परिचय
अक्सर टांगों में दर्द किसी अंदरूनी बीमारी का लक्षण हो सकता है। टांगों में दर्द की समस्या का सामना हर किसी को कभी-कभी करना पड़ता है। अगर टांगों में दर्द लगातार तीन महीनों तक रहता है तो उसे क्रोनिक की कैटेगरी में रखा जाता है। पैरों में दर्द कई प्रकार का हो सकता है, जैसे, तेज दर्द, पैरों में कुछ चुभने जैसा एहसास और हल्का दर्द।
आयुर्वेद के अनुसार टांगों में दर्द क्या है?
आयुर्वेद के अनुसार टांगों में दर्द का कारण वात दोष है। आयुर्वेद कहता है कि दर्द तब होता है जब दोष में असंतुलन होता हैं। आयुर्वेद में शरीर में विषाक्त पदार्थों को ‘अमा’ नाम दिया गया है जो कि अपच के कारण होता है। हमारे शरीर में दर्द तब होता है जब शरीर में बहुत अधिक अमा का निमार्ण होता है।
लक्षण
आयुर्वेद के अनुसार टांगों में दर्द के लक्षण क्या हैं?
टांगों में दर्द हड्डियों, जोड़ों, मांसपेशियों, स्नायुबंधन, रक्त वाहिकाओं, नसों या त्वचा को प्रभावित करने वाली स्थितियों के परिणामस्वरूप हो सकता है। टांगों में दर्द पैर, टखने, घुटने, घुटने के पीछे, जांघ, पैर के पीछे या पैर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। यह रात में लेटते समय, दौड़ते समय या व्यायाम करते समय कभी हो सकता है। अक्सर इसका होना कारण पर निर्भर करता है। कारण के आधार पर, पैर में दर्द केवल एक पैर में या दोनों पैरों में हो सकता है। आमतौर पर, पैर का दर्द ऊतक सूजन का परिणाम है जो चोट या बीमारी के कारण हो सकता है। किसी भी चोट या पुरानी बीमारी से पैर के किसी भी ऊतक में सूजन हो सकती है और पैर में दर्द हो सकता है। चूंकि पैर में कई अलग-अलग संरचनाएं और ऊतक के कई प्रकार होते हैं, इसलिए कई तरह की स्थितियों और चोटों के कारण पैर में दर्द हो सकता है। पैरों में दर्द के लक्षण निम्न हो सकते हैं।
- पैरों में कमजोरी का एहसास होना
- पैरों का सुन्न होना
- पैरों में कुछ चुभने का एहसास होना
- पैरों में ऐंठन होना
- पैरों में झुनझुनी होना
- पैरों में अकड़ना का एहसास होना
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कारण
टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा के बारे में जानने से पहले जान लें टांगों में दर्द के कारण क्या हैं?
