ट्यूबरक्युलॉसिस (Tuberculosis), जिसे हम टीबी की बीमारी के नाम से भी पहचानते हैं, एक गंभीर समस्या मानी जाती है। ये एक संक्रामक रोग है, जिसे तपेदिक (TB) या क्षय रोग के नाम से भी जाना जाता है। यदि हम बात करें पहले जमाने की, तो ये रोग लाइलाज था, लेकिन समय के साथ मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब हर साल टीबी का इलाज नए तरीके से होता जा रहा है।
इस समस्या में माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलॉसिस (Mycobacterium tuberculosis) मूल रूप से लंग्स को प्रभावित करता है, जो पल्मोनरी डिजीज का आम कारण होता है। साथ ही यदि टीबी का इलाज ठीक ढंग से ना किया जाए, तो ये समस्या रोगी को दोबारा अपनी चपेट में ले सकती है। इसलिए जरूरी है कि टीबी के इलाज (TB Treatment) में पूरी तरह से ध्यान दिया जाए और इसे अधूरा ना छोड़ा जाए। आज हम बात करेंगे टीबी के इलाज में हो रहे एडवान्सेस, यानी कि प्रगति के बारे में, जिससे इसके इलाज में जुड़े नए आयामों को बेहतर रूप से समझ सकें।
टीबी का इलाज: क्या कहती यही डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट?
कुछ वर्षों से टीकाकरण (Vaccination) और दवाओं के माध्यम से
टीबी को खत्म करने के लिए ग्लोबली प्रयास किए जा रहे हैं। साल 2000 में विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्ल्यूएचओ (WHO) ने आंकड़ों के आधार पर यह अनुमान लगाया है कि प्रतिवर्ष इस बीमारी में 1.5% की गिरावट आ रही है। 2000 से 2015 तक के सर्वे के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ, 2016) ने उल्लेख किया है कि
ग्लोबल टीबी डेथ रेट में 22% की गिरावट आई है। लेकिन दुख की बात यह है कि इतना करने के बाद भी, अभी भी विश्व में टीबी (TB) के कई मामले नजर आते रहते हैं। अब भी भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, चीन, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका में टीबी के कारण लोगों की मृत्यु दर 60% तक पाई गई है (WHO, 2017)। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि टीबी के कारण एचआईवी से ग्रसित मरीज ज्यादा मरते हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि टीबी अभी भी पूरी तरह से भारत क्या विश्व से नहीं गई है, इससे सिर्फ मृत्यु की दर कम हुई है।
ये तो थी विश्व में टीबी की स्थिति, लेकिन
भारत में टीबी के ट्रीटमेंट (TB Treatment) और टीबी एडवांसेस के बारे में भी जानकारी होना बेहद जरूरी है। चलिए अब बात करते हैं भारत में टीबी के ट्रीटमेंट से जुड़ी स्थिति की।
भारत में नए रोगियों के लिए उपलब्ध टीबी का इलाज (Treatment of TB)
भारत में सभी नए
टीबी रोगियों (TB patient) के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत फर्स्ट लाइन ट्रीटमेंट रेजीमेन दिया जाता है। ट्रीटमेंट के इनिशियल इंटेंसिव फेज में
आइसोनियाज़िड (Isoniazid), रिफैम्पिसिन (Rifampicin), पाइराजिनमाइड (Pyrazinamide) और एथेमब्युटोल (Ethambutol) दवाओं को आठ सप्ताह के लिए दिया जाता है। इसके बाद अगले 16 सप्ताहों के लिए आइसोनियाज़िड, रिफाम्पिसिन और एथेमब्युटोल को शामिल किया जाता है।
टीबी के इस ट्रीटमेंट को रोगी के शरीर के वजन के अनुसार दिया जाना चाहिए।
