सर्जरी
कई मामलों में दवाएं काम नहीं करती हैं ऐसे में डॉक्टर को सर्जरी करनी पड़ती है। डॉक्टर आपकी धमनियों से रक्त का थक्का हटाने के लिए सर्जरी कर सकता है। यह एक कैथेटर के साथ किया जा सकता है। यदि थक्का काफी बड़ा है तो सर्जरी के बिना उसे खत्म करना आसान नहीं होगा।
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दवाएं
इस्केमिक स्ट्रोक को ठीक करने के लिए दवाओं का प्रयोग किया जाता है। वहीं अगर आपको हीमोरेजिक यानी रक्तस्रावी स्ट्रोक है तो इसका उपचार करने के लिए खून का थक्का बनाना पड़ता है। हीमोरेजिक स्ट्रोक उसे कहते हैं जब दिमाग में रक्तस्त्राव होने लगता है। इसे रोकने के लिए अगर तरह का इलाज किया जाता है। ऐसी दवाएं भी दी जा सकती हैं जिससे आपका हाई ब्लडप्रेशर नॉर्मल हो सके। इससे मस्तिष्क में पड़ने वाला दबाव भी कम होगा।
ब्रेन स्ट्रोक का प्रभाव शरीर के अन्य हिस्सों में भी
ब्रेन स्ट्रोक में दिमान के साथ शरीर का कई और हिस्सा भी डैमेज होता है। हमारा दिमाग की शरीर के अन्य हिस्से को नियंत्रित करने का काम करता है। खून का प्रवाह होना बंद हो जाता है। स्ट्रोक के कारण शरीर के किस अंग पर प्रभाव पड़ेगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि स्ट्रोक शरीर के किस अंग को नियंत्रित करने वाली मस्तिष्क की नस पर पड़ता है।
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तंत्रिका तंत्र
तंत्रिका तंत्र हमारे शरीर से ब्रेन तक सिंग्नल पास करने का काम करती है, जोकि ब्रेन , रीढ़ की हड्डी और पूरे शरीर में तंत्रिकाओं से मिलकर बनता है। ब्रेन स्ट्रोक के दौरान इसके डैमेज होने पर ब्रेन को सिंग्नल देना बंद कर सकता है। अगर ब्रेन स्ट्रोक नर्वस सिस्टम को डैमेज करती है, तो इसके बाद आपको बॉडी मूवमेंट के दौरान अधिक दर्द महसूस होता है। क्योंकि, ब्रेन स्ट्रोक के कारण तंत्रिका तंत्र डैमेज होने के बाद मस्तिष्क ठंडी या गर्मी जैसे संवेदनाओं को पहले की तरह नहीं समझ पाता है।
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संचार प्रणाली
ब्रेन में ब्लीडिंग होने के कारण संचार प्रणाली डैमेज हो सकती है। हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या स्मोकिंग इसका मुख्य कारण हो सकता है। इसे रक्तस्रावी स्ट्रोक या इस्कीमिक स्ट्रोक भी कहा जाता है। अगर मस्तिष्क के दौरे के कारण सर्क्युलेटरी सिस्टम डैमेज होता है, तो दूसरा स्ट्रोक आने या दिल का दौरा पड़ने का खतरा भी अधिक बढ़ जाता है।
श्वशन प्रणाली
यह ब्रेन स्ट्रोक की बीमारी के सामान्य लक्षणों में से एक हो सकता है। अगर मस्तिष्क का दौरा खाने और निगलने को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क के क्षेत्र को नुकसान पहुंचाता है, तो श्वशन प्रणाली (Respiratory system) कार्य करना बंद कर सकती है या इसके कार्य करने की क्रिया में किसी तरह की परेशानी आ सकती है। इसे अपच (Indigestion) भी कहा जाता है। इसके कारण भोजन, फूड पाइप में जाने में असमर्थ हो जाते हैं और कुछ जो भी खाने पर वो वायुमार्ग में से होते हुए फेफड़ों में इकठ्ठे होने लगते हैं। इससे संक्रमण और निमोनिया का भी खतरा बढ़ सकता है।
प्रजनन प्रणाली
स्ट्रोक के कारण प्रजनन प्रणाली भ होती है, तो आप सेक्स का अनुभव कैसे करते हैं या आपका शरीर सेक्स के बारे में कैसा महसूस करता है, इसमें बदलाव आ सकता है। आपमें डिप्रेशन के भी लक्षण हो सकते हैं।
पाचन तंत्र
दिमाग के दौरे के कारण अगर मस्तिष्क का आंतों को नियंत्रित करने वाला हिस्सा प्रभावित होता है, तो पाचन तंत्र (Digestive system) खराब हो सकता है। डाइजेस्टिव सिस्टम डैमेज होने के कारण कब्ज की समस्या, पर्याप्त तरल पदार्थ नहीं पी पाने की समस्या या शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होने की समस्या हो सकती है।
साइलेंट स्ट्रोक या साइलेंट सेरेब्रल इंफर्क्शन (SCI) क्या है?