गठिया (Arthritis) : जोड़ों में सूजन के कारण दर्द और अकड़न होती है। गठिया का सबसे आम प्रकार ऑस्टियोआर्थराइटिस और संधिशोथ हैं। ओस्टियोआर्थराइटिस का कारण इंजरी, उम्र, और जॉइंट का अत्यधिक यूज हो सकता है। इस कंडिशन में हड्डियों में आपस में घषर्ण होता है जो कि जोड़ों की सूजन का कारण बनता है। रूमेटाइड गठिया एक ऑटोइम्यून समस्या है जहां हमारा शरीर हेल्दी कार्टिलेज पर हमला करता है जिसके परिणामस्वरूप कार्टिलेज का क्षरण होता है जो दर्द, कठोरता के लक्षणों के साथ सूजन का कारण बनता है।
थ्रोम्बोफ्लिबायटिस (Thrombophlebitis) ब्लड क्लॉट नस की सूजन का कारण बन सकता है। इस स्थिति को थ्रोम्बोफ्लेबिटिस कहा जाता है। यह पैरों की सामान्य स्थिति है। लक्षणों में दर्द, कोमलता, जलन, लालिमा और इंफेक्टेड क्षेत्र में सूजन शामिल है। यह स्थिति गंभीर हो जाती है तो इसे तुरंत इलाज की जरूरत होती है।
प्लांटर फेशिआइटिस (Plantar Fasciitis): इस डिसऑर्डर में एडी और पैर के तलवे में दर्द होता है। इस दर्द का कारण प्लांटर फेसिया में सूजन है। यह परेशानी एथलीट या मोटे लोगों में अधिक देखी जाती है।
पेरीफेरल न्यूरोपैथी (Peripheral neuropathy): पैरों की नर्व्स के डैमेज होने के कारण पैरों में झुनझुनी और सुन्नता की शिकायत होती है, लेकिन बाद में दर्द होता है। पेरीफेरल न्यूरोपैथी का कारण वैसे तो डायबिटीज की बीमारी होती है, लेकिन इसका कारण किडनी की बीमारी, एल्कोहॉल का उपयोग भी हो सकता है। जिससे पैरों में दर्द की समस्या होती है।
साइटिका (Sciatica): इस स्थिति में वात बढ़ने के कारण शरीर के निचले अंगों जैसे कि कूल्हों के पीछे, जांघ में या दोनों पैरों में दर्द शुरू होता है। साइटिका का दर्द कफ और वात दोनों के कारण हो सकता है। टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा के बारे में जानने के लिए आगे पढ़िए।
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टांगों में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज
स्नेहन (ऑयल थेरिपी)
यह बाहर से की जाने वाली थेरिपी है, जो मस्कुलर स्ट्रेन या दर्द से राहत के लिए उपयोग की जाती है। इसमें अश्वगंधा और चंदन मिले हुए तेल को उन मसल्स पर लगाया जाता है जिनमें दर्द होता है। यह पैरों में होने वाली अकड़न को दूर कर देता है और राहत प्रदान करता है।
स्वेदन (हीट इंडक्शन)
इस थेरिपी में मसल क्रैम्प का इलाज करने के लिए सौम्य भाप का उपयोग किया जाता है। इसमें यूकालिप्टस, नीम जैसे हर्बल का यूज किया जाता है जो कि पैर और जांघों को स्वेटिंग के लिए उत्तेजित करते हैं। यह थेरिपी वात दोष के असंतुलन को ठीक करने का काम करती है।
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टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा
1.टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा है निर्गुणी
यह जोड़ों और पैरों में दर्द से राहत दिलाने वाली कॉमन हर्ब है। यह पौधा आसानी से उपब्लध है। यह सूजन कम करने के साथ ही दर्द से राहत दिलाने के लिए जाना जाता है। इसके एंटी इंफ्लमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण यह जोड़ों को कई तरह से राहत प्रदान करता है। इसका उपयोग करने के लिए आप इसके तेल को लगा सकते हैं या फिर इसकी पत्तियों के पेस्ट को पैरों पर लगा सकते हैं।
2.टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा है शुंठी (सूखे अदरक का पाउडर)
अदरक कई फ्लेवोनोइड एंटीऑक्सिडेंट और शक्तिशाली एंटी इंफ्लमेटरी गुणों से भरपूर है। जो निचले पैरों की मांसपेशियों को आराम पहुंचाते हैं। 2 चम्मच शुंठी यानी सूखे अदरक के पाउडर को शहद के साथ एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर पीने से मांसपेशियों की ऐंठन से राहत मिलती है।
3.टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा है दशमूल
दशमूल एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी नहीं है, बल्कि दस औषधीय जड़ी-बूटियों का मिश्रण है, जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता है। दशमूल का शाब्दिक अर्थ है ‘दस जड़ें’; जिसमें से पांच जड़ें पेड़ों की हैं और पांच झाड़ियों की। इनमें पटला, गम्भारी, बरिहटी, शालपर्णी और अन्य शामिल हैं। दशमूल या दशमूला शरीर में होने वाली इंफ्मेटरी कंडिशन और वात रोग में प्रभावी है। इसके एंटीइंफ्लमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट, एनाल्जेसिक गुण जोड़ों के दर्द को ठीक करने में मदद करते हैं। यह तेल और पाउडर के रूप में उपलब्ध है।
4.टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा है शालकी
यह जड़ी-बूटी जोड़ों को मजबूत रखने और उन्हें किसी भी दर्द से राहत देने के लिए जानी जाती है। यह न केवल दर्द को कम करती है, बल्कि सूजन को कम करने में भी मदद करती है। बोस्वेलिया सेराटा (Boswellia Serrata) के रूप में लोकप्रिय शालकी को कभी-कभी विशेषज्ञों द्वारा पेन किलर के विकल्प के रूप में भी उपयोग किया जाता है। यह तेल के रूप में उपलब्ध है।
टांगों के दर्द के इलाज में आयुर्वेदिक दवा का उपयोग कितना प्रभावी है?