ये सभी ड्रग्स टीबी पेशंट को डायरेक्ट ऑब्ज़र्वेशन (DOTS) में दिए जाने चाहिए। DOTS के अंतर्गत ये सभी दवाएं टीबी पेशंट को DOTS एजेंट के अंतर्गत दी जाती हैं। DOTS एजेंट आम तौर पर मरीज की कम्युनिटी और उसके परिवारजनों से संपर्क में रहते हैं।
टीबी का इलाज: क्या है फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन? (Fixed dose combination – FDC)
टीबी के इलाज में अलग-अलग तरह की दवाओं को मिलाकर डोजेज तैयार किये जाते हैं, जिन्हे फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (FDC) का नाम दिया गया है।
टीबी दवाओं और डॉट्स (DOTS) की डिलीवरी को आसान बनाने के लिए फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (Fixed dose combination) की मदद ली जा सकती है। जिन पेशंट की स्थिति गंभीर मानी जाती है या जिनके केस में कॉम्प्लिकेशन होते हैं, उन्हें ये मेडिसिन इंडीवीज्युवली दी जाती हैं।
फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन में चार दवाओं (आइसोनियाज़िड, रिफैम्पिसिन, पाइराजिनमाइड और एथेमब्युटोल), तीन दवाओं (आइसोनियाज़िड, रिफैम्पिसिन और एथेमब्युटोल) और दो दवाओं (आइसोनियाज़िड, रिफैम्पिसिन) के कॉम्बिनेशन का समावेश होता है।
इस तरह भारत में टीबी (TB) के मरीजों को हाल की स्थिति में ट्रीटमेंट उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। चलिए अब जानते हैं टीबी के निदान के लिए कौन से टेस्ट्स भारत में उपलब्ध हैं।
टीबी के लिए टेस्ट्स : ये है उपलब्धता (Testing and Diagnosis of TB)
टीबी के निदान के लिए भारत में विभिन्न तरह के टेस्ट्स उपलब्ध हैं, जिनका इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह के अनुसार किया जा सकता है। ये टेस्ट्स आपकी स्थिति को बेहतर ढंग से समझने और टीबी के संभावित इलाज में मददगार साबित होते हैं। ये टेस्ट तीन तरह के हैं –
स्किन टेस्ट (Skin Test)
संक्रमण है कि नहीं इसका पता लगाने के लिए पीपीडी (प्यूरिफ़ाइड प्रोटीन डेरिवेटिव) स्किन टेस्ट किया जाता है।
ब्लड टेस्ट (Blood Test)
डॉक्टर स्किन टेस्ट के आधार पर ब्लड टेस्ट करने के लिए भी कह सकते हैं।
एक्स रे (X-Ray)
इन दोनों टेस्ट के बाद डॉक्टर एक्स रे करने के लिए कह सकते हैं। एक्स रे करके यह देखा जाता है कि इंफेक्शन हुआ है कि नहीं।
स्पटम माइक्रोस्कोपी
इस जांच का लक्ष्य माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस संक्रमण का शीघ्र, निश्चित और सटीक निदान माना जाता है, जिससे बीमारी की जटिलता की पहचान की जा सके।
रेडियोलॉजिक स्टडी
संक्रमित रोगियों की जांच में टीबी के लिए रेडियोग्राफिक प्रोफाइलिंग एक महत्वपूर्ण जांच मानी जाती है।
इम्यूनोलॉजिकल मेथड (Immunological method)
एक्टिव ट्यूबरक्यूलॉसिस में इम्यूनोलॉजिकल मेथड के अंतर्गत न्यूक्लिक एसिड एम्पलिफ़िकेशन टेस्ट और बैकटेरियोफ़ेज टेस्ट किए जाते हैं। इम्यूनोलॉजिकल मेथड के जरिए माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलॉसिस (Mycobacterium tuberculosis) के न्यूक्लिक एसिड सिकवेनस को डिटेक्ट किया जाता है।
इस तरह टीबी की बीमारी को अलग-अलग चरण में इन टेस्ट्स की मदद से समझा जा सकता है।