हमारे हार्ट में चार वॉल्व होते हैं, जो खून को सही दिशा में फ्लो करने में मदद करते हैं। इन्हीं वॉल्व्स में से एक है माइट्रल वॉल्व। हर वॉल्व के फ्लैप्स होते हैं, जो हर हार्टबीट के साथ बंद होते और खुलते हैं। कई बार यह वॉल्व सही से खुल या बंद नहीं हो पाते हैं। माइट्रल वॉल्व डिजीज (Mitral Valve Disease) में, लेफ्ट हार्ट चैम्बर और लोअर हार्ट चैम्बर के बीच के माइट्रल वॉल्व सही से काम नहीं करता है। यह सही से काम नहीं कर पाता है, जिससे ब्लड बैकवार्ड लीक करता है या वॉल्व तंग हो सकता है। माइट्रल वॉल्व डिजीज (Mitral Valve Disease) के कई कारण हो सकते हैं।
कई बार यह हार्ट डिजीज जन्म के समय भी पैदा हो सकती हैं। रूमेटिक फीवर (Rheumatic fever) माइट्रल वॉल्व डिजीज के प्रकार जैसे माइट्रल वॉल्व स्टेनोसिस (Mitral valve stenosis) का कारण हो सकता है, जो हार्ट को प्रभावित करता है। अब जानिए इसके रिस्क फैक्टर्स के बारे में।

रिस्क फैक्टर
माइट्रल वॉल्व डिजीज (Mitral Valve Disease) के कुछ रिस्क फैक्टर इस समस्या को बहुत अधिक बढ़ा सकते हैं, यह रिस्क फैक्टर इस प्रकार हैं:
- उम्र का बढ़ना (Older age)
- कुछ ऐसे इंफेक्शंस की हिस्ट्री होना, जो हार्ट को प्रभावित करें (History of certain infections)
- हार्ट डिजीज या हार्ट अटैक की खास फॉर्म की हिस्ट्री होना (History of certain forms of heart disease or heart attack)
- कुछ खास ड्रग्स के प्रयोग की हिस्ट्री (History of use of certain drugs)
- जन्मजात हृदय दोष (Congenital heart disease)
इन रिस्क फैक्टर्स के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर की सलाह लें। अब जानिए किस तरह से संभव है इसका निदान?
और पढ़ें : कंजेस्टिव हार्ट फेलियर ट्रीटमेंट के लिए अपनाए जाते हैं यह तरीके
माइट्रल वॉल्व डिजीज का निदान कैसे किया जा सकता है? (Diagnosis of Mitral Valve Disease)
माइट्रल वॉल्व डिजीज (Mitral Valve Disease) के निदान के लिए डॉक्टर सबसे पहले रोगी से लक्षणों के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही रोगी की शारीरिक जांच भी की जाती है। रोगी की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में जानना भी जरुरी है। अगर डॉक्टर को यह संदेह हो कि रोगी को माइट्रल वॉल्व डिजीज (Mitral Valve Disease) है, तो वो स्टेथोस्कोप की मदद से उसकी हार्टबीट को सुनते हैं। हार्ट की असामान्य साउंड और रिदम पैटर्न्स इसके निदान में डॉक्टर की मदद कर सकते हैं। इसके साथ ही डॉक्टर कुछ अन्य टेस्ट्स की सलाह भी दे सकते हैं। यह टेस्ट इस प्रकार हैं:
- इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram): इस टेस्ट में अल्ट्रासाउंड वेव्स का प्रयोग किया जाता है, ताकि हार्ट के स्ट्रक्चर और फंक्शन की इमेज बनाई जा सके।
- एक्स रे (X-ray): यह एक सामान्य टेस्ट है, जिसकी मदद से हार्ट की तस्वीर कंप्यूटर या फिल्म पर बनाई जाती है।
- ट्रांसइसोफेजियल इकोकार्डियोग्राम (Transesophageal Echocardiogram): इस टेस्ट से ट्रेडिशनल इकोकार्डियोग्राम की तुलना में हार्ट की अधिक डिटेल्ड इमेज बनाई जा सकती है।
- कार्डिएक कैथेटेराइजेशन (Cardiac catheterization): यह प्रक्रिया से डॉक्टर कई तरह के टेस्ट कर सकते हैं, जिसमें हार्ट के ब्लड वेसल की इमेज प्राप्त करना शामिल है।
- इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (Electrocardiogram): इस टेस्ट हार्ट की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को रिकॉर्ड किया जा सकता है।
- हॉल्टर मॉनिटरिंग (Holter monitoring): यह एक पोर्टेबल मॉनिटरिंग डिवाइस है जो हार्ट की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को समय के साथ रिकॉर्ड करता है, आमतौर पर 24 से 48 घंटे के भीतर।
- स्ट्रेस टेस्ट (Stress tests) : जब आप व्यायाम करते हैं, तो आपके डॉक्टर इस टेस्ट के माध्यम से यह जांचते हैं कि आपका दिल फिजिकल स्ट्रेस के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करता है। इसके लिए रोगी को ट्रेडमील पर दौड़ना पड़ सकता है या रोगी की हार्ट एक्टिविटी को बढ़ाने के लिए उसे दवाईयां भी दी जा सकती हैं।