तो खुलते और बंद होते हैं। कई बार ये वॉल्व ठीक से ना तो खुलते हैं और ना ही बंद होते हैं। जिससे हार्ट में जाने वाले ब्लड का फ्लो बिगड़ जाता है। जिससे हार्ट की बॉडी में ब्लड पंप करने की क्षमता प्रभावित होती है।
एओर्टिक वॉल्व डिजीज (Aortic Valve Disease) में लोअर हार्ट चैम्बर (Left ventricle) और मुख्य आर्टरी (जो कि हार्ट से ब्लड को बॉडी में भेजती है के) बीच का एओर्टिक वॉल्व ठीक से काम नहीं करता। यह ठीक तरह से बंद नहीं होता है और महाधमनी से बाएं वेंट्रिकल में रक्त का रिसाव पीछे की ओर होता है। जिसे एओर्टिक वॉल्व रिगर्जिटेशन (Aortic valve regurgitation) कहा जाता है। इसके अलावा एक स्थिति और होती है जिसमें वॉल्व नैरो हो जाता है जिसे एओर्टिक वॉल्व स्टेनोसिस (Aortic valve stenosis) कहा जाता है।
एओर्टिक वॉल्व डिजीज के रिस्क फैक्टर्स (Aortic valve disease risk factors)
एओर्टिक वॉल्व डिजीज (Aortic Valve Disease) के रिस्क फैक्टर्स निम्न हैं।
- उम्र का अधिक होना
- जम्नजात होने वाली हार्ट कंडिशन्स
- हार्ट इंफेक्शन की हिस्ट्री होना
- क्रोनिक किडनी डिजीज
- रेडिएशन थेरिपी की हिस्ट्री
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एओर्टिक वॉल्व डिजीज के कॉम्प्लिकेशन (Aortic valve disease complication)
एओर्टिक वॉल्व डिजीज (Aortic Valve Disease) के कॉम्प्लिकेशन में निम्न शामिल है।
- हार्ट फैल्योर (Heart failure)
- स्ट्रोक (Stroke)
- ब्लड क्लॉट्स (Blood clots)
- हार्ट रिदम एब्नॉर्मलिटीज (Heart rhythm abnormalities)
एओर्टिक वॉल्व डिजीज का पता कैसे लगाया जाता है? (Aortic Valve Disease diagnosis)
दोनों प्रकार की एओर्टिक वॉल्व डिजीज (Aortic Valve Disease) का पता समान तरीके से लगाया जाता है। डॉक्टर आपकी और परिवार की हेल्थ हिस्ट्री के बारे में सवाल करेगा। इसके बाद वह निम्न टेस्ट करने की सलाह दे सकता है।
- इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (Electrocardiogram) कराने के लिए कह सकता है यह एक प्रकार का टेस्ट है जिसमें हार्ट से जाने वाली इलेक्ट्रिकल इंप्लसेज को मापा जाता है। ताकि हार्ट रिदम के बारे में जानकारी हासिल की जा सके।
- इसके अलावा एक्सरसाइज टेस्ट के जरिए ये पता लगाने की कोशिश की जाती है कि हार्ट एक्सरसाइज के प्रति कैसे रिस्पॉन्ड करता है।
- इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram) एक ऐसा टेस्ट है जिसमें साउंड वेव्स का यूज करके हार्ट और एओर्टिक वॉल्व की इमेज क्रिएट की जाती है। यह टेस्ट भी कराने के लिए भी कहा जा सकता है।
- एओर्टिक वॉल्व डिजीज (Aortic Valve Disease) का पता लगाने के लिए चेस्ट एक्सरे भी किया जाता है।
ये टेस्ट भी किए जा सकते हैं
अगर ऊपर बताए गए टेस्ट से डॉक्टर संतुष्ट नहीं होते हैं तो वे कार्डिएक कैथेटेराइजेशन (Cardiac catheterization) भी सजेस्ट कर सकते हैं। इस प्रॉसेस में लीकी हार्ट वॉल्व को हाईलाइट करने के लिए डाई का यूज किया जाता है। डाय को वेन के जरिए इंजेक्ट किया जाता है। इसके बाद ट्रेक और मॉनिटर किया जाता है। एओर्टिक वॉल्व डिजीज का पता लगाने के लिए डॉक्टर कार्डिएक मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग टेस्ट (Cardiac magnetic resonance imaging test) कराने की सलाह भी दे सकते हैं। जिसमें मेग्नेंटिक फील्ड और रेडियो वेव्स का उपयोग करके हार्ट और एओर्टिक रूट की डिटेल्ड पिक्चर्स ली जाती हैं।