साइलेंट स्ट्रोक को साइलेंट सेरेब्रल इन्फर्क्शन (SCI) भी कहा जाता है। यह अचानक से ब्रेन में खून की आपूर्ति रूकने की वजह से आता है। इसके कारण मस्तिक के ऊतकों का नुकसान होता है। जिसके कारण व्यक्ति बेहोश हो सकता है या बोलने, देखने और शारीरिक प्रक्रियाएं करने में असमर्थ हो सकता है। कई बार यह मृत्यु की भी वजह बन सकती है। आमतौर पर कुछ लोगों को इसका अनुभव ही नहीं हो पाता की उनके साथ ऐसा स्ट्रोक की वजह से हो रहा है। इसी वजह से इसे साइलेंट स्ट्रोक कहा जाता है।
साइलेंट स्ट्रोक का असर दिमाग के एक छोटे हिस्से पर पड़ सकता है। जिसकी वजह से वहां की कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं। साइलेंट स्ट्रोक के कारण प्रभावित व्यक्ति चलने-फिरने में असमर्थ हो सकता है, उसकी पाचन प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है और दिमाग भी ठीक से काम करना बंद कर सकता है।
इसके अलावा अगर किसी को एक से अधिक बार साइलेंट स्ट्रोक आता है, तो उसे भूलने की बीमारी हो सकती है और उनके स्ट्रोक के खतरे भी बढ़ सकते हैं।
दिमाग को तेज करने वाले ये सुपरफूड

दालचीनी
दालचीनी में एंटी-ऑक्सिडेंट, ओमेगा 6, फाइबर, मैग्नीज, पोटैशियम और कैल्शियम पाया जाता है। यह मेटाबॉलिजम को अच्छा कर मोटापा घटाने को घटाने में मददगार है। यह शुगर भी कंट्रोल में रखती है। रोजाना दालचीनी का 3 ग्राम पाउडर खाने से स्ट्रोक, हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर और कॉलेस्ट्रॉल के कारण होने वाले प्रभाव को रोकने में मददगार है।
बादाम
इसमें विटमिन ई, कैल्शियम, फाइबर, गुड फैट, प्रोटीन, आयरन और जिंक आदि अच्छी मात्रा में होते हैं। यह कॉलेस्ट्रॉल कम करने में मददगार है। इसमें मौजूद मैग्नीशियम शुगर लेवल को मेंटेन रखता है। कड़वे बादाम में मौजूद हाइड्रोसायनिक एसिड नर्वस सिस्टम स्लो करता है।
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अखरोट
अखरोट में ओमेगा 6, फॉलिक एसिड, मैग्नीज, कॉपर, फॉस्फोरस, विटमिन बी 6 और विटमिन ई होता है। कॉपर दिल के लिए भी अच्छा है तो ओमेगा 6 दिमाग के लिए। स्किन को भी यह बेहतर बनाता है।
फ्लैक्स सीड्स
फ्लैक्स सीड्स यानी अलसी के बीजों में ओमेगा-थ्री, कैल्शियम और फाइबर अच्छी मात्रा में होते हैं। ये गुड कॉलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मदद करते हैं और दिल की सेहत को सुधारते हैं।
स्प्राउट्स
फल और कच्ची सब्जियों से 100 गुना ज्यादा एंजाइम्स दालों (मूंग, चना, लोबिया, राजमा, गेहूं आदि) को अंकुरित करने पर मिलते हैं। साथ ही, इनमें फाइबर, विटमिन सी आदि की मात्रा भी बढ़ जाती है। इनमें एंटी-ऑक्सिडेंट ज्यादा होते हैं, जोकि हमारे डीएनए को होने वाले नुकसान को कम करते हैं। यह हमारे खून को साफ कर शरीर को डीटॉक्स करता है।
मखाना
मखाने में प्रोटीन, मैग्नीज, पोटैशियम, जिंक, मैग्नीशियम, फाइबर और आयरन अच्छी मात्रा में होता है और फैट बिल्कुल नहीं होता। ज्यादा पोटैशियम और कम सोडियम की वजह से यह हाई ब्लड प्रेशर वाले लोगों के लिए फायदेमंद है। मन को शांत कर नींद लाने में यह मदद करता है। इसमें मौजूद मैग्नीशियम और फोलेट खून के दौरे को बेहतर बनाकर दिल की बीमारियों का खतरा कम करता है।