कई आयुर्वेदिक स्टडीज में ये बात सामने आई है कि वात को संतुलित करने में आयुर्वेदिक दवा प्रभावी है, लेकिन किसी भी दवा का उपयोग डॉक्टर की सलाह के बिना न करें।
क्या टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा के साइड-इफेक्ट्स हो सकते हैं?
बता दें कि आयुर्वेदिक दवा हमेशा सुरक्षित नहीं होती है। इसलिए किसी भी स्वास्थ्य स्थिति के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट लेने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी बहुत जरूरी है। खासकर गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को इसके इस्तेमाल में बहुत सतर्कता रखने की आवश्यकता है।
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टांगों में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज करते वक्त जीवनशैली में क्या बदलाव करने चाहिए?
अगर आप टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा ले रहे हैं, तो आपको अपनी जीवनशैली में निम्न बदलाव भी करने चाहिए।
क्या करें?
- भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियां, विटामिन सी रिच फूड को शामिल करें।
- साथ ही डायट में पोटेशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम युक्त फूड्स को भी शामिल करें।
- पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करें। कई बार डीहाइड्रेशन और बॉडी में फ्लूइड की कमी दर्द का कारण बनती है।
- आहार में चावल, गेहूं, काले चने और कुलथी दाल को शामिल करें।
क्या न करें?
- कॉफी और चॉकलेट को अपनी डायट से हटाना होगा।
- एक जगह पर लगातार बैठकर काम न करें। बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें।
- किसी भी पेन किलर का सेवन डॉक्टर की सलाह के बिना न करें
- टांगों के दर्द के लिए एक्सरसाइज या योगासान एक्सपर्ट की सलाह के बिना न करें।
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टांगों में दर्द को दूर करने के घरेलू उपचार
टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा के साथ आप निम्न घरेलू उपचार भी अपना सकते हैं।
- एक गिलास आंवले के जूस में आवश्यक मिनरल्स जैसे, सोडियम, पोटेशियम पाए जाते हैं, जो मसल्स को मजबूती देने के साथ ही उन्हें लचीला बनाते हैं। इसमें पावरफुल एंटीऑक्सीडेंट भी पाए जाते हैं जो लेग पेन में राहत प्रदान करते हैं।
- अजवाइन भी टांगों के दर्द में राहत दिला सकती है। इसके लिए एक टीस्पून अजवाइन को गर्म पानी में डालें और अपने पैरों को इस पानी में डुबाकर दस मिनट के लिए बैठें।
- लोंग का तेल भी मसल्स क्रैम्प से तुरंत राहत दिला सकता है। अफेक्टेड एरिया पर आप लोंग के तेल को लगा सकते हैं।
हम उम्मीद करते हैं कि आपको ये लेख पसंद आया होगा। अधिक जानकारी के लिए हर्बलिस्ट या आयुर्वेदिक एक्सपर्ट से संपर्क करें।
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