कार्डिएक कम्प्यूटराइज्ड टोमोग्राफी स्कैन (Cardiac computerized tomography scan) का यूज करके एओर्टिक वॉल्व और एओर्टा के साइज को इमेजिंग टेक्निक की मदद से नजदीक से मेजर किया जाता है।
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एओर्टिक वॉल्व डिजीज का इलाज कैसे किया जाता है? (Aortic Valve Disease treatment)
अभी एओर्टिक रिगर्जिटेशन (Aortic regurgitation) और एओर्टिक स्टेनोसिस के इलाज के लिए कोई दवा उपलब्ध नहीं है, लेकिन डॉक्टर उन दवाओं को प्रिस्क्राइब कर सकता है जो बीमारी के प्रभाव को कम कर सकती हैं।
मेडिकेशन (Medication)
एओर्टिक रिगर्जिटेशन (Aortic regurgitation) के इलाज के लिए दवाओं का उपयोग ब्लड प्रेशर को कम करने और फ्लूइड के बिल्ड अप को रोकने के लिए किया जाता है। अगर एओर्टिक स्टेनोसिस से पीड़ित हैं तो दवाओं का उपयोग करके हार्ट रिदम के डिस्ट्रर्बेंस को रोक सकता है। बीटा और कैल्शियम ब्लॉकर्स दवाओं का उपयोग एंजाइना में मदद कर सकती हैं। कोलेस्ट्रॉल के लेवल को कम करने के लिए भी डॉक्टर दवाएं रिकमंड कर सकते हैं।
सर्जरी (Surgery)
एओर्टिक वॉल्व डिजीज (Aortic Valve Disease) का इलाज करने के कई सर्जिकल तरीके हैं जिसमें से सबसे कॉमन और प्रभावी तरीका एओर्टिक वॉल्व रिप्लसेमेंट है। इस प्रॉसेस में सर्जन डैमेज्ड वॉल्व को रिमूव करके नया वॉल्व लगा देते हैं। इसके अलावा सर्जन मेकेनिकल वॉल्व भी लगा सकते हैं, जो मेटल का बना होता है और कड़ा होता है। यह हार्ट में ब्लड क्लॉट्स के रिस्क को बढ़ा सकता है। इस प्रॉसीजर के बाद इस कंडिशन के परमानेंट मैनेजमेंट के लिए एंटीकोआगुलेंट्स दवाएं (Anticoagulant drugs) लेनी पड़ सकती हैं।
वॉल्व को रिप्लेस करने की जगह सर्जन वॉल्व को रिपेयर करने का तरीका भी अपना सकता है जिसे वॉल्वूलोप्लास्टी (Valvuloplasty) कहा जाता है। इस प्रॉसीजर में लंबे समय तक दवाओं का उपयोग नहीं करना पड़ता। बच्चों के लिए बैलून वॉल्वोप्लास्टी (Balloon valvuloplasty) की जाती है।
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एओर्टिक वॉल्व डिजीज से कैसे बचें? (How to Prevent Aortic Valve Disease)
आप एओर्टिक वॉल्व डिजीज की संभावनाओं को कम करने के लिए कदम उठा सकते हैं। एओर्टिक वॉल्व डिजीज (Aortic Valve Disease) के जोखिम को कम करने के लिए, आपको निम्नलिखित प्रयास करने चाहिए:
- यदि आपके गले में खराश है, तो आप यह सुनिश्चित करने के लिए अपने डॉक्टर से जांच करवाएं कि कहीं यह स्ट्रेप थ्रोट तो नहीं है। स्ट्रेप थ्रोट ऐसी कंडिशन है जो दिल को नुकसान पहुंचा सकती है।
- दांतों और मसूड़ों का अच्छी तरह से ख्याल रखें। इससे ब्लडस्ट्रीम में इंफेक्शन होने की आशंका कम हो जाती है जो एंडोकार्डिटिस का कारण बनता है।
- हाय कोलेस्ट्रॉल और हाय ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखने के लिए डॉक्टर से मिलें। ये दोनों कंडिशन एओर्टिक हार्ट वॉल्व डिजीज से संबंधित हैं।
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