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लहसुन
मैग्नीज, विटमिन सी, बी6, फाइबर, कैल्शियम, आयरन अच्छी मात्रा में होता है लहसुन में। इसमें मौजूद एलिसिन कंपाउंड कॉलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में मदद करता है।
यह जोड़ों के दर्द को कम करने और खून साफ करने में मदद करता है। स्किन और बालों को भी बेहतर बनाता है। बैक्टीरियल और वायरल इन्फेक्शन कम करता है। यह कैंसर से भी बचाता है।
हल्दी
विटमिन ए व सी के अलावा मैग्नीज भी काफी मात्रा में होता है हल्दी में। यह कैंसर से लड़ने और ट्यूमर सेल्स को ठीक करने के अलावा दिमाग से जुड़ी बीमारियों में भी फायदेमंद है। हल्दी में मौजूद कर्कुमिन एंटी-बायोटिक और एंटी-इन्फ्लेमेटरी है इसलिए यह सूजन, दर्द और चोट में राहत पहुंचाती है। शुगर लेवल कंट्रोल करने के अलावा यह जोड़ों का दर्द और गैस भी कम करती है।
ग्रीन टी/हर्बल टी
ग्रीन टी में बेस्ट एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं जो बढ़ती उम्र के नुकसान को कम करते हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर कई बीमारियों से बचाव करते हैं। यह कॉलेस्ट्रॉल घटाने में मदद करती है। इमें मौजूद एल-थियेनाइन नामक कंपाउंड दिमाग को ज्यादा अलर्ट, लेकिन शांत रखता है यानी ब्रेन बेहतर काम करता है।
स्ट्रोक के मरीजों की देखभाल के लिए टिप्स
- स्ट्रोक के मरीजों के लिए स्प्लिंट्स का उपयोग दर्द, हाइपोटेंशन, स्पस्टीटी आदि के प्रबंधन के लिए न्यूरो-रिहैबिलिटेशन के लिए किया जाता है। स्ट्रोक के पैसेंट को कब, कैसे और कितने समय में स्लिंट्स का उपयोग करना है ये सीखना जरूरी है।
- मरीज के लेटने अथवा बैठने के दौरान तकिए की पोजिशन का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- अव्यवस्था से बचने के लिए कंधे को सावधानी पूर्वक संभालना।
- घर पर या बाहर जाते समय सभी तरह की स्ट्रोक के मरीज को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए। उनकी देखभाल के लिए कोई हो।
- मरीजों और देखभाल करने वालों को कमजोर हाथों या पैरों के उपयोग की बजाय मजबूती का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा शारीरिक गतिविधियां की जा सके।
- दिन में स्ट्रोक वाले हिस्से का अभ्यास या मूवमेंट करें।
- जब भी व्यक्ति को व्हीलचेयर या बिस्तर से स्थानांतरित करने के लिए सही तकनीक का इस्तेमाल करें ताकि पीठ दर्द से बचा जा सके।
- स्ट्रोक के मरीजों की देखभाल में हमेशा प्रोत्साहित अथवा मोटिवेट करें ताकि वे जल्दी से आम जिंदगी में वापसी कर सके।
- स्ट्रोक के मरीजों की देखभाल और सुविधा के लिए अपने घर की सीढ़ियों, हैंडल बार, नॉन स्किड मैट, एलिवेटेड टॉयलेट सीट पर रेलिंग लगाएं ताकि उनको इस्तेमाल करने में सुविधा हो सके।
- स्ट्रोक के मरीजों की देखभाल के लिए ज्यादा थकान उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है इसलिए समय-समय पर उचित आराम भी महत्वपूर्ण